RTI का बड़ा खुलासा: SBI से लेकर PNB तक, सरकारी बैंक थर्ड पार्टी वसूली एजेंटों पर उड़ा रहे करोड़ों!

Edited By Updated: 05 Aug, 2025 12:00 PM

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भारत में वर्षों से बैंक लोन की वसूली के लिए रिकवरी एजेंटों को हायर किया जाता है। ये एजेंट बैंकों की तरफ से उधार लिए गए पैसे की वसूली करते हैं। हालांकि, इन एजेंटों को लेकर कई बार विवाद खड़े हुए हैं। उन पर अक्सर आरोप लगते रहे हैं कि वे उधारकर्ताओं को...

नेशनल डेस्क : भारत में वर्षों से बैंक लोन की वसूली के लिए रिकवरी एजेंटों को हायर किया जाता है। ये एजेंट बैंकों की तरफ से उधार लिए गए पैसे की वसूली करते हैं। हालांकि, इन एजेंटों को लेकर कई बार विवाद खड़े हुए हैं। उन पर अक्सर आरोप लगते रहे हैं कि वे उधारकर्ताओं को धमकाते हैं, उन्हें मानसिक रूप से प्रताड़ित करते हैं और उनकी निजी जानकारी का उल्लंघन करते हैं। इस व्यवहार की आलोचना खुद सुप्रीम कोर्ट भी कई बार कर चुका है।

सुप्रीम कोर्ट ने खासतौर पर इस बात पर आपत्ति जताई कि बैंक बार-बार थर्ड पार्टी एजेंटों को वसूली का जिम्मा सौंप देते हैं, जो RBI के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन करते हैं और दबाव बनाने वाली रणनीति अपनाते हैं।

RTI से खुलासा: कितनी पारदर्शिता?

सूचना का अधिकार (RTI) के तहत वित्तीय सेवा विभाग (DFS) से यह जानने की कोशिश की कि देश के सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक जो टैक्सपेयर्स के पैसे से चलते हैं। वसूली एजेंटों पर कितना खर्च कर रहे हैं। RTI में पूछा गया कि:

  • पिछले 5 वर्षों में रिकवरी एजेंटों पर कितना खर्च हुआ?
  • कितने एजेंट हायर किए गए?
  • भुगतान की क्या पॉलिसी है?

कुछ बैंकों ने डेटा दिया, कुछ ने टालमटोल की, और कई बैंकों ने गोपनीयता का हवाला देकर जानकारी देने से इनकार कर दिया।

किस बैंक ने क्या बताया?

पंजाब नेशनल बैंक (PNB)

PNB सबसे ज्यादा पारदर्शी रहा। उसने हर साल की एजेंसी संख्या और खर्च की जानकारी दी:

  • 2019–20: ₹37.03 करोड़ (514 एजेंसियां)
  • 2020–21: ₹36.71 करोड़ (602 एजेंसियां)
  • 2021–22: ₹57.95 करोड़ (626 एजेंसियां)
  • 2022–23: ₹81.57 करोड़ (787 एजेंसियां)
  • 2023–24: ₹49.62 करोड़ (590 एजेंसियां)

PNB ने यह भी बताया कि कोई परफॉर्मेंस सब्सिडी नहीं दी जाती, केवल बैंक के आंतरिक दिशानिर्देशों के मुताबिक कमीशन का भुगतान होता है। हालांकि, उन्होंने पूरी नीति दिखाने से मना कर दिया।

बैंक ऑफ महाराष्ट्र

इकलौता बैंक जिसने स्पष्ट सालाना खर्च बताया:

  • 2019-20: ₹14.26 करोड़
  • 2020-21: ₹16.94 करोड़
  • 2021-22: ₹21.23 करोड़
  • 2022-23: ₹21.38 करोड़
  • 2023-24: ₹31.08 करोड़
  • एजेंटों की संख्या: 2022-23 में 476 से बढ़कर 2023-24 में 547

हालांकि, इसने भी पेमेंट डिटेल और नीतियों को साझा करने से मना कर दिया।

सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया

  • 2019-20: ₹2.42 करोड़
  • 2020-21: ₹2.38 करोड़
  • 2021-22: ₹3.0 करोड़
  • 2022-23: ₹4.05 करोड़
  • 2023-24: ₹5.87 करोड़
  • एजेंटों की संख्या: 2019-20 में 184 से बढ़कर 2023-24 में 279

नीतियों की जानकारी देने से इस बैंक ने भी इनकार किया।

इंडियन बैंक

  • 2021-22: ₹33.20 करोड़ (867 एजेंट)
  • 2022-23: ₹59.40 करोड़ (988 एजेंट)
  • 2023-24: ₹68.74 करोड़ (934 एजेंट)
  • पुराने वर्षों का डेटा नहीं दिया गया।

नीति दस्तावेज भी साझा नहीं किए।

बाकी बैंकों का जवाब

बैंक ऑफ बड़ौदा - कहा कि डेटा केंद्रीय रूप से उपलब्ध नहीं है, इकट्ठा करना 'संसाधनों की बर्बादी' होगी। RTI अधिनियम की धारा 7(9) और 8(1)(D) का हवाला देकर जानकारी देने से मना कर दिया।

बैंक ऑफ इंडिया - पूरी तरह इनकार। कहा यह आंतरिक मामला है और इसमें जनहित नहीं है।

केनरा बैंक - RTI को अस्पष्ट बताया और वेबसाइट देखने की सलाह दी। नीति साझा करने से इनकार किया।

इंडियन ओवरसीज बैंक - कहा कि डेटा आसानी से उपलब्ध नहीं है और इसे इकट्ठा करना व्यावहारिक नहीं होगा।

पंजाब एंड सिंध बैंक - पूरी RTI को खारिज कर दिया, यह कहकर कि सवाल अस्पष्ट हैं।

भारतीय स्टेट बैंक (SBI) - किसी भी जानकारी को देने से मना किया, यहां तक कि अपील पर भी। व्यावसायिक गोपनीयता का तर्क दिया।

यूनियन बैंक ऑफ इंडिया - कहा डेटा संकलित नहीं किया जाता। साथ ही इसे इकट्ठा करना अनुचित संसाधनों की बर्बादी होगा।

यूको बैंक - कहा ये सभी डेटा कमर्शियल सीक्रेट हैं और शेयर नहीं किए जा सकते।

यह मुद्दा क्यों अहम है?

लाखों लोग देशभर में बैंकों से लोन लेते हैं। जब वे किसी कारणवश लोन नहीं चुका पाते, तो वसूली एजेंट उनके पीछे लग जाते हैं। कई बार ये एजेंट धमकी, बदसलूकी और अवैध तरीकों से पैसे वसूलने की कोशिश करते हैं। अब सवाल यह है कि बैंकों ने इन एजेंटों पर कितना खर्च किया? उनका प्रशिक्षण कैसे होता है? और क्या कोई नियमन है?

RTI से सामने आया कि:

  • अधिकतर बैंक जानकारी छिपाते हैं।
  • पारदर्शिता के नाम पर कानूनी छूट का हवाला दिया जाता है।
  • टैक्सपेयर्स के पैसे से इन एजेंटों को हायर किया जा रहा है, लेकिन जवाबदेही नहीं है।



 

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