Edited By Shubham Anand,Updated: 16 Oct, 2025 02:46 PM

भारत के अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने अधिवक्ता राकेश किशोर के खिलाफ आपराधिक अवमानना की कार्यवाही की अनुमति दे दी है। राकेश किशोर ने सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई पर जूता फेंकने की कोशिश की थी। सुप्रीम कोर्ट ने इसे न्यायपालिका की गरिमा...
नेशनल डेस्क : भारत के अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने अधिवक्ता राकेश किशोर के खिलाफ आपराधिक अवमानना की कार्यवाही शुरू करने की अनुमति दे दी है। राकेश किशोर ने एक सप्ताह पहले सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) बी.आर. गवई पर जूता फेंकने की कोशिश की थी। सुप्रीम कोर्ट ने इस घटना को न्यायपालिका की गरिमा के खिलाफ बताया है। इस मामले की सुनवाई अब दिवाली की छुट्टियों के बाद होगी।
संस्थागत अखंडता पर सवाल
वरिष्ठ अधिवक्ता और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) के अध्यक्ष विकास सिंह और भारत के सॉलिसिटर जनरल (एसजी) तुषार मेहता ने इस मामले को जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष उठाया। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि इस घटना से संस्थागत अखंडता दांव पर है। उन्होंने चिंता जताई कि कुछ लोग सोशल मीडिया पर इस कृत्य का महिमामंडन कर रहे हैं। मेहता ने कहा, "सोशल मीडिया एल्गोरिदम पर काम करता है, जो इस तरह की घटनाओं को बढ़ावा देता है।"
न्यायपालिका की गरिमा पर जोर
जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि मुख्य न्यायाधीश की उदारता इस बात को दर्शाती है कि संस्था ऐसी घटनाओं से अप्रभावित रहती है। उन्होंने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और अनुशासन के बीच संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता पर बल दिया। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, "हिंसा को कभी बढ़ावा नहीं दिया जा सकता। अगर ऐसी कार्यवाहियों को प्रोत्साहन मिलेगा, तो सोशल मीडिया पर सब कुछ बिकाऊ हो जाएगा।"
जस्टिस बागची का बयान
जस्टिस जॉयमाल्या बागची ने इस मामले पर टिप्पणी करते हुए कहा, "न्यायपालिका अपने आचरण और गरिमा से जीवित रहती है। मुख्य न्यायाधीश की शांति और संयम ने संस्था की सच्ची भावना को दर्शाया है।" उन्होंने सवाल उठाया, "क्या ऐसी घटनाओं को बढ़ावा देना उचित है? हमारे सामने कई महत्वपूर्ण मामले हैं। क्या इस तरह के मुद्दों पर समय बर्बाद करना ठीक है?" एससीबीए अध्यक्ष विकास सिंह ने जोर देकर कहा कि जूता फेंकने की घटना का महिमामंडन बंद होना चाहिए। उन्होंने बताया कि आरोपी वकील राकेश किशोर को अपने कृत्य पर कोई पछतावा नहीं है, इसलिए इस घटना पर सख्त कार्रवाई जरूरी है।
सुप्रीम कोर्ट का रुख
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई को दिवाली की छुट्टियों के बाद के लिए टाल दिया है। कोर्ट ने कहा कि वह रोजमर्रा के महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई पर ध्यान देना चाहता है, ताकि समय का दुरुपयोग न हो। जस्टिस सूर्यकांत ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का समर्थन करते हुए कहा, "हम सभी स्वतंत्रता के पक्षधर हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि अनुशासन और गरिमा को ठेस पहुंचाई जाए।" इस घटना ने न्यायपालिका और सोशल मीडिया के दुरुपयोग को लेकर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। मामले की सुनवाई और इसके परिणाम पर सभी की नजरें टिकी हैं।