Edited By Ashish panwar,Updated: 20 Jan, 2020 12:00 AM
लंका में बढ़ते चीनी निवेश के असर को कम करने के लिए, भारत ने श्रीलंका के साथ सैन्य संबंधों को मजबूती देने पर जोर दिया है। श्रीलंका के दौरा पर गये राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के साथ द्विपक्षीय बैठक की और सैन्य...
इंटरनेशनल डेस्कः श्रीलंका में बढ़ते चीनी निवेश के असर को कम करने के लिए, भारत ने श्रीलंका के साथ सैन्य संबंधों को मजबूती देने पर जोर दिया है। श्रीलंका के दौरा पर गये राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के साथ द्विपक्षीय बैठक की और सैन्य संबंधों को मजबूती देने के साथ ही पड़ोसियों के साथ समुद्री संपर्क बढ़ाने का संकल्प लिया। इस क्षेत्र में चीन लंबे समय से भारत का प्रतिद्वंद्वी रहा है। उसने श्रीलंका और मालदीव में एयरपोर्ट को अपग्रेड करने के अतिरिक्त पोत व एक्सप्रेसवे तैयार कर क्षेत्र में अपनी पहुंच बढ़ाई है।
उधर, अजित डोभाल ने राष्ट्रपति राजपक्षे से शनिवार को मुलाकात की और समुद्री क्षेत्र में शोध सहयोग केंद्र स्थापित करने पर चर्चा की। राष्ट्रपति के ऑफिस से जारी बयान में हालांकि इस प्रस्तावित केंद्र के संबंध में पूरी जानकारी नहीं दी गई है, लेकिन इतना जरूर कहा गया है कि अन्य देशों को बतौर पर्यवेक्षक इसमें शामिल किया जाएगा। बयान में कहा गया है कि दोनों देशों ने मिलिटरी और कोस्टगार्ड के बीच करीबी सहयोग पर भी चर्चा की। चीन का निवेश भले ही श्रीलंका में बढ़ा हो लेकिन इस हकीकत के बावजूद राष्ट्रपति गोटबाया ने पद संभालने के बाद पहले विदेश दौरे के रूप में भारत को चुना और नवंबर के आखिर में नई दिल्ली पहुंचे। इस दौरान पीएम नरेंद्र मोदी ने श्रीलंका को बतौर 45 करोड़ डॉलर की सहायता की पेशकश की।
वहीं, राष्ट्रपति अब दूसरे विदेश दौरे के तहत चीन जाएंगे जबकि पीएम और उनके भाई महिंदा राजपक्षे भारत दौरे पर आएंगे। देश के दो शीर्ष नेताओं के पहले विदेश दौरे के तहत भारत आना जाहिर करता है कि नई दिल्ली, कोलंबो के लिए क्या मायने रखता है। श्रीलंका पारंपरिक रूप से भारत का सहयोगी रहा है, लेकिन चीन ने श्रीलंका में अरबों डॉलर का या तो निवेश किया है या उसे ऋण दिया है। पिछली सरकारों में भी चीनी निवेश में वृद्धि हुई है। गोटबाया के चीन दौरे पर टेक्नॉलजी, पर्यटन और आधारभूत संरचनाओं सहित विभिन्न क्षेत्रों पर चर्चा की जाएगी। बता दें कि राष्ट्रपति गोटबाया ने दिसंबर में भारत और पश्चिमी देशों से कहा था कि अगर वे उनके देश में निवेश नहीं करते तो उन्हें मजबूरन चीन से वित्तीय मदद लेनी पड़ेगी।