150 रुपये की थी घड़ी... 1976 के केस में कोर्ट ने अब सुनाया फैसला, बुजुर्ग आरोपी बोला- मैं अब वृद्ध और...

Edited By Updated: 05 Aug, 2025 12:48 PM

the court has now pronounced its verdict in the 1976 case

झांसी में चोरी और गबन से जुड़ा एक मामला 49 साल बाद एक बार फिर चर्चा में आ गया है। इस मामले में कोर्ट को फैसला सुनाने में पूरे 49 साल लग गए। आखिरकार यह फैसला तब आ पाया, जब मुख्य आरोपी ने खुद अदालत में अपना जुर्म स्वीकार कर लिया। आरोपी ने कोर्ट से कहा...

नेशनल डेस्क : झांसी में चोरी और गबन से जुड़ा एक मामला 49 साल बाद एक बार फिर चर्चा में आ गया है। इस मामले में कोर्ट को फैसला सुनाने में पूरे 49 साल लग गए। आखिरकार यह फैसला तब आ पाया, जब मुख्य आरोपी ने खुद अदालत में अपना जुर्म स्वीकार कर लिया। आरोपी ने कोर्ट से कहा कि यह अपराध उसी ने किया है और अब वह हर तारीख पर आते-आते थक चुका है। उसने कहा कि उसकी तबीयत ठीक नहीं रहती और अब मुकदमा लड़ने की ताकत नहीं बची है।

आरोपी ने बीमारी का हवाला देते हुए अदालत से रहम की अपील की। इसके बाद कोर्ट ने उसे दोषी करार देते हुए शनिवार को फैसला सुनाया। अदालत ने उसे जेल में पहले से बिताई गई अवधि को ही सजा मानते हुए दो हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया। इस मामले में कुल तीन आरोपी थे, जिनमें से दो की केस की सुनवाई के दौरान ही मौत हो चुकी है।

यह मामला झांसी के टहरौली थाना क्षेत्र के बमनुआ गांव का है, जहां स्थित LSS सहकारी समिति में मध्य प्रदेश के ग्वालियर निवासी कन्हैया लाल पुत्र गजाधर बतौर चपरासी काम करता था। उसके साथ लक्ष्मी प्रसाद और रघुनाथ नाम के दो अन्य कर्मचारी भी थे। साल 1976 में समिति के तत्कालीन सचिव बिहारीलाल गौतम ने थाने में शिकायत दर्ज कराई थी कि इन तीनों कर्मचारियों ने रसीद बुक और 150 रुपये कीमत की घड़ी चुरा ली है।

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शिकायत के अनुसार, तीनों ने रसीद बुक पर सदस्यों के फर्जी हस्ताक्षर कर कूटरचना करते हुए 14,472 रुपये वसूल किए। इसमें लक्ष्मी प्रसाद ने अकेले ही 3,887.40 रुपये की रसीद काटी थी। पुलिस ने मामले में चोरी और गबन की धाराओं में केस दर्ज करते हुए तीनों को गिरफ्तार किया और कुछ समय के लिए जेल भी भेजा गया। बाद में सभी को जमानत मिल गई और केस का ट्रायल शुरू हुआ।

सालों तक मामला अदालत में चलता रहा। इस दौरान लक्ष्मी प्रसाद और रघुनाथ की मृत्यु हो गई, जबकि कन्हैया लाल हर तारीख पर अदालत में हाजिर होता रहा। लेकिन इतने लंबे समय तक भी फैसले में देरी होती रही। आखिरकार अब 68 वर्षीय कन्हैया लाल ने अदालत में खुद जुर्म कबूल करते हुए कहा कि वह वृद्ध और बीमार है, अब उसमें केस लड़ने की ताकत नहीं बची है, इसलिए कम से कम सजा दी जाए।

कोर्ट ने उसकी बातों को ध्यान में रखते हुए फैसला सुनाया। झांसी के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट मुन्नालाल ने कन्हैया लाल को IPC की धारा 457 (रात में चोरी के इरादे से घर में घुसना), 380 (चोरी), 409 (आपराधिक विश्वासघात), 467 और 468 (फर्जी दस्तावेज बनाना) और 120(बी) (आपराधिक साजिश) के तहत दोषी करार दिया। अदालत ने सभी धाराओं में उसे पहले से जेल में बिताई गई अवधि को ही सजा मानते हुए 2,000 रुपये का अर्थदंड भी लगाया।

 

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