भारत के 5 पड़ोसी देश चीन में छपवा रहे करंसी नोट, नेपाल ने 70 साल की परंपरा तोड़ी ! खतरे में US-UK का बाज़ार

Edited By Updated: 15 Nov, 2025 04:33 PM

china emerges as major currency printer for india s neighbours

भारत के पाँच पड़ोसी देश नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका, थाईलैंड और मलेशिया अब अपने नोट चीन में छपवा रहे हैं। नेपाल के 43 करोड़ नोटों का टेंडर CBPMC को मिला है। कम लागत, आधुनिक सुरक्षा तकनीक और चीन की सॉफ्ट पावर इस बदलाव के मुख्य कारण हैं, जिससे पश्चिमी...

International Desk: भारत के 5 पड़ोसी देश नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका, थाईलैंड और मलेशिया अब अपनी करंसी नोट की छपाई के लिए चीन पर निर्भर हो रहे हैं। हाल ही में नेपाल राष्ट्रीय बैंक (NRB) ने 1000 नेपाली रुपए के 43 करोड़ नोट छापने का टेंडर चीन की सरकारी कंपनी चाइना बैंक नोट प्रिंटिंग एंड मिंटिंग कॉर्पोरेशन (CBPMC) को दिया है, जिससे भारत और पश्चिमी देशों में चिंता बढ़ गई है।

 

नेपाल ने 70 साल की परंपरा तोड़ी
1945 से लेकर 1955 तक नेपाल के सभी नोट भारत की नासिक प्रेस में छपते थे। उसके बाद भी भारत ही प्रमुख भागीदार रहा। लेकिन 2015 से नेपाल ने वैश्विक टेंडर जारी कर चीन की CBPMC को नोट छपाई के लिए चुना, क्योंकि यह 20-30% सस्ती है और नोटों में आधुनिक सुरक्षा फीचर्स भी शामिल हैं जैसे कि कोलोरडांस तकनीक।

 

चीन की ओर क्यों झुक रहे हैं ये देश?

  • कम लागत: नेपाल ने 2016 में चीन से नोट छपवा कर अमेरिकी कंपनियों की तुलना में 3.76 मिलियन डॉलर बचाए।
  • आधुनिक सुरक्षा तकनीक: CBPMC की ‘कोलोरडांस’ तकनीक नकली नोट रोकने में बेहतर मानी जाती है।
  • तेज़ डिलीवरी: चीन बड़े पैमाने पर तेजी से सप्लाई करने में सक्षम है।
  • सॉफ्ट पावर और BRI का प्रभाव: कई देश चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के तहत आर्थिक रूप से भी जुड़ रहे हैं।

 

कौन-कौन सा देश करवा रहा छपाई ?

  • नेपाल-2015 से चीन में नोट छपवा रहा  
  • बांग्लादेश - 2010 से
  • श्रीलंका-2015 से
  • थाईलैंड- 2018 से
  • मलेशिया- 2010 के बाद से

 भूटान अभी भी भारतीय प्रेस पर निर्भर है, जबकि पाकिस्तान अपनी मुद्रा खुद छापता है लेकिन चीन से तकनीकी मदद ले चुका है।

 

चीन बन रहा नया वैश्विक करंसी हब

  • चीन का CBPMC दुनिया का सबसे बड़ा नोट छापने वाला संस्थान है।
  •  स्थापना: 1948
  •  कर्मचारी: 18,000+
  •  सुरक्षित फैसिलिटीज़: 10

यह संस्थान अब खासकर एशियाई और अफ्रीकी देशों को सस्ते, सुरक्षित और आधुनिक प्रिंटिंग समाधान दे रहा है, जिससे अमेरिका के Bureau of Engraving and Printing और ब्रिटेन की De La Rue जैसी कंपनियों का बाज़ार प्रभावित हो रहा है।

 

पश्चिमी बाज़ार पर पड़ रहा असर
इसका असर पश्चिमी बाज़ार पर पड़ रहा है क्योंकि चीन की प्रिंटिंग लागत 50% कम है और सुरक्षा फीचर्स भी उन्नत हैं। इससे विकासशील देश पश्चिमी कंपनियों से दूरी बना रहे हैं। अगर यह रुझान जारी रहा तो पश्चिमी कंपनियों को अपनी लागत कम करनी पड़ेगी या नए उत्पाद जैसे पॉलीमर नोट्स को बढ़ावा देना पड़ेगा।

 

भारत पीछे क्यों ?
भारत की सिक्योरिटी प्रिंटिंग एंड मिंटिंग कॉर्पोरेशन मुख्य रूप से घरेलू आवश्यकताओं पर फोकस करती है। लागत चीन की तुलना में 20-30% अधिक है।राजनीतिक कारणों, खासकर नेपाल-भारत तनाव, ने भी दूरी बढ़ाई है। उदाहरण: 2020 में नेपाल ने नया राजनीतिक मानचित्र जारी किया, जिसमें भारत के लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा को शामिल किया गया। यह विवाद भी नेपाल के झुकाव में राजनीतिक कारक बनकर उभरा।

 

राष्ट्रीय सुरक्षा पर असर 
नोट छपवाना एक संवेदनशील प्रोसैस है। डिजाइन, सुरक्षा फीचर्स और सीरियल नंबर बेहद गोपनीय रखे जाते हैं। कई रणनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि चीन पर इतनी निर्भरता से आर्थिक दबाव (Debt Trap) और रणनीतिक ब्लैकमेल का खतरा बढ़ सकता है जैसा श्रीलंका के हम्बनटोटा पोर्ट मामले में देखा गया।

 

भारत में नोट छपाई का खर्च
RBI की रिपोर्ट के अनुसार भारत में लागत भले अधिक है, लेकिन प्रक्रिया पूरी तरह सुरक्षित और आत्मनिर्भर है। भारत के पड़ोसी देश कम लागत और आधुनिक तकनीक की वजह से चीन की ओर रुख कर रहे हैं। यह केवल आर्थिक बदलाव नहीं, बल्कि भूराजनीतिककरण और सॉफ्ट पावर एक्सपेंशन का हिस्सा है। आगे चलकर यह क्षेत्रीय ताकत संतुलन को प्रभावित कर सकता है। भारत में लागत 2023-24 में 5,101 करोड़ रु और 2024-25 में 6,372.8 करोड़ रुपए आई है।

 

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