किरायेदारों के हक में दिल्ली हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: इस काम के लिए अब मकान मालिक की NOC नहीं जरूरी...

Edited By Updated: 25 Sep, 2025 09:32 AM

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दिल्ली में किराए पर रहने वालों के लिए हाईकोर्ट ने एक बेहद अहम और राहत भरा फैसला सुनाया है। यह फैसला उन तमाम किरायेदारों के हक में आया है जो लंबे समय से बिजली खपत से जुड़ी समस्याओं और मकान मालिक की अनावश्यक दखलअंदाजी से परेशान थे।

नेशनल डेस्क: दिल्ली में किराए पर रहने वालों के लिए हाईकोर्ट ने एक बेहद अहम और राहत भरा फैसला सुनाया है। यह फैसला उन तमाम किरायेदारों के हक में आया है जो लंबे समय से बिजली खपत से जुड़ी समस्याओं और मकान मालिक की अनावश्यक दखलअंदाजी से परेशान थे।

अब अगर कोई किरायेदार अपनी खपत के मुताबिक बिजली मीटर का लोड कम करवाना चाहता है, तो उसे मकान मालिक की अनुमति या NOC की जरूरत नहीं पड़ेगी। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि बिजली का उपभोग करने वाला असल ग्राहक किरायेदार होता है, इसलिए उसे यह अधिकार है कि वह अपनी आवश्यकता के अनुसार लोड कम करवा सके।

फैसले का कानूनी आधार – उपभोक्ता है किरायेदार, न कि मकान मालिक
यह निर्णय न्यायमूर्ति मिनी पुष्करणा की एकल पीठ ने सुनाया। कोर्ट ने कहा कि बिजली उपभोग की जिम्मेदारी उस व्यक्ति की है जो इसका वास्तविक उपयोग करता है, और इस मामले में वह किरायेदार है। अतः यह जरूरी नहीं है कि किरायेदार अपनी खपत के लिए मकान मालिक की सहमति का इंतजार करे। कोर्ट ने यह भी जोड़ा कि यदि किरायेदार कम बिजली खर्च करता है, तो उसे पुराने अधिक लोड के कारण भारी-भरकम बिल चुकाना पड़े — यह न केवल अन्यायपूर्ण है, बल्कि आर्थिक रूप से भी तर्कसंगत नहीं है।

अनसल टॉवर का मामला बना मिसाल
यह आदेश दिल्ली के अंसल टॉवर स्थित एक हाई-एंड फ्लैट में रह रहे किरायेदार की याचिका पर सुनाया गया। किरायेदार पिछले कई वर्षों से उस फ्लैट में रह रहा है। लेकिन संपत्ति विवाद के चलते उसे लगातार मानसिक और वित्तीय तनाव का सामना करना पड़ रहा था। दरअसल, फ्लैट की मालिक महिला के निधन के बाद उनकी संपत्ति को वसीयत के तहत बड़े बेटे की पत्नी के नाम ट्रांसफर किया गया था। लेकिन कानूनी प्रक्रिया अधूरी होने की वजह से विवाद पैदा हो गया।

इस बीच, किरायेदार ने पाया कि उसका बिजली मीटर अभी भी 16 KVA के लोड पर चल रहा था, जबकि उसकी वास्तविक खपत काफी कम थी। ज्यादा लोड होने के कारण उसे अनावश्यक रूप से भारी बिजली बिल भरना पड़ रहा था। राहत की उम्मीद में उसने बिजली कंपनी बीएसईएस से लोड कम करने की अपील की, लेकिन मकान मालिक की अनुमति न होने के आधार पर कंपनी ने आवेदन अस्वीकार कर दिया।

कोर्ट का आदेश: BSES 4 सप्ताह में करे कार्रवाई
हाईकोर्ट ने किरायेदार की याचिका को उचित मानते हुए बीएसईएस को आदेश दिया है कि वह चार सप्ताह के भीतर किरायेदार के बिजली लोड में कटौती की प्रक्रिया पूरी करे। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यह आदेश केवल किरायेदार के उपभोग अधिकार से जुड़ा है और इसका संपत्ति के स्वामित्व या ट्रांसफर विवादों पर कोई असर नहीं पड़ेगा।

कोर्ट ने बीएसईएस के इस तर्क को भी खारिज कर दिया कि बिना मकान मालिक की सहमति के लोड कम नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने इसे "अनावश्यक अड़चन" करार देते हुए कहा कि यह व्यवस्था उपभोक्ता के अधिकारों के खिलाफ है।

किरायेदारों को राहत और मकान मालिकों की दखलअंदाजी पर रोक
यह फैसला आने वाले समय में देशभर के किरायेदारों के लिए मिसाल बनेगा, खासकर उन शहरों में जहां किराए पर रहना आम है और बिजली जैसे बुनियादी जरूरतों में भी मकान मालिक की मर्जी थोप दी जाती है।

अब किरायेदार बिना किसी कानूनी डर या मकान मालिक की सहमति के अपनी जरूरत के अनुसार बिजली लोड घटवा सकता है, और इस फैसले को लागू करवाने के लिए वह सीधे बिजली कंपनी से संपर्क कर सकता है।

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