Edited By ,Updated: 15 Dec, 2015 12:18 PM
मनुष्य की जैसी संगति होती है, वह वैसा ही बन जाता है। भगवान ने एक मरणासन्न व्यक्ति से कहा कि.....
मनुष्य की जैसी संगति होती है, वह वैसा ही बन जाता है। भगवान ने एक मरणासन्न व्यक्ति से कहा कि तुम चाहो तो स्वर्ग जा सकते हो या नर्क भी। व्यक्ति बोला, ‘‘भगवान, मैं समझा नहीं।’’
भगवान ने कहा, ‘‘बस, शर्त इतनी है कि दो मूर्खों के साथ स्वर्ग जा सकते हो या फिर दो बुद्धिमानों के साथ नर्क! बोलो, कहां जाना पसंद करोगे?’’
व्यक्ति बोला, ‘‘भगवन, मुझे दो बुद्धिमानों के साथ नर्क भेज दें।’’
भगवान बोले, ‘‘तुमने स्वर्ग क्यों नहीं चुना?’’
व्यक्ति बोला, ‘‘प्रभु, जहां ज्ञानी, बुद्धिमान होते हैं, वहीं स्वर्ग होता है और जहां मूर्खों का साथ हो, वह स्थान नर्क के समान है।’’
बस, बात यह समझने की है कि अच्छे वातावरण और संग-साथ का जीवन पर विशेष प्रभाव पड़ता है। आपने भी यह अनुभव किया होगा कि माता-पिता अपने बच्चों में जो संस्कार बचपन में डाल देते हैं, प्राय: वही संस्कार सारा जीवन बने रहते हैं। इसलिए इस जीवन को यदि हम चाहें तो शाश्वत सुख-शांति की खोज में लगा सकते हैं और चाहें तो दुर्जनों के संग रहकर इसे नारकीय भी बना सकते हैं।
हमारे अंदर जो अशुभता है, जो दुर्गुण हैं, उन्हें हमें दूर कर देना चाहिए। जो शुभ है, उसे ग्रहण करें। यह जीवन पहाड़ की उस नदी की तरह है, जिसमें जल थोड़ा है, पर गति और प्रवाह बहुत तेज है। सांसें सीमित हैं लेकिन कामनाएं अनगिनत हैं।
इसलिए अपना मित्र उन्हें बनाओ, संगति उनकी करो, जो द्वंद्वों में भी निद्र्वंद्व होकर जीवन जीते हैं। जो परमात्मा के करीब पहुंचने के लिए आपको हर पल प्रेरित करते हैं।