गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर- आज युद्ध खेलों की तरह लड़े जा रहे हैं और खेल युद्धों की तरह खेले जा रहे हैं

Edited By Updated: 25 Jul, 2025 11:27 AM

world summit on ethics and leadership

बेंगलुरु: बीते वर्षों में खेल में कीर्तिमान और प्रतिष्ठा की दौड़ में नैतिक मूल्यों की हानि एक बड़ी चिंता का विषय बन गई है, जिससे दर्शकों का विश्वास भी कई बार डगमगाया है। वहीं दूसरी ओर जब खेल भावना और मूल्यों के साथ खेला जाता है, तो वही खेल एक पूरी...

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बेंगलुरु: बीते वर्षों में खेल में कीर्तिमान और प्रतिष्ठा की दौड़ में नैतिक मूल्यों की हानि एक बड़ी चिंता का विषय बन गई है, जिससे दर्शकों का विश्वास भी कई बार डगमगाया है। वहीं दूसरी ओर जब खेल भावना और मूल्यों के साथ खेला जाता है, तो वही खेल एक पूरी पीढ़ी को प्रेरणा दे सकता है। वर्ल्ड फोरम फॉर एथिक्स इन बिज़नेस द्वारा आयोजित 7वें वर्ल्ड समिट ऑन एथिक्स एंड लीडरशिप इन स्पोर्ट्स में इसी विषय पर विश्व भर से खेल, राजनीति, व्यवसाय, शिक्षा, सामाजिक संस्थाओं और चिंतन मंचों से आए वक्ताओं ने यह विचार साझा किया कि क्या सफलता बिना मूल्यों के टिक सकती है ? और क्या वास्तव में नैतिकता के साथ भी शिखर तक पहुंचना संभव है?

सम्मेलन में खेल को शांति निर्माण के साधन के रूप में देखने, लैंगिक समानता, मानसिक स्वास्थ्य, चरम प्रदर्शन और दीर्घायु जैसे विषयों पर विचार पूर्ण चर्चा हुई। यह भी साझा किया गया कि कैसे मैदान से प्राप्त सबक जैसे निष्पक्ष खेल, टीम भावना और सहनशीलता राजनीति और व्यापार में नैतिक नेतृत्व को आकार दे सकते हैं।

गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर जी ने अपने मुख्य भाषण में कहा, “खेल में या तो आप जीतते हैं या किसी और को जिताते हैं। दोनों को समान उत्साह से मनाना सीखना चाहिए। खेलना ही अपने आप में आनंद का कारण है। जब हम इसे समझ लेते हैं, तो नैतिकता खेल में सहज हो जाती है। वरना वही मैदान हिंसक हो जाते हैं।”

मानसिक स्वास्थ्य के पहलू पर बोलते हुए गुरुदेव ने कहा, “एक शिशु चलने से पहले भी खेलना शुरू कर देता है। खेल हमारे स्वभाव में है, फिर आज हम कहां चूक रहे हैं?” 

गुरुदेव ने इस ओर ध्यान दिलाया कि संगीत और खेल होते हुए भी दुनिया की एक-तिहाई आबादी अकेलेपन, अवसाद और असंतोष से जूझ रही है, यह विचारणीय है।

गुरुदेव ने आगे कहा, “अगर हम जीवन को ही एक खेल मान लें तो न युद्ध होंगे, न मनमुटाव और न ही अविश्वास।”

सम्मेलन के अन्य प्रमुख वक्ताओं में शामिल थे - 17 वर्षीय पर्वतारोही काम्या कर्तिकेयन, जिन्होंने सातों महाद्वीपों की सर्वोच्च चोटियों पर चढ़ाई की है, ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता केविन यंग, यूक्रेन के सांसद माननीय स्व्यतोस्लाव यूराश, फ़िलिस्तीन की पहली महिला फुटबॉल कप्तान हनी थलजीह, यूरो 96 चैंपियन थॉमस हेल्मर और एशियाई खेलों में स्वर्ण जीतने वाली भारत की पहली महिला अश्वारोही दिव्यकृति सिंह। सभी वक्ताओं की सूची यहां दिए गए लिंक पर उपलब्ध है - https://ethicsinsports.org/program/

हनी थलजीह ने कहा, “बिना उद्देश्य के प्रदर्शन खोखला है। नैतिकता के बिना सफलता फुसफुसी है और ज़िम्मेदारी के बिना शक्ति ख़तरनाक है। सच्ची सफलता सिर्फ़ उन ट्रॉफ़ियों में नहीं है जो हम उठाते हैं, बल्कि उस जीवन में भी है जो हम इस दौरान जीते हैं क्योंकि खेल अलग-थलग नहीं होता। यह समाज का प्रतिबिंब होता है।"

एक विशेष सत्र में पैनलिस्ट्स ने ‘बेहतर बनाए गए खेल’ की अवधारणा पर चर्चा की- जहां खिलाड़ियों को चिकित्सकीय निगरानी में बेहतर प्रदर्शन वाली दवाओं के प्रयोग की अनुमति दी जाती है। कुछ ने इसे भविष्य की उपलब्धियों की दिशा में एक कदम बताया, तो कुछ ने इसे नैतिकता के पतन के रूप में देखा।

खेल पुरस्कारों में नैतिकता के पहलू को ध्यान में रखने वाले खेल प्रदर्शनों को सम्मानित किया, जिन्होंने खेल भावना और नैतिकता की मिसाल पेश की। उत्कृष्ट व्यक्तिगत पुरस्कार से ‘स्विस इंटरनेशनल फुटबॉलर’ झेरदान शकीरी को सम्मानित किया गया, जिन्होंने खेल के ज़रिए समावेशन, निष्पक्षता और अंतर-सांस्कृतिक संवाद को आगे बढ़ाया। खेलों में मानसिक स्वास्थ्य के उत्कृष्ट योगदान के लिए पुरस्कार ‘स्विस रोवर जनीन ग्मेलिन’ को मिला, जिन्होंने मानसिक स्वास्थ्य, महिला खिलाड़ियों के समर्थन और निष्पक्ष खेल की प्रेरणा दी।

वर्ल्ड फोरम फॉर एथिक्स इन बिज़नेस, जो संयुक्त राष्ट्र से विशेष परामर्शदाता दर्जा प्राप्त संस्था है, बीते दो दशकों से नैतिक मूल्यों के संवाहक के रूप में कार्यरत है। गुरुदेव श्री श्री रविशंकर के मार्गदर्शन में इस मंच ने यूरोपीय संसद, फ़ीफ़ा, मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट और जिनेवा स्थित संयुक्त राष्ट्र जैसे वैश्विक संगठनों के साथ मिलकर यह संदेश पहुंचाया है कि मूल्य और प्रदर्शन विरोधाभासी नहीं, बल्कि एक-दूसरे के पूरक हैं।

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