रोहिंग्या मामले में CJI के समर्थन में उतरे 44 पूर्व जज, बताया न्यायपालिका को बदनाम करने की चाल

Edited By Updated: 09 Dec, 2025 09:01 PM

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सुप्रीम कोर्ट के CJI सूर्यकांत की रोहिंग्या शरणार्थियों पर टिप्पणी को लेकर मचे विवाद में 44 पूर्व जजों ने साझा बयान जारी कर आलोचना को खारिज किया। उन्होंने कहा कि CJI के खिलाफ प्रेरित अभियान न्यायपालिका की स्वतंत्रता को खतरे में डालता है। बयान में...

नेशनल डेस्क : सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (CJI) सूर्यकांत द्वारा रोहिंग्या शरणार्थियों पर की गई टिप्पणी को लेकर मचे विवाद में अब 44 पूर्व जजों ने साझा बयान जारी कर अपनी प्रतिक्रिया दी है। इस बयान में उन्होंने उन पूर्व जजों, सीनियर वकीलों और लीगल स्कॉलर्स की आलोचना को खारिज करते हुए कहा कि CJI के खिलाफ चलाया जा रहा अभियान न्यायपालिका को बदनाम करने का प्रयास है।

CJI की टिप्पणी और विवाद
CJI सूर्यकांत ने सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान कहा था कि रोहिंग्या शरणार्थियों को शरणार्थी का दर्जा किसने दिया। उन्होंने टिप्पणी की थी कि “पहले आप सुरंग खोदकर या बाड़ पार करके अवैध रूप से घुसते हैं, फिर खाना, पानी और पढ़ाई का हक मांगते हैं।” यह टिप्पणी मशहूर लेखिका और मानवाधिकार कार्यकर्ता डॉ. रीता मनचंदा की याचिका पर सुनवाई के दौरान आई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि भारत में कई रोहिंग्या शरणार्थियों को हिरासत में लेकर गायब कर दिया गया है।

पूर्व जजों ने क्या कहा
44 रिटायर्ड जजों ने साझा बयान में कहा कि सुप्रीम कोर्ट की आलोचना अस्वीकार्य है। उन्होंने स्पष्ट किया कि न्यायिक कार्यवाही पर तर्कसंगत आलोचना की जा सकती है, लेकिन CJI के खिलाफ प्रेरित अभियान चलाना न्यायपालिका की स्वतंत्रता को खतरे में डालने जैसा है।

साझा बयान में पूर्व जजों ने लिखा कि रोहिंग्या भारत में कानूनी रूप से शरणार्थी नहीं हैं। ये किसी वैधानिक शरणार्थी संरक्षण कानून के तहत नहीं आए हैं। भारत ने UN Refugee Convention 1951 और 1967 प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं। उन्होंने कहा कि अवैध रूप से आए लोगों को आधार कार्ड, राशन कार्ड जैसे दस्तावेज कैसे मिले, यह गंभीर चिंता का विषय है। इस पर सुप्रीम कोर्ट की निगरानी वाली SIT को जांच करनी चाहिए कि इन दस्तावेज़ों में कौन शामिल था।

पूर्व जजों ने यह भी कहा कि रोहिंग्या का म्यांमार में कानूनी दर्जा भी विवादित है। इसलिए भारतीय अदालतों को स्पष्ट कानूनी श्रेणियों के अनुसार काम करना चाहिए। न्यायपालिका ने संविधान के दायरे में रहकर मानव गरिमा और राष्ट्रीय सुरक्षा का संतुलन बनाए रखा है। ऐसे में अमानवीयता का आरोप लगाना अनुचित है और न्यायिक स्वतंत्रता के लिए खतरा है।

रोहिंग्या पर टिप्पणी का क्यों किया था विरोध?
इससे पहले कई पूर्व जजों, सीनियर वकीलों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने CJI को खुला पत्र लिखा था। इसमें उन्होंने कहा कि रोहिंग्या शरणार्थियों पर टिप्पणी संविधान विरोधी, अमानवीय और गैर-जिम्मेदाराना है। उनका कहना था कि यह टिप्पणी नरसंहार से भाग रहे लोगों को अपमानित करती है। भारत के संविधान का अनुच्छेद 21 हर व्यक्ति को जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार देता है, चाहे वह भारतीय हो या नहीं। ऐसे में कोर्ट की भाषा न्यायपालिका की साख को नुकसान पहुंचा सकती है।

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