Edited By Niyati Bhandari,Updated: 03 Oct, 2023 11:35 AM
जीवन भर सीखने की क्षमता एक मानवीय अक्षय निधि है। मूल प्रश्न यह है कि कैसे सीखें और क्या सीखें। श्री कृष्ण कहते हैं, ‘जो ज्ञानी सत्य को जान गए हैं, उनको साष्टांग
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Srimad Bhagavad Gita: जीवन भर सीखने की क्षमता एक मानवीय अक्षय निधि है। मूल प्रश्न यह है कि कैसे सीखें और क्या सीखें। श्री कृष्ण कहते हैं, ‘जो ज्ञानी सत्य को जान गए हैं, उनको साष्टांग प्रणाम कर, पूछताछ और सेवा करने से तत्व ज्ञान प्राप्त होगा।’ (3.34)
साष्टांग प्रणाम विनम्रता, विनयशीलता, दूसरों के दृष्टिकोण को समझने की क्षमता और बुनियादी तौर पर खुले विचारों वाला होना है। इसका मतलब है अहंकार पर काबू पाना। सवाल खड़े करना एक प्रकार का ‘फीडबैक’ जैसा है। जहां हम जो कुछ भी कहते हैं और करते हैं उस पर हम सवाल करते हैं कि हमने ऐसा क्यों कहा और क्यों किया और इस प्रक्रिया को जारी रखना, जब तक सारे प्रश्न ही समाप्त न हो जाएं, जब तक कि प्रश्न कम नहीं हो जाते। सेवा करुणा है।
अगला प्रश्न यह है कि कौन ज्ञानी या साक्षात् गुरु है और उन्हें कैसे खोजा जाए। श्रीमद्भागवतम में श्री कृष्ण एक बुद्धिमान व्यक्ति को संदर्भित करते हैं, जो कहते हैं कि उनके पास 24 गुरु हैं और उन्होंने पृथ्वी से क्षमा करना सीखा है। एक बच्चे से मासूमियत, हवा से अनासक्ति, मधुमक्खियों से जमाखोरी से बचना, सूर्य से समभाव, मछली से इंद्रियों का जाल आदि। इसका तात्पर्य यह है कि जब तक सीखने के तीन गुण हमारे भीतर मौजूद हैं, गुरु हमारे आस-पास है।
श्री कृष्ण ‘क्या सीखें’ के बारे में स्पष्ट करते हैं, ‘जिसे जानकर आप फिर से इस तरह भ्रमित नहीं होंगे, जिससे आप सभी प्राणियों को स्वयं में देखेंगे, मुझे भी।’
(4.35)
इस श्लोक में यह भी उद्धृत किया गया है कि ‘उसको’ जानो जिसे जानने के बाद कुछ भी जानने को शेष नहीं रहता। निश्चित रूप से, यह दुनिया की सभी किताबें पढ़ना नहीं है। श्री कृष्ण इसे सरल बनाते हैं जब वह कहते हैं कि यह ‘वह’ है, जिसके द्वारा हम सभी प्राणियों और भगवान को अपने आप में देखेंगे। हम अपने में अच्छाई और दूसरों में बुराई का महिमामंडन करते हैं। यह श्लोक कहता है कि इसी भाव से हमें यह समझना चाहिए कि हममें भी बुराइयां हैं और दूसरों में भी अच्छाइयां हैं।
अंत में, हर जगह भगवान है। एक बार इस साधारण सी बात को जान लेने के बाद भ्रम की कोई गुंजाइश नहीं रह जाती।