भारत को एक और यश चोपड़ा की जरूरत

Edited By ,Updated: 27 Feb, 2023 05:13 AM

india needs another yash chopra

भारत के सबसे बड़े बॉलीवुड स्टूडियो ‘यशराज फिल्म्स’ (वाई.आर.एफ.) ने अपने बारे में एक वृत्तचित्र  ‘द रोमांटिक्स’ बनाया है जोकि बहुत कुछ बताता है।

भारत के सबसे बड़े बॉलीवुड स्टूडियो ‘यशराज फिल्म्स’ (वाई.आर.एफ.) ने अपने बारे में एक वृत्तचित्र  ‘द रोमांटिक्स’ बनाया है जोकि बहुत कुछ बताता है। चार भाग की डाक्यूमैंट्री ‘द रोमांटिक्स’ के बारे में सबसे दिलचस्प तथ्य यह है कि इसे यशराज फिल्म्स ने ही प्रोड्यूस किया है। क्षमा करें, वे अब इसे वाई.आर.एफ. स्टूडियो कहते हैं। यह नैटफ्लिक्स पर स्ट्रीमिंग कर रहा है। ‘द रोमांटिक्स’ में अच्छी तरह से लिखा गया है और न केवल उन लोगों के लिए जरूरी है जो बॉलीवुड में रुचि रखते हैं बल्कि उन लोगों के लिए भी जो सामान्य रूप से भारत को समझने की रुचि रखते हैं।

यह बॉलीवुड के सबसे बड़े फिल्म निर्माता परिवार के उतार-चढ़ाव के माध्यम से भारतीय राजनीति और समाज के एक संक्षिप्त इतिहास के रूप में भी काम करता है। सवाल यह उठता है कि वाई.आर.एफ. को इस तरह की आत्मकथा प्रकाशित करने की जरूरत अब क्यों महसूस हुई? यह वृत्तचित्र  शाहरुख खान की फिल्म ‘पठान’ की शानदार सफलता के ठीक बाद सामने आया है जिसने किसी भी भारतीय फिल्म की तुलना में अधिक कमाई की है।

लेकिन ‘द रोमांटिक्स’ की अवधारणा और शूटिंग उस समय के आसपास की गई होगी जब बॉलीवुड 3 मामलों में अस्तित्व के संकट का सामना कर रहा था। यह तीन संकट थे कोविड महामारी, दक्षिण भारतीय ब्लाकबस्टर की सफलता और ओ.टी.टी. प्लेटफार्म के लिए सिनेमा जाने वाली रुचियों में व्यवधान पडऩा। वाई.आर.एफ.  द्वारा ब्रांडिड की यह कवायद हमें फिर से बॉलीवुड के प्यार में पडऩे के लिए कहती है और उसी तरह देखने के लिए कहती है जिस तरह से हम ‘वार्नर’, ‘डिज्नी’, ‘कोलंबिया’, ‘फोक्स’ और ऐसे बड़े हॉलीवुड  स्टूडियो को देखते हैं।

यहां स्टूडियो शब्द एक स्टूडियो सिस्टम को संदर्भात करता है जिसके तहत एक कंपनी उत्पादन से लेकर विवरण तक फिल्म निर्माण के सभी पहलुओं का स्वामित्व और नियंत्रण करती है। यह वाई.आर.एफ. की घोषित महत्वाकांक्षा है और ‘द रोमांटिक्स’ भी यही कहता है। वृत्तचित्र का विचार हमें इस महत्वाकांक्षा को समझने और उसकी सराहना करने के लिए है।

पिता से पुत्र तक : ‘दिलवाले दुल्हनियां ले जाएंगे’ जैसी मशहूर फिल्मों के निर्माता वाई.आर.एफ. प्रमुख आदित्य चोपड़ा खुद को लोगों की नजरों से दूर ही रखते हैं। यदि आपने उन्हें सड़क पर देखो तो आप उन्हें पहचान नहीं पाएंगे। ब्रांडिंग की इस कवायद की इतनी बड़ी जरूरत थी कि उन्होंने खुद को कैमरे के समक्ष रखा और अपनी फिल्मों के बारे में विस्तार से बात की। ‘द रोमांटिक्स’ का पहला एपिसोड अतीत के बारे में है जो उनके पिता यश चोपड़ा और उनकी विरासत को प्रकट करता है।

दूसरा एपिसोड वह है जहां आदित्य चोपड़ा प्रवेश करते हैं। पिता और पुत्र के संक्रमण काल में एक बड़ा परिवर्तन होता है। यश चोपड़ा अपने बेटे से पूछते हैं कि बतौर निर्देशक वह अपनी पहली फिल्म कब बनाना चाहते हैं? आदित्य 23 वर्ष के थे और 18 वर्ष की आयु से ही अपने पिता यश के सहायक के रूप में काम कर रहे थे। आदित्य ने अपने पिता से कहा कि वह अपनी पहली फिल्म तभी बनाएंगे जब सारा निवेश उनका खुद का होगा।

आदित्य सभी अधिकारों का मालिक बनना चाहते थे। वे सभी राजस्व अर्जित करना चाहते थे। पिता एक रचनात्मक खोज में सबसे आगे थे और बेटा बिजनैसमैन बन गया। इसलिए आदित्य चोपड़ा एक एम.बी.ए. सलाहकार के रूप में सामने आते हैं जो लगातार अनुमान लगाते हैं कि दर्शक स्क्रीन पर क्या चाहते हैं? दर्शकों को वह दिया जाए जो अधिक पैसा बनाने के लिए काफी हो और हिट भी हो। वह अलग-अलग दर्शकों की श्रेणियों के बारे में बक्सों पर टिक लगाता है।

यश चोपड़ा स्कूल : कोई गलती न करे क्योंकि यश चोपड़ा कोई ‘कला’ फिल्म निर्माता नहीं थे। वह मुख्यधारा के फिल्मकार थे जो हिट फिल्में देना चाहते थे। अगर वह हिट फिल्में नहीं दे सकते तो कोई उनकी फिल्मों में पैसा क्यों लगाएगा? फिर भी उन्होंने रचनात्मक जोखिम उठाया। 2012 में यश चोपड़ा का निधन  हो गया। 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद चोपड़ा की फिल्में भारत के नेहरू आदि राष्ट्र निर्माण की कहानी का हिस्सा थीं।

विभाजन के बाद में अंतर-धार्मिक हिंसा ने कई लोगों को नाराज और निराश कर दिया था इसलिए चोपड़ा के लिए धार्मिक कट्टरवाद को बढ़ावा देना आसान होता। इसकी बजाय उन्होंने फिल्म ‘धूल का फूल’ (1959) जैसी हिंदी-मुस्लिम एकता पर फिल्म बनाई। ‘धर्मपुत्र’ (1969) में उन्होंने विभाजन और हिंदू कट्टरवाद के विषयों को आमने-सामने रखा। फिर भी यह मुख्यधारा की फिल्में थीं। ‘धर्मपुत्र’ ने शशि कपूर को लांच किया।

यश चोपड़ा की फिल्में अपने खूबसूरत लोगों, स्वप्निल रोमांस और विदेशी लोकेशन्स के लिए जानी जाती हैं। मगर यह कट्टरपंथी नहीं दिखती। यश चोपड़ा श्रीदेवी को बॉलीवुड में लाए और उन्हें सफेद कपड़े पहनने पर जोर दिया। श्रीदेवी और उनकी मां ने सोचा था कि यह एक बुरा विचार है। 80 के दशक में जब बॉलीवुड ने चटपटी फिल्मों के लिए एक मोड़ लिया तो यश चोपड़ा जनता को वह नहीं दे रहे थे जो उन्हें पसंद था इसीलिए उन्हें फ्लॉप फिल्मों का सामना करना पड़ा।

आदित्य चोपड़ा की फिल्में : आदित्य चोपड़ा को पहली फिल्म ‘दिलवाले दुल्हनियां ले जाएंगे’ के लिए किस चीज ने प्रेरित किया। उनका कहना है कि उन्होंने प्रेम के लिए विद्रोह और युवा जोड़ों पर भाग जाने की सभी फिल्मों को देखा क्योंकि उनके माता-पिता ने उन्हें अपनी मनपसंद के प्रेमी से शादी नहीं करने दी। ऐसे जोड़े अक्सर जाति, वर्ग और धर्म की सीमाओं को पार करते थे लेकिन आपको हमेशा माता-पिता से दूर क्यों भागना पड़ता है। ऐसा सब आदित्य चोपड़ा ने सोचा।

इसका परिणाम यह हुआ कि उन्होंने 27 साल बाद भी कम से कम एक सिनेमाहाल में एक ऐसी फिल्म ‘दिलवाले दुल्हनियां ले जाएंगे’ (डी.डी.एल.जे.)बनाई जो आज भी चल रही है। इस फिल्म की सफलता के साथ वाई.आर.एफ. को उच्च मध्यम वर्ग के परिवारों के लिए हिट फिल्में बनाने का फार्मूला मिला। जैसे-जैसे वाई.आर.एफ. अधिक से अधिक कार्पोरेट होता जा रहा है किसी को  आश्चर्य होता है कि क्या बॉलीवुड सिनेमा में कभी यश चोपड़ा की फिल्मों की तरह दिल और आत्मा हो सकती है? -शिवम विज

Trending Topics

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!