Married Woman's Property: अगर पति-बच्चे न हों तो शादीशुदा महिला की संपत्ति का वारिस कौन? जानें कानूनी नियम

Edited By Updated: 25 Sep, 2025 11:25 AM

supreme court stymied by sibal s argument on married woman s inheritance

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 से जुड़े एक अहम मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ी और सख्त टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि वह हिंदू समाज की हजारों साल पुरानी संरचना को तोड़ने का काम नहीं करेगा। जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और आर. महादेवन की...

नेशनल डेस्क। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 से जुड़े एक अहम मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ी और सख्त टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि वह हिंदू समाज की हजारों साल पुरानी संरचना को तोड़ने का काम नहीं करेगा। जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और आर. महादेवन की बेंच ने कहा कि कुछ मुश्किल मामलों के आधार पर पूरे कानून को नहीं बदला जा सकता क्योंकि इससे सामाजिक ढांचा चूर-चूर हो सकता है।

क्या है पूरा मामला?

सुप्रीम कोर्ट में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 15 और 16 को चुनौती दी गई है। इन धाराओं के तहत अगर किसी हिंदू महिला की बिना वसीयत बनाए मृत्यु हो जाती है तो उसकी संपत्ति पहले उसके पति और बच्चों को मिलती है। इसके बाद पति के परिवार को प्राथमिकता दी जाती है। महिला के माता-पिता या भाई-बहनों को संपत्ति तभी मिलती है जब पति का कोई उत्तराधिकारी न हो। याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि यह प्रावधान भेदभावपूर्ण है क्योंकि एक पुरुष की संपत्ति उसके माता-पिता, पत्नी और बच्चों में बराबर बँटती है।

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सुप्रीम कोर्ट का रुख क्या है?

बेंच ने साफ किया कि महिलाओं के अधिकार महत्वपूर्ण हैं लेकिन समाज की संरचना को भी बनाए रखना जरूरी है। कोर्ट ने कहा, "हम एक अदालत के रूप में आपको चेतावनी दे रहे हैं। हिंदू सामाजिक संरचना है और आप इसे ध्वस्त न करें। हम अपने फैसले से हजारों वर्षों से चली आ रही व्यवस्था को तोड़ना नहीं चाहते।"

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जजों ने 2005 के संशोधन का भी जिक्र किया जिसमें बेटियों को पैतृक संपत्ति में समान अधिकार दिया गया था और कहा कि इससे परिवारों में दरारें आईं। बेंच ने यह भी कहा कि अगर कोई महिला अपनी संपत्ति अपने मायके वालों को देना चाहती है तो वह वसीयत बना सकती है।

पक्ष-विपक्ष में तीखी बहस

याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने तर्क दिया कि महिला अब कोई वस्तु नहीं है और उसे समान अधिकार मिलना चाहिए। उन्होंने कहा कि पुरुष को वसीयत बनाने की जरूरत नहीं पड़ती जबकि महिला को ऐसा करना पड़ता है जो अपने आप में भेदभाव है।

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दूसरी ओर केंद्र सरकार की ओर से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल के.एम. नटराज ने कानून का बचाव करते हुए कहा कि यह सोच-समझकर बनाया गया कानून है और याचिकाकर्ता सामाजिक संरचना को खत्म करने की कोशिश कर रहे हैं।

फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को मध्यस्थता के लिए भेजा है और अगली सुनवाई 11 नवंबर को तय की है। कोर्ट ने कहा कि कानून और समाज के बीच संतुलन बनाना जरूरी है।

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