केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू बोले- सरकार और न्यायपालिका के बीच मतभेद का मतलब टकराव नहीं

Edited By rajesh kumar,Updated: 25 Mar, 2023 04:44 PM

union law minister between government judiciary do not mean confrontation

केंद्रीय कानून एवं न्याय मंत्री किरेन रिजिजू ने सरकार और न्यायपालिका के बीच किसी तरह के टकराव से इनकार करते हुए शनिवार को कहा कि लोकतंत्र में मतभेद अपरिहार्य हैं, लेकिन उन्हें टकराव नहीं समझा जाना चाहिए।

नेशनल डेस्क: केंद्रीय कानून एवं न्याय मंत्री किरेन रिजिजू ने सरकार और न्यायपालिका के बीच किसी तरह के टकराव से इनकार करते हुए शनिवार को कहा कि लोकतंत्र में मतभेद अपरिहार्य हैं, लेकिन उन्हें टकराव नहीं समझा जाना चाहिए। मंत्री ने भारत के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन और मद्रास उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति टी राजा की उपस्थिति में यहां मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट अदालत, माइलादुत्रयी का उद्घाटन किया।

हमारे बीच मतभेद हैं लेकिन टकराव नहीं 
रिजिजू ने कहा, ‘‘हमारे बीच मतभेद हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि टकराव है। इससे दुनिया भर में एक गलत संदेश जाता है। मैं यह स्पष्ट करना चाहता हूं कि देश के विभिन्न अंगों के बीच कोई दिक्कत नहीं है। यह मजबूत लोकतांत्रिक कार्यों के संकेत हैं, जो संकट नहीं हैं।'' सरकार और उच्चतम न्यायालय या विधायिका और न्यायपालिका के बीच कथित मतभेदों संबंधी मीडिया की कुछ खबरों की ओर इशारा करते हुए, केंद्रीय मंत्री ने कहा, ‘‘हमें यह समझना चाहिए कि हम एक लोकतंत्र हैं। कुछ दृष्टिकोणों के संदर्भ में कुछ मतभेद होना तय है, लेकिन आप परस्पर विरोधी रुख नहीं रख सकते। इसका मतलब टकराव नहीं है। 
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हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र हैं
हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र हैं।'' उन्होंने कहा कि केंद्र भारतीय न्यायपालिका के स्वतंत्र रहने का समर्थन करेगा। उन्होंने पीठ और बार को एक ही सिक्के के दो पहलू करार देते हुए एकसाथ काम करने और यह सुनिश्चित करने का आह्वान किया कि अदालत परिसर विभाजित नहीं हो। उन्होंने कहा, ‘‘एक के बिना दूसरे का अस्तित्व नहीं हो सकता। अदालत में उचित शिष्टाचार और अनुकूल माहौल होना चाहिए।'' धनराशि आवंटन के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि पिछले साल सरकार ने राज्य में जिला और अन्य अदालतों के लिए 9,000 करोड़ रुपये आवंटित किए थे, और उनका विभाग धन के उपयोग पर जोर दे रहा है ताकि और अधिक की मांग की जा सके।

रिजिजू ने कहा, ‘‘कुछ राज्यों में, मैंने महसूस किया कि अदालत की जरूरत और सरकार की समझ में कुछ कमियां हैं।'' उन्होंने कहा कि सरकार इसके पक्ष में है कि निकट भविष्य में भारतीय न्यायपालिका पूरी तरह से कागज रहित हो जाए। उन्होंने कहा, ‘‘तकनीकी समर्थन के आने के साथ, सब चीजों में सामंजस्य बैठाया जा सकता है ताकि न्यायाधीश को साक्ष्य के अभाव में मामलों को स्थगित न करना पड़े। कार्य प्रक्रियाधीन हैं और मुझे लग रहा है कि हम (लंबित मामलों के संबंध में) एक बड़े समाधान की ओर बढ़ रहे हैं।'' 
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न्यायाधीश प्रतिदिन 50-60 मामलों का निर्वाह कर रहा
कानून मंत्री ने कहा कि कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच शक्तियों का बंटवारा हो सकता है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उन्हें एकसाथ काम नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा, "हमें लंबित मामलों की पहचान करने और यह सुनिश्चित करने के लिए एक टीम के रूप में काम करना चाहिए कि लंबित मामलों जैसी चुनौतियों से निपटा जाए।'' उन्होंने कहा, ‘भारत में प्रत्येक न्यायाधीश प्रतिदिन 50-60 मामलों का निर्वाह कर रहा है। यदि मुझे इतने मामलों का निर्वाह करना हो तो मानसिक दबाव जबरदस्त होगा। इसीलिए कभी-कभी लगातार आलोचना होती है कि न्यायाधीश न्याय देने में असमर्थ हैं, जो सच नहीं है।''

उन्होंने कहा कि मामलों का निस्तारण तेजी से किया गया है, हालांकि सामने आने वाले मामलों की संख्या भी अधिक थी। उन्होंने कहा कि एक ही रास्ता है कि बेहतर आधारभूत ढांचा और बेहतर तंत्र हो और भारतीय न्यायपालिका को मजबूत किया जाए। आम आदमी को न्याय दिलाने पर रिजिजू ने कहा कि उन्हें यह देखकर खुशी होगी कि तमिलनाडु की सभी अदालतें अपनी कार्यवाही में तमिल भाषा का इस्तेमाल करें। उन्होंने कहा, ‘‘उच्च न्यायालय में एक चुनौती है...तमिल एक शास्त्रीय भाषा है और हमें इस पर गर्व है। हम इसका इस्तेमाल होते हुए देखना चाहेंगे। प्रौद्योगिकी में वृद्धि, कानूनी लिपियों की प्रगति के साथ शायद किसी दिन तमिल भाषा उच्चतम न्यायालय में भी इस्तेमाल की जा सकती है।''

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