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अस्तित्व के संकट से जूझ रही कांग्रेस को जगाना होगा

Edited By ,Updated: 27 Feb, 2025 05:28 AM

congress which is facing an existential crisis needs to wake up

यह स्पष्ट है कि किसी भी सच्चे लोकतांत्रिक देश के लिए एक प्रभावी और जिम्मेदार विपक्ष का होना आवश्यक है। दुर्भाग्य से भारत में विपक्ष पिछले एक दशक से देश को विफल कर रहा है, मुख्य रूप से अपने स्वयं के गलत कामों के कारण। हालांकि इससे भारतीय जनता पार्टी...

यह स्पष्ट है कि किसी भी सच्चे लोकतांत्रिक देश के लिए एक प्रभावी और जिम्मेदार विपक्ष का होना आवश्यक है। दुर्भाग्य से भारत में विपक्ष पिछले एक दशक से देश को विफल कर रहा है, मुख्य रूप से अपने स्वयं के गलत कामों के कारण। हालांकि इससे भारतीय जनता पार्टी से उसकी रणनीतिक योजना और क्रियान्वयन का श्रेय नहीं छीना जाना चाहिए। शीर्ष विपक्षी नेता अंधेरे में टटोलते हुए दिखाई देते हैं और बार-बार गैर-जिम्मेदाराना बयान देकर खुद को घायल कर रहे हैं। जाहिर है कि उन्होंने अतीत से सबक नहीं सीखा है।

हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली में लगातार 3 अपमानजनक हारें विपक्ष के लिए एक चेतावनी होनी चाहिए थीं। हरियाणा में प्रमुख कांग्रेस को भारी जीत का इतना भरोसा था कि उसने गठबंधन सहयोगी आम आदमी पार्टी की परवाह नहीं की और अकेले ही चुनाव लडऩे का फैसला किया। इसका नतीजा यह हुआ कि कांग्रेस एक प्रतिशत से भी कम वोट शेयर के साथ भाजपा से हार गई,जबकि ‘आप’ 1.5 प्रतिशत वोट हासिल कर सकी। अगर दोनों सहयोगी दल हाथ मिला लेते तो नतीजे काफी अलग होते। दिल्ली में ‘आप’ ने कांग्रेस को उसी के शब्दों में जवाब दिया और खुद को भारी नुकसान पहुंचाया तथा चुनाव हार गई। इतना ही नहीं, उसके लगभग सभी शीर्ष नेतृत्व को धूल चाटनी पड़ी। दिल्ली में भी यही कहानी दोहराई गई, जहां ‘आप’ को भाजपा से सिर्फ  2 प्रतिशत कम वोट मिले जबकि कांग्रेस को पिछले विधानसभा चुनाव की तुलना में  2 प्रतिशत वोट मिले। महाराष्ट्र में भी ‘इंडिया’ गठबंधन ने अधिक सीटों के लिए झगड़े सहित विभिन्न कारणों से सत्ता हासिल करने का मौका गंवा दिया। उद्धव ठाकरे को उम्मीदवार घोषित न करना गठबंधन की हार का एक और कारण हो सकता है। 

इससे पहले गुजरात में कांग्रेस और ‘आप’ के बीच गठबंधन विफल होने के कारण ‘आप’ को 13 प्रतिशत वोट गंवाने पड़े जो कांग्रेस को मिल सकते थे। बेशक, इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि अगर विभिन्न दलों ने हाथ मिला लिया होता तो विपक्षी गठबंधन जीत जाता क्योंकि यह जरूरी नहीं है कि वोट एक पार्टी से दूसरी पार्टी को सिर्फ  इसलिए ट्रांसफर हो जाएं क्योंकि वे गठबंधन सहयोगी हैं। पिछले साल लोकसभा में अपनी स्थिति बेहतर करने वाली कांग्रेस हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली में लगातार 3 हार के बाद फिर से अपने ही घेरे में सिमट गई है। दिल्ली में पिछले 3 चुनावों में खाता भी नहीं खोल पाने की शर्मनाक हार से उसका मनोबल जरूर टूटा होगा लेकिन पार्टी में आत्ममंथन या फिर नई जान फूंकने की कोई कोशिश नहीं दिख रही है। 

दूसरी ओर भाजपा को पहले से योजना बनाने और सत्ता की भूखी रहने का श्रेय दिया जाना चाहिए। उसने दिल्ली चुनाव के लिए बजट पेश किया और उसी बजट में बिहार के लिए विशेष प्रावधान किए जहां इस साल के अंत में चुनाव होने हैं। गौरतलब है कि 2020 में बिहार में हुए पिछले चुनाव में गठबंधन की हार के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया गया था। कांग्रेस ने अधिक सीटों पर जोर दिया था और 70 सीटों पर चुनाव लड़ा था लेकिन केवल 19 सीटों पर जीत हासिल की थी। गठबंधन महज 12 सीटों से चुनाव हार गया था। दुर्भाग्य से विपक्षी नेता गैर-जिम्मेदाराना बयान जारी कर रहे हैं जिससे उन्हें ही नुकसान हो सकता है। कुंभ में उमड़ी श्रद्धालुओं की भारी भीड़ करोड़ों नागरिकों की महाकुंभ में डुबकी लगाने की अपार आस्था को दर्शाती है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार देश में वयस्कों की अनुमानित संख्या 98 करोड़ है जबकि 63 करोड़ लोग पवित्र स्नान के लिए प्रयागराज आए हैं। फिर भी बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने इसे ‘फालतू’ कहा है और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पूछा है कि यह महाकुंभ है या ‘मृत्यु कुंभ’। 

निश्चित रूप से ऐसे बयानों से इन नेताओं की विश्वसनीयता को ही नुकसान पहुंचेगा। दिल्ली में शर्मनाक हार के बाद राहुल गांधी और उनकी मंडली ‘शीतनिद्रा’ में चली गई है। पार्टी बिखर चुकी है। इसे अपने घर को व्यवस्थित करने की जरूरत है। अपने केंद्रीय नेतृत्व में बदलाव के अलावा पार्टी को अपनी राज्य इकाइयों को मजबूत करने और अपने जमीनी स्तर के कार्यकत्र्ताओं को सक्रिय करने का प्रयास करना चाहिए। कोई भी राजनीतिक दल सत्ता की भूख के बिना अस्तित्व में नहीं रह सकता ताकि वह अपना एजैंडा लागू कर सके। कांग्रेस अस्तित्व के संकट से जूझ रही है। अब जागने का समय आ गया है।-विपिन पब्बी

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