नीलमत पुराण में कश्मीर को बताया है काश्यापी, जानें क्या कहता है ये पुराण

Edited By Jyoti,Updated: 02 Dec, 2020 06:19 PM

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मार्गशीर्ष का माह प्रारंभ हो चुका है। इस मास से जुड़ी शास्त्रों में अनेक प्रकार की मान्यताएं व कथाएं वर्णित है। इसकी महत्वता तो हम आपको बता ही चुके हैं। इस कड़ी में हमने आपको बता कि मार्गशीर्ष मास में ही कश्यप ने कश्मीर घाटी का निर्माण किया था।

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मार्गशीर्ष का माह प्रारंभ हो चुका है। इस मास से जुड़ी शास्त्रों में अनेक प्रकार की मान्यताएं व कथाएं वर्णित है। इसकी महत्वता तो हम आपको बता ही चुके हैं। इस कड़ी में हमने आपको बता कि मार्गशीर्ष मास में ही कश्यप ने कश्मीर घाटी का निर्माण किया था। अब हम आपको बताने जा रहे हैं कि इससे जुड़ा इतिहास। बताया जाता है कि शैव मत की आराधक कश्मीर भूमि की पूरी प्रेरणादायक कहानी और कश्मीर की धरती का इतिहास नीलमत पुराण में है। आइए जानते हैं क्या है इसका इतिहास- 
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नीलमुनिकृत नीलमत पुराण, राजतरंगिणी के रचायिता कल्हण, आचार्य अभिनव गुप्त एवं महाराजाधिराज ललितादित्य (अविमुक्तापीड) के नाम आज की पीढ़ी एवं सामान्यजन के लिए अपरिचित हो सकते हैं, पंरतु इन तीनों के साथ, हमारे नामों के पूर्व ‘श्री’ लगने की श्रेष्ठ परंपरा वस्तुत: कश्मीर एवं श्रीनगर की ही देन है। 

कहा जाता है कश्मीर और उसके इतिहास व वर्तमान तक के विषय में अज्ञानता, अपने चश्मे से देखने की संकुचित दृष्टि, झूठे प्रचार तंत्र तथा बहुत हद तक सामान्यजन की बौद्घिक उदासीनता ही है, जिस कारण कश्मीर पर सही दृष्टि को विकसित होने का बहुत कम अवसर दिया गया है। 

नीलमत पुराण प्राचीन कश्मीर के भूगोल यानी पर्वत, वनों, नदियों तथा कृषि विषयक ज्ञान हेतु यह अत्यंत उपयोगी ग्रंथ है। धार्मिक किंवदंतियों के अनुसार नीलमुनि नाग कुल के थे। इस पुराण के अनुसार, ऋषि कश्यप ने जब कश्मीर को जल से बाहर निकाला तब वह रमणीय प्रदेश बन गया। जिसेक बाद इस पवित्र भूमि का नाम काश्यापी हुआ था। कालांतर समय में यह काश्यीपी ही ‘कश्मीर’ के रूप में जाना जाने लगा। नीलमत पुराण अत्यंत प्राचीन ग्रंथ है। बताया जाता है सम्राट हर्ष के कार्यकाल में भारत आया चीनी यात्री ह्वेनसांग के समय नीलमत पुराण को पढ़ा और सुना जाता था।
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कल्हण ने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ ‘राजतरंगिणी’ में अनेक स्थलों पर कश्मीर के लिए ‘काश्यापी’ शब्द का प्रयोग किया है। ‘राजतरंगिणी’ कश्मीर का प्रमाणिक इतिहास प्रस्तुत करती है। कहा जाता है ‘तरंगिणी’ का तात्पर्य है नदी, अस्तु ‘राजतरंगिणी’ अर्थात राजाओं का प्रवाह। 

‘राजतरंगिणी’ कश्मीर के राजाओं का इतिहास है। कल्हण की प्रतिभा ‘राजतरंगिणी’ में उत्कृष्टम काव्य के साथ प्रकट हुई है। कल्हण उत्कृष्ट कवि एवं श्रेष्ठ साहित्यकार हैं। ‘राजतरंगिणी’ की प्रबंध रचना में इतिहास का सच-सच बताया गया है। ‘राजतरंगिणी’ की समाप्ति पर कल्हण ने उपसंहार के रूप में केवल एक छंद लिखा है, उस छंद को अष्टतम खंड में लिखा है:-

‘गोदावरी’ सरिदेवोत्तुमुलैस्तरंगै,
र्वक्त्र: स्फुटं सपदि सप्तभिरापतन्ती।
श्रीकान्तिराज विपुलाभि जनाब्धिमध्यं,
विश्रान्तये विशति राजतरंगिणीय।

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भारत के इतिहास से यदि कश्मीर घाटी के इतिहास के पृष्ठ निकाल दें तो इसका सारा इतिहास नीरस रह जाएगा। कश्मीर घाटी के इतिहास के दर्शन 1148-50 ईस्वी के बीच रचे गए जो कल्हण के महाकाव्य ‘राजतरंगिणी’ से होते हुए नजर आते हैं। ‘राजतरंगिणी’ अर्थात राजाओं का दरिया। संस्कृत का यह महाकाव्य वास्तव में कविता के रूप में कश्मीर घाटी का इतिहास है।  कश्मीर घाटी विश्व के प्राचीनतम और गौरवमयी दो धर्मों हिंदू और बौद्ध की जन्मस्थली है। यहां के निवासियों ने इन दोनों संस्कृतियों को अपने-अपने ढंग से संभाला और संवारा है। ‘शैव मत’ और ‘ब्रह्मवाद’ का जीवनदर्शन यहीं से सीखने को मिला।

कश्मीर घाटी शिव की अर्धांगिनी ‘पार्वती’ का प्रदेश है। महाराजा कनिष्क ने बौद्ध धर्म का चौथा महा सम्मेलन इसी कश्मीर घाटी में आयोजित करवाया था। विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं मोहनजोदाड़ो और हड़प्पा के अवशेष श्रीनगर शहर से थोड़ी दूरी पर ही मिले हैं। इस्लाम तो कश्मीर-घाटी में चौदहवीं शताब्दी में आया। सभी जानते हैं कि जम्मू-कश्मीर के स्वर्गीय मुख्यमंत्री शेख अब्दुल्ला के पितामह पंडित बाल मुकंद रैना थे। अवन्तीपुरम, मार्तंड-मंदिर (सूर्य मंदिर) मट्टन, श्रीनगर इत्यादि नाम हिंदू संस्कृति के प्रतीक हैं।
 

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