"मेरा स्वास्थ्य, मेरा अधिकार" पर आधारित विश्व स्वास्थ्य दिवस, दिल्ली में गर्मी का असर बढ़ता जा रहा है

Edited By Updated: 07 Apr, 2025 05:47 PM

world health day based on my health my right

देश में आज ‘‘मेरा स्वास्थ्य, मेरा अधिकार'' की थीम के साथ विश्व स्वास्थ्य दिवस मनाया जा रहा है, वहीं राष्ट्रीय राजधानी में ऑटो चालक, रिक्शा चालक तथा सड़क किनारे सामान बेचने वाले असंगठित क्षेत्र के हजारों कर्मी अत्यधिक गर्मी और वायु प्रदूषण के कारण...

नेशनल डेस्क: देश में आज ‘‘मेरा स्वास्थ्य, मेरा अधिकार'' की थीम के साथ विश्व स्वास्थ्य दिवस मनाया जा रहा है, वहीं राष्ट्रीय राजधानी में ऑटो चालक, रिक्शा चालक तथा सड़क किनारे सामान बेचने वाले असंगठित क्षेत्र के हजारों कर्मी अत्यधिक गर्मी और वायु प्रदूषण के कारण स्वास्थ्य संकट से जूझ रहे हैं। भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने राष्ट्रीय राजधानी में लू की ‘येलो' चेतावनी जारी की है। रविवार को दिल्ली का अधिकतम तापमान 38.2 डिग्री सेल्सियस रहा, जो सामान्य से 3.1 डिग्री अधिक है। न्यूनतम तापमान 18.5 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया और वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 209 रहा जो ‘खराब' श्रेणी में आता है। लू चलने के कारण होने वाले शारीरिक नुकसान को लेकर ऑटो-रिक्शा चालक संतोष हाजरा ने कहा, ‘‘लू चलने के दौरान त्वचा मानो झुलस सी जाती है। दिल्ली में निशुल्क पानी तो पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है, लेकिन आराम करने के लिए ऐसे क्षेत्रों की कमी है जहां छाया हो।'' एक अन्य ऑटो चालक प्रशांत कुमार ने कहा कि गर्मी के मौसम में सुस्ती सी छाई रहती है। 

उन्होंने कहा, ‘‘मैं आठ वर्षों से काम कर रहा हूं और गर्मियां हमेशा से ही मुश्किलों भरी रही हैं क्योंकि इसका सबसे बुरा असर स्वास्थ्य पर पड़ता है। जल्दी थक-थका महसूस होने लगता है जिससे काम के घंटे सीमित हो जाते हैं। दिल्ली का प्रदूषण भी खासा प्रभावित करता है; इस गर्मी में भी प्रदूषण देखा जा सकता है।'' हालांकि, चिलचिलाती गर्मी न केवल शारीरिक रूप से कष्टदायक रहती है बल्कि वित्तीय संकट भी खड़ा कर देती है। लाल किले के पास फलों की रेहड़ी लगाने वाले 45 वर्षीय सरबजीत सिंह ने कहा कि लू के कारण आय भी प्रभावित होती है। उन्होंने कहा, ‘‘चिलचिलाती गर्मी के कारण जल्द ही थकान महसूस होने लगती है। इससे आजीविका पर भी प्रभाव पड़ता है। अपराह्न 12 से चार बजे तक कोई ग्राहक नहीं आता।''

 बढ़ते तापमान के लिए जिम्मेदार कारकों पर प्रकाश डालते हुए, पर्यावरणविद् भावरीन कंधारी ने ‘पीटीआई-भाषा' से कहा, ‘‘पेड़ों की कीमत पर कंक्रीट के जंगल के विस्तार ने ‘अर्बन हीट आईलैंड' के प्रभाव को तेज कर दिया है जिससे तापमान चरम सीमा तक बढ़ गया है।'' कंधारी ने सुझाव दिया कि एक व्यापक, दीर्घकालिक रणनीति की आवश्यकता है जिसमें जैव विविधता को बढ़ाने के लिए हरियाली को बढ़ाकर कंक्रीट के जंगलों को कम करने के लिए टिकाऊ शहरी नियोजन शामिल है। चिकित्सा पेशेवरों ने भी आगाह किया है कि इस तरह की गर्मी के प्रभाव को अक्सर कमतर आंका जाता है। वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. विवेक नांगिया ने कहा, ‘‘पहले में चरण (हीट क्रैम्प्स) में मांसपेशियों में दर्दनाक ऐंठन की शिकायत होती है, दूसरे चरण (हीट एग्जॉस्चन) में शरीर अत्यधिक गर्म हो जाता है और खुद को ठंडा नहीं कर पाता और तीसरे चरण (हीट स्ट्रोक) में लोगों के अस्पताल में भर्ती होने तक की नौबत आ जाती है। कई मामलों में गहन चिकित्सा इकाई (आईसीयू) में भर्ती कराना पड़ता है। यह एक चिकित्सीय आपात स्थिति की तरह है। कुल मिलाकर इसका असर शरीर में पानी की कमी समेत अन्य जरूरी तत्वों की कमी के रूप दिखता है।'' 

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