Edited By Pardeep,Updated: 22 Jul, 2025 11:00 PM

पड़ोसी देश पाकिस्तान भारी आर्थिक संकट से जूझ रहा है। मौजूदा वित्त वर्ष 2025-26 में उसे करीब 23 अरब डॉलर (करीब ₹6.50 लाख करोड़) का बाहरी कर्ज चुकाना है।
इंटरनेशनल डेस्कः पड़ोसी देश पाकिस्तान भारी आर्थिक संकट से जूझ रहा है। मौजूदा वित्त वर्ष 2025-26 में उसे करीब 23 अरब डॉलर (करीब ₹6.50 लाख करोड़) का बाहरी कर्ज चुकाना है। अगर वह समय पर यह भुगतान नहीं कर पाया, तो उसे “डिफॉल्टर” घोषित किया जा सकता है, जिसका असर सिर्फ पाकिस्तान ही नहीं, पूरे दक्षिण एशिया पर पड़ सकता है।
कितना है पाकिस्तान पर कुल कर्ज?
पाकिस्तान सरकार के इकोनॉमिक सर्वे 2024-25 के मुताबिक:
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कुल सार्वजनिक कर्ज: 76.01 ट्रिलियन पाकिस्तानी रुपये
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यह कर्ज लगातार वित्तीय कुप्रबंधन, अल्पकालिक सोच और बेलआउट निर्भरता के कारण बढ़ता गया है।
विदेशी मुद्रा भंडार भी मात्र कुछ हफ्तों के आयात के लिए ही काफी है, जिससे स्थिति और भयावह हो जाती है।
किन देशों से मिली है मदद?
पाकिस्तान को इस साल कुछ राहत जरूर मिली है:
आईएमएफ और अन्य देनदारियां
भले ही ये $12 अरब रोलओवर हो जाएं, पाकिस्तान को फिर भी करीब $11 अरब का अतिरिक्त भुगतान करना होगा, जो इन संस्थानों को देना है:
पाकिस्तान ने अपने बजट का 46.7% हिस्सा (8.2 ट्रिलियन रुपये) सिर्फ कर्ज चुकाने में रख दिया है, जिससे बाकी सभी क्षेत्रों का बजट कटौती की चपेट में आ गया है।
रक्षा पर खर्च, लेकिन आम जनता परेशान
आर्थिक संकट के बावजूद पाकिस्तान ने:
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रक्षा बजट में कोई कटौती नहीं की है।
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तुर्की से $900 मिलियन की ड्रोन डील की है।
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चीन से 40 J-35A स्टील्थ फाइटर जेट खरीदने की योजना बनाई है।
दूसरी ओर, शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी विकास योजनाएं प्रभावित हो रही हैं।
महंगाई, बेरोजगारी और टैक्स बोझ आम लोगों के लिए बढ़ रहा है।
आर्थिक सुधार की कोशिशें, लेकिन…
पाकिस्तान सरकार ने जनवरी 2025 में "Uraan Pakistan" नाम से 5-वर्षीय सुधार योजना की शुरुआत की, जिसमें निर्यात बढ़ाने, टेक्नोलॉजी और कृषि में निवेश, और ऊर्जा सुधार को प्राथमिकता दी गई है।
हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि:
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ये सुधार धीरे-धीरे जमीन पर उतर रहे हैं।
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बिना संरचनात्मक बदलाव (जैसे टैक्स बेस बढ़ाना, सरकारी घाटा कम करना, ऊर्जा सेक्टर में पारदर्शिता) के ये योजनाएं स्थायी हल नहीं बन पाएंगी।
अगर डिफॉल्ट हुआ तो क्या होगा?
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पाकिस्तान की क्रेडिट रेटिंग गिर सकती है।
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अंतरराष्ट्रीय निवेश रुक सकते हैं।
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रुपए की वैल्यू गिर सकती है और महंगाई आसमान छू सकती है।
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IMF और अन्य संस्थान कड़ी शर्तों पर ही मदद देंगे।
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क्षेत्रीय स्थिरता भी प्रभावित होगी — खासकर भारत, अफगानिस्तान और चीन से इसके आर्थिक व कूटनीतिक संबंधों पर असर पड़ेगा।