वैज्ञानिकों की इस चेतावनी को न करें अनदेखा: एक छोटी-सी रील बन सकती है बड़ा खतरा! रुकें, समझे और जानें ऐसा क्यों ?

Edited By Updated: 21 Aug, 2025 11:07 AM

do not ignore this warning of scientists a small reel can become a big danger

आज के दौर में इंस्टाग्राम रील्स, टिकटॉक और यूट्यूब शॉर्ट्स हमारी ज़िंदगी का हिस्सा बन चुके हैं। रील्स देखनेको कई लोग बस समय बिताने का एक आसान और मनोरंजक तरीका मानते हैं।

नेशनल डेस्क: आज के दौर में इंस्टाग्राम रील्स, टिकटॉक और यूट्यूब शॉर्ट्स हमारी ज़िंदगी का हिस्सा बन चुके हैं। रील्स देखनेको कई लोग बस समय बिताने का एक आसान और मनोरंजक तरीका मानते हैं। इस तरीके को लेकर न्यूरोसाइंटिस्ट और न्यूरोलॉजिस्ट चेतावनी देते हैं कि इनका हमारे दिमाग पर पड़ने वाला असर हमारी सोच से कहीं ज़्यादा गंभीर और खतरनाक हो सकता है।

शॉर्ट वीडियो: एक नया डिजिटल नशा

कई अध्ययनों से पता चला है कि शॉर्ट-फॉर्म वीडियो हमारे मस्तिष्क में ठीक उसी तरह के रिवॉर्ड पाथवे (पुरस्कार मार्ग) को सक्रिय करते हैं, जिस तरह से शराब और जुआ जैसे नशीले पदार्थ करते हैं। एक चीनी  यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर द्वारा की गई शोध के अनुसार जो लोग इन वीडियो को बहुत ज़्यादा देखते हैं, उनके दिमाग के रिवॉर्ड पाथवे में ज़्यादा सक्रियता देखी गई। यह वही सर्किट है जो किसी भी लत के दौरान सक्रिय होता है।

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उनका कहना है कि शॉर्ट-फॉर्म वीडियो की लत एक वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य खतरा बन चुकी है। चीन में औसतन एक यूज़र रोज़ाना 151 मिनट इन वीडियो को देखता है। इस तरह के 'तत्काल पुरस्कार' का लगातार सेवन न केवल ध्यान केंद्रित करने की हमारी क्षमता, नींद और मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है बल्कि डिप्रेशन का खतरा भी बढ़ाता है।

डोपामाइन और मस्तिष्क का कनेक्शन

हमारे मस्तिष्क में एक अहम न्यूरोट्रांसमीटर होता है जिसे डोपामाइन कहते हैं। यह हमारे मूड, प्रेरणा और रिवॉर्ड सिस्टम को कंट्रोल करने में अहम भूमिका निभाता है। जब हम कोई अच्छा काम करते हैं, स्वादिष्ट खाना खाते हैं या अपने दोस्तों के साथ समय बिताते हैं, तो यह हमें खुशी का एहसास कराता है। लेकिन लत लगाने वाली चीज़ें, जैसे कि शॉर्ट वीडियो, इस डोपामाइन प्रणाली को हाईजैक कर लेती हैं।

एक एक्सपर्ट बताते हैं कि जब हम रील्स जैसी कोई लत लगाने वाली चीज़ देखते हैं, तो डोपामाइन का स्तर बढ़ जाता है, जिससे हमें कुछ समय की खुशी मिलती है। बार-बार ऐसा होने पर हमारे दिमाग में न्यूरो-कनेक्शन बनने लगते हैं और हम उस खुशी को पाने के लिए और ज़्यादा वीडियो देखने की लालसा करने लगते हैं। यह एक ऐसा दुष्चक्र है, जिसमें फंसकर हमारा दिमाग लगातार रील्स की मांग करने लगता है।

मस्तिष्क के अंगों पर प्रभाव

  • प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स: यह हमारे दिमाग का वह हिस्सा है जो ध्यान, आत्म-नियंत्रण और सही निर्णय लेने के लिए जिम्मेदार होता है। लगातार कुछ-कुछ सेकंड में वीडियो बदलने से हम इस हिस्से का ज़रूरत से ज़्यादा इस्तेमाल करते हैं। समय के साथ यह हिस्सा सिकुड़ सकता है, जिससे हमारे रोज़मर्रा के काम और एकाग्रता पर असर पड़ता है।
  • हिप्पोकैम्पस: यह हिस्सा हमारी याददाश्त और सीखने की क्षमता के लिए जिम्मेदार है। रात में देर तक रील्स देखने से नींद की गुणवत्ता खराब होती है, जिससे हिप्पोकैम्पस ठीक से काम नहीं कर पाता। इसका नतीजा यह होता है कि लोगों की ध्यान केंद्रित करने की क्षमता और याददाश्त कमजोर होने लगती है।

एक एक्सपर्ट के मुताबिक शराब रिवॉर्ड सिस्टम को हाईजैक कर लेती है, उसी तरह रील्स इसे अति-उत्तेजित कर देती हैं। इससे आवेगपूर्ण व्यवहार, आत्म-नियंत्रण की कमी और खुशी की तलाश का एक अंतहीन चक्र शुरू हो जाता है।

कितना स्क्रीन समय है सुरक्षित?

कोई भी चीज़ चाहे वह शराब हो या सोशल मीडिया, जब ज़रूरत से ज़्यादा होती है, तो लत बन जाती है। डॉ. बहरानी के अनुसार, वैसे तो कोई निश्चित सुरक्षित सीमा नहीं है, लेकिन संयम बहुत ज़रूरी है। वे सलाह देते हैं कि आदर्श रूप से स्क्रीन का समय दिन में 2-3 घंटे से ज़्यादा नहीं होना चाहिए। इससे ज़्यादा का समय दिमाग के लिए हानिकारक हो सकता है। वे इसे "डिजिटल नशा" कहते हैं, जो अगर नियंत्रित न किया जाए, तो "डिजिटल डिमेंशिया" में बदल सकता है, जहाँ खराब नींद और याददाश्त की कमी जैसी समस्याएं स्थायी हो जाती हैं।

शॉर्ट वीडियो मनोरंजक लग सकते हैं, लेकिन इनकी तत्काल संतुष्टि की धारा हमारे मस्तिष्क के काम करने के तरीके को बदल सकती है, जिससे ध्यान, याददाश्त और आत्म-नियंत्रण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

 

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