क्यों भगवान के सामने जाने से पहले ढका जाता है सिर ?

Edited By Lata,Updated: 24 May, 2019 02:08 PM

why is the head covered before going to temple

मंदिर हो या घर औरतों के लिए सिर ढकने की परंपरा प्राचीन समय से ही चली आ रही है। आपने सबने ये देखा होगा कि

ये नहीं देखा तो क्या देखा (VIDEO)
मंदिर हो या घर औरतों के लिए सिर ढकने की परंपरा प्राचीन समय से ही चली आ रही है। आपने सबने ये देखा होगा कि शादीशुदा औरतें हमेशा अपने घरों में सिर ढक कर ही रहती हैं। लेकिन फिर भी जैसे-जैसे समय बीत रहा है वासे-वैसे ये परंपरा भी बदल रही है। आज के समय में अगर देखा जाए तो हर क्षेत्र में लड़कियां आगे निकल रही हैं और जिससे कि लोगों की सोच में भी बदलाव ला रही हैं। इसके साथ ही ये परंपरा भी लुप्त होती जा रही है। लेकिन कुछ स्थानों पर आज भी इस रीति को जारी रखा गया है। महिलाएं सिर पर ओढ़नी या पल्लू डालकर ही रहती थीं। परंतु कई लोग केवल मंदिर के नाम पर सिर ढकते हैं, वैसे नहीं। पल्लू को सिर पर लेने के बारे में क्या किसी ने कभी सोचा है कि आखिर क्यों ये परंपरा चली आ रही है। अगर नहीं तो चलिए जानते हैं आज इसके बारे में।
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पौराणिक मान्यताओं के अनुसार आप जिसकी इज्जत करते हो तो उसके सामने सिर को ढककर ही जाना चाहिए। अक्सर आपने देखा होगा कि सभी औरतें अपने बड़ों के सामने सिर ढककर ही रहती हैं। यही कारण है कि जब हम मंदिर जाते हैं या कोई धार्मिक कार्य करते हैं, जैसे कि हवन, पूजा-पाठ तो भी हम सिर ढककर ही करते हैं। सिर ढककर रखना सम्मानसूचक भी माना जाता है। सिर की पगड़ी को कुछ लोग अपनी इज्जत से जोड़कर देखते हैं। राजाओं के लिए उनके मुकुट सम्मान के सूचक होते थे। ऐसे में कुछ लोग यह मानते हैं कि यदि मंदिर जाएं तो अपना रुतबा व सम्मान सभी प्रभु के चरणों में रख दें। मतलब यह कि सिर खुला रखकर जाएं।
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हिंदू धर्म के अनुसार सिर के बीचोबीच सहस्रार चक्र होता है जिसे ब्रह्म रन्ध्र भी कहते हैं। हमारे शरीर में 10 द्वार होते हैं- 2 नासिका, 2 आंख, 2 कान, 1 मुंह, 2 गुप्तांग और सिर के मध्य भाग में 10वां द्वार होता है। दशम द्वार के माध्यम से ही परमात्मा से साक्षात्कार कर पा सकते हैं। इसीलिए पूजा के समय या मंदिर में प्रार्थना करने के समय सिर को ढंककर रखने से मन एकाग्र बना रहता है। पूजा के समय पुरुषों द्वारा शिखा बांधने को लेकर भी यही मान्यता है। सिर मनुष्य के अंगों में सबसे संवेदनशील स्थान होता है और इस संवेदनशील स्थान को मौसम की मार, कीटाणुओं के हमले, पत्थर आदि लगने, गिरने या लड़ाई-झगड़े में सिर को बचाने के लिए सिर पर पगड़ी, साफा या टोप लगाया जाता था, जैसे कि आजकल गाड़ी चलाने के लिए हेलमेट जरूरी हो गया है।
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वैज्ञानिक मतानुसार बालों की चुंबकीय शक्ति के कारण सिर के बालों में रोग फैलाने वाले कीटाणु आसानी से चिपक जाते हैं। ये कीटाणु बालों से शरीर के भीतर प्रवेश कर जाते हैं जिससे वे व्यक्ति को रोगी बनाते हैं। यह भी कहते हैं कि आकाशीय विद्युतीय तरंगें खुले सिर वाले व्यक्तियों के भीतर प्रवेश कर क्रोध, सिरदर्द, आंखों में कमजोरी आदि रोगों को जन्म देती हैं।

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