ब्राह्मण को क्यों शास्त्रों में कहा गया है देवता, जानना चाहते हैं ज़रूर पढ़ें ये

Edited By Jyoti,Updated: 08 Dec, 2019 12:52 PM

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आप में से लगभग लोग जानते होंगे कि हिंदू धर्म में ब्राह्मण देवता तो किसी देवी-देवता के कम नहीं माना जाता। कहने का भाव हैं इन्हें भी देवी-देवताओं की ही तरह पूजनीय माना जाता है।

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
आप में से लगभग लोग जानते होंगे कि हिंदू धर्म में ब्राह्मण देवता तो किसी देवी-देवता के कम नहीं माना जाता। कहने का भाव हैं इन्हें भी देवी-देवताओं की ही तरह पूजनीय माना जाता है। मगर इन्हीं लोगों में से बहुत से लोगों के मन में ये सवाल भी आया होगा कि आख़िर क्यों ब्राह्मण को देवता का रूप माना जाता है? इसके पीछे का कारण क्या है? दरअसल इस बात का विवरण धार्मिक ग्रंथों में बाखूबी किया गया है। जी हां शास्त्रों से जानते हैं कि क्यों ब्राह्मण को देवता समान पूजनीय माना जाता है।

शास्त्रीय मत-
पृथिव्यां यानी तीर्थानि तानी तीर्थानि सागरे ।
सागरे सर्वतीर्थानि पादे विप्रस्य दक्षिणे ।।
चैत्रमाहात्मये तीर्थानि दक्षिणे पादे वेदास्तन्मुखमाश्रिताः  ।
सर्वांगेष्वाश्रिता देवाः पूजितास्ते तदर्चया  ।।
अव्यक्त रूपिणो विष्णोः स्वरूपं ब्राह्मणा भुवि ।
नावमान्या नो विरोधा कदाचिच्छुभमिच्छता ।।

अर्थात- उपरोक्त श्लोक के अनुसार पृथ्वी में जितने भी तीर्थ हैं वह सभी समुद्र में मिलते हैं और समुद्र में जितने भी तीर्थ हैं वह सभी ब्राह्मण के दक्षिण पैर में है। चार वेद उसके मुख में हैं। अंग में सभी देवता आश्रय करके रहते हैं। इसलिए ऐसी मान्यता है ब्राह्मण की पूजा करने से सब देवों की पूजा होती है। पृथ्वी में ब्राह्मण विष्णु स्वरूप माने गए हैं इसलिए जिसको कल्याण की इच्छा हो उसे कभी ब्राह्मणों का अपमान तथा द्वेष नहीं करना चाहिए।
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देवाधीनाजगत्सर्वं मन्त्राधीनाश्च देवता:।
ते मन्त्रा: ब्राह्मणाधीना:तस्माद् ब्राह्मण देवता।

अर्थात- सारा संसार देवताओं के अधीन है तथा देवता मंत्रों के अधीन हैं और मंत्र ब्राह्मण के अधीन हैं ब्राह्मण को देवता माने जाने का एक प्रमुख कारण ये भी है।

ॐ जन्मना  ब्राह्मणो, ज्ञेय:संस्कारैर्द्विज उच्चते।
विद्यया याति विप्रत्वं, त्रिभि:श्रोत्रिय लक्षणम्।।

अर्थात- ब्राह्मण के बालक को जन्म से ही ब्राह्मण समझना चाहिए। संस्कारों से "द्विज" संज्ञा होती है तथा विद्याध्ययन से "विप्र" नाम धारण करता है। जो वेद, मंत्र तथा पुराणों से शुद्ध होकर तीर्थ स्नानादि के कारण और भी पवित्र हो गया है, वह ब्राह्मण परम पूजनीय माना गया है।

ॐ पुराणकथको नित्यं, धर्माख्यानस्य सन्तति:।
अस्यैव दर्शनान्नित्यं ,अश्वमेधादिजं फलम्।।

अर्थात- जिसके हृदय में गुरु,देवता,माता-पिता और अतिथि के प्रति भक्ति है। जो दूसरों को भी भक्तिमार्ग पर अग्रसर करता है,जो सदा पुराणों की कथा करता और धर्म का प्रचार करता है। शास्त्रों में ऐसे ब्राह्मण के दर्शन से अश्वमेध यज्ञों का फल प्राप्त होने की बात कही गई है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार पितामह भीष्म जी ने पुलस्त्य जी से पूछा हे गुरुवर! मनुष्य को देवत्व, सुख, राज्य, धन, यश, विजय, भोग, आरोग्य, आयु, विद्या, लक्ष्मी, पुत्र, बन्धुवर्ग एवं सब प्रकार के मंगल की प्राप्ति कैसे हो सकती है। तब पुलस्त्य जी ने उनकी बात का उत्तर देते हुए कहा राजन!इस पृथ्वी पर ब्राह्मण सदा ही विद्या आदि गुणों से युक्त और श्रीसम्पन्न होता है। तीनों लोकों और प्रत्येक युग में विप्रदेव नित्य पवित्र माने गए हैं। ब्राह्मण देवताओं का भी देवता है। संसार में उसके समान कोई दूसरा नहीं है। वह साक्षात धर्म की मूर्ति है और सबको मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करने वाला है। ब्राह्मण सब लोगों का गुरु, पूज्य और तीर्थस्वरुप मनुष्य है। पूर्वकाल में नारदजी ने ब्रम्हाजी से पूछा था। ब्रम्हन्! किसकी पूजा करने पर भगवान लक्ष्मीपति प्रसन्न होते हैं। तो ब्रह्मा जी बोले, जिस पर ब्राह्मण प्रसन्न होते हैं,उस पर भगवान विष्णु जी भी प्रसन्न हो जाते हैं। अत: ब्राह्मण की सेवा करने वाला मनुष्य निश्चित ही परब्रम्ह परमात्मा को प्राप्त होता है। ब्राह्मण के शरीर में सदा ही श्री विष्णु का निवास है। जो दान, मान और सेवा आदि के द्वारा प्रतिदिन ब्राह्मणों की पूजा करते हैं, उसके द्वारा मानों शास्त्रीय पद्धति से उत्तम दक्षिणा युक्त सौ अश्वमेध यज्ञों का अनुष्ठान हो जाता है। जिसके घर पर आया हुआ ब्राह्मण निराश नही लौटता, उसके समस्त पापों का नाश हो जाता है। पवित्र देश काल में सुपात्र ब्राह्मण को जो धन दान किया जाता है वह अक्षय होता है। वह जन्म जन्मान्तरों में फल देता है, उनकी पूजा करने वाला कभी दरिद्र, दुखी और रोगी नहीं होता है। जिस घर के आंगन में ब्राह्मण की चरणधूलि पड़ने से वह पवित्र होते हैं वह तीर्थों के समान हैं।
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ॐ न विप्रपादोदककर्दमानि,
न वेदशास्त्रप्रतिघोषितानि!
स्वाहास्नधास्वस्तिविवर्जितानि,
श्मशानतुल्यानि गृहाणि तानि।।

जहां ब्राह्मणों का चरणोदक नहीं गिरता,जहां वेद शास्त्र की गर्जना नहीं होती,जहां स्वाहा,स्वधा,स्वस्ति और मंगल शब्दों का उच्चारण नहीं होता है। वह चाहे स्वर्ग के समान भवन भी हो तब भी वह श्मशान के समान है।

भीष्मजी! पूर्वकाल में विष्णु भगवान के मुख से ब्राह्मण , बाहुओं से क्षत्रिय, जंघाओं से वैश्य और चरणों से शूद्रों की उत्पत्ति हुई। पितृयज्ञ(श्राद्ध-तर्पण), विवाह, अग्निहोत्र, शान्तिकर्म और समस्त मांगलिक कार्यों में सदा उत्तम माने गए हैं। ब्राह्मण के मुख से देवता हव्य और पितर कव्य का उपभोग करते हैं। ब्राह्मण के बिना दान,होम तर्पण आदि सब निष्फल होते हैं।

जहां ब्राह्मणों को भोजन नहीं दिया जाता,वहा असुर,प्रेत,दैत्य और राक्षस भोजन करते हैं। इसलिए कहा जाता है ब्राह्मण को देखकर श्रद्धापूर्वक उसको प्रणाम करना चाहिए।

उनके आशीर्वाद से मनुष्य की आयु बढती है,वह चिरंजीवी होता है। ब्राह्मण को देखकर भी प्रणाम न करने से,उनसे द्वेष रखने से तथा उनके प्रति अश्रद्धा रखने से मनुष्यों की आयु क्षीण होती है, धन ऐश्वर्य का नाश होता है तथा परलोक में भी उसकी दुर्गति होती है।

चौ- पूजिय विप्र सकल गुनहीना।
शूद्र न गुनगन ग्यान प्रवीणा।।
कवच अभेद्य विप्र गुरु पूजा।
एहिसम विजयउपाय न दूजा।।

रामचरित मानस में कहा गया है-
ॐ नमो ब्रम्हण्यदेवाय,
गोब्राम्हणहिताय च।
जगद्धिताय कृष्णाय,
गोविन्दाय नमोनमः।।

अर्थात- जगत के पालनहार गौ, ब्राम्हणों के रक्षक भगवान श्रीकृष्ण जी कोटिशः वन्दना करते हैं। जिनके चरणारविन्दों को परमेश्वर अपने वक्षस्थल पर धारण करते हैं, उन ब्राम्हणों के पावन चरणों में हमारा कोटि-कोटि प्रणाम है। ब्राह्मण जप से पैदा हुई शक्ति का नाम है, ब्राह्मण त्याग से जन्मी भक्ति का धाम है।

ब्राह्मण ज्ञान के दीप जलाने का नाम है,
ब्राह्मण विद्या का प्रकाश फैलाने का काम है।

ब्राह्मण स्वाभिमान से जीने का ढंग है,
ब्राह्मण सृष्टि का अनुपम अमिट अंग है।

ब्राह्मण विकराल हलाहल पीने की कला है,
ब्राह्मण कठिन संघर्षों को जीकर ही पला है।

ब्राह्मण ज्ञान, भक्ति, त्याग, परमार्थ का प्रकाश है,
ब्राह्मण शक्ति, कौशल, पुरुषार्थ का आकाश है।

ब्राह्मण न धर्म, न जाति में बंधा इंसान है,
ब्राह्मण मनुष्य के रूप में साक्षात भगवान है।

ब्राह्मण कंठ में शारदा लिए ज्ञान का संवाहक है,
ब्राह्मण हाथ में शस्त्र लिए आतंक का संहारक है।

ब्राह्मण सिर्फ मंदिर में पूजा करता हुआ पुजारी नहीं है,
ब्राह्मण घर-घर भीख मांगता भिखारी नहीं है।

ब्राह्मण गरीबी में सुदामा-सा सरल है,
ब्राह्मण त्याग में दधीचि-सा विरल है।
ब्राह्मण विषधरों के शहर में शंकर के समान है,
ब्राह्मण के हस्त में शत्रुओं के लिए बेद कीर्तिवान है।

ब्राह्मण सूखते रिश्तों को संवेदनाओं से सजाता है,
ब्राह्मण निषिद्ध गलियों में सहमे सत्य को बचाता है।

ब्राह्मण संकुचित विचारधारों से परे एक नाम है,
ब्राह्मण सबके अंत:स्थल में बसा अविरल राम है।
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