नए भारत की ताकत ‘ऑपरेशन सिंदूर’

Edited By ,Updated: 08 May, 2025 04:56 AM

operation sindoor  is the power of new india

गत 6-7 मई की देर रात भारतीय सेना ने पाकिस्तान में आतंकवादियों के 9 अड्डों को नष्ट कर दिया। इसमें जिहादी और आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर के परिवार के 10 लोगों के साथ कई जिहादियों के मारे जाने की खबर है।

गत 6-7 मई की देर रात भारतीय सेना ने पाकिस्तान में आतंकवादियों के 9 अड्डों को नष्ट कर दिया। इसमें जिहादी और आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर के परिवार के 10 लोगों के साथ कई जिहादियों के मारे जाने की खबर है। यह अपेक्षित था, परंतु अप्रत्याशित भी था। वर्ष 2008 के 26/11 मुंबई आतंकवादी हमले, जिसमें पाकिस्तानी आतंकियों ने 166 निरपराधों को मौत के घाट उतार दिया था। इस कायरता पर चुप रहे भारत ने इस बार पाकिस्तान को अपना रौद्र रूप दिखाया है। वर्ष 2016 में उरी और 2019 में पुलवामा के आतंकवादी हमलों के खिलाफ भारत ने जो सफल सर्जिकल स्ट्राइक की थी, वह बिना किसी चेतावनी के अचानक घर में घुसकर मारा था। परंतु पहलगाम आतंकवादी हमला, जिसमें जिहादियों ने मजहब पूछकर 26 हिंदुओं को गोली मारकर कई महिलाओं का सुहाग उजाड़ दिया उसका प्रतिकार भारत ने खुलेआम और सार्वजनिक तौर पर घोषणा करके ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के माध्यम से किया है। 

स्पष्ट है कि नए भारत ने अपनी पुरानी गलतियों से सीखा है। इस सभ्यतागत युद्ध में वर्तमान भारत महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी महाराज, गुरु गोबिंद सिंह, बंदा सिंह बहादुर, महाराजा रणजीत सिंह आदि के पदचिन्हों पर चल रहा है। शायद ही इसकी कल्पना, पाकिस्तान के साथ विश्व के अन्य देशों ने की होगी। यह विजय उल्लास का क्षण है, साथ ही आत्मनिरीक्षण करने का भी समय है। आखिर भारत, जो कई सदियों तक शौर्य और साहस से परिपूर्ण रहा है वह 800 वर्षों से इस सभ्यतागत युद्ध को क्यों निर्णायक रूप से नहीं जीत पाया? इसका उत्तर हमारे उस ङ्क्षचतन में छिपा है, जिसमें हम शत्रुओं को समझने में गलती करते रहे और हमने उससे कुछ सीखा तक नहीं। 

हम बार-बार सफलता-असफलता के बीच झूलते रहे। परंतु मई 2014 के बाद भारत के दृष्टिकोण में आए आमूलचूल परिवर्तन को ‘देर आयद, दुरुस्त आयद’ कहावत में समाहित कर सकते हैं। भारत की हालिया हवाई कार्रवाई से पाकिस्तान और शेष विश्व (चीन सहित) को 3 स्पष्ट संदेश मिले है। पहला, भारतीय गुप्तचर तंत्र इतना सक्षम है कि वह पाकिस्तान के एक-एक आतंकी ठिकानों की जानकारी रखता है। इसलिए भारतीय सेना ने पाकिस्तान के 9 जगहों पर 21 आतंकी ठिकानों को भीषण हवाई बमबारी से ध्वस्त कर दिया। दूसरा, भारत के पास ऐसी मारक क्षमता है कि वे जब चाहे और जहां चाहे, अपने शत्रुओं पर निशाना लगाकर नष्ट कर सकता है। तीसरा  भारत की लड़ाई पाकिस्तान की साधारण जनता के खिलाफ नहीं है। सामथ्र्य होते हुए भी भारत ने इस बात का ध्यान रखा कि  निर्दोष पाकिस्तानियों को कोई नुकसान नहीं पहुंचे और केवल पाकिस्तान के आतंकवादी अड्डे बर्बाद हों। भारत-पाकिस्तान के बीच छिड़ा वर्तमान युद्ध क्या रूप लेगा, अभी बताना कठिन है।

लम्हों ने खता की, सदियों ने सजा पाई : इस कॉलम में पहले कई बार स्थापित किया गया है कि पाकिस्तान किसी देश का नाम नहीं है। यह एक जहरीली विचारधारा है। भारतीय उप-महाद्वीप में इसने सबसे पहले तब अपने पैर पसारे, जब वर्ष 712 में मुहम्मद बिन कासिम ने सिंध पर हमला करते हुए तत्कालीन हिंदू राजा दाहिर को पराजित किया और इसे पाकिस्तान आधिकारिक रूप से अपनी नींव का पहला पत्थर मानता है। इसके बाद पराजित हिंदुओं को सदियों तक ‘मौत’, ‘इस्लाम में मतांतरण’ और ‘जजिया’ का विकल्प दिया गया। परंतु हम अपने सभ्यतागत शत्रु को समझने में चूक करते रहे। पराक्रमी पृथ्वीराज चौहान द्वारा 1191 में पराजित मोहम्मद गोरी को छोडऩा एक बड़ी गलती थी। इस पर उत्तर प्रदेश स्थित कैराना के प्रसिद्ध शायर मुजफ्फर रज्मी के एक मशहूर शे’र का मिसरा ‘लम्हों ने खता की थी, सदियों ने सजा पाई’, बिल्कुल सटीक बैठता है। जब-जब और जहां-जहां भी हिंदू शासक रहे या उन्होंने सत्ता हासिल की, उन्होंने अपने समरस ङ्क्षचतन के अनुरूप एक मजहब के रूप में इस्लाम का सम्मान किया। महाराणा प्रताप और छत्रपति शिवाजी महाराज से लेकर महाराजा रणजीत सिंह तक इस परंपरा के जीवंत प्रतीक थे। इसी बहुलतावादी दर्शन से प्रेरित होकर गांधीजी ने मजहबी और विदेशी ‘खिलाफत आंदोलन’ (1919-24) का नेतृत्व किया। 

बदले में देश को खूनी मोपला कांड (1921), कालांतर में कई सांप्रदायिक दंगे और कलकत्ता ‘डायरैक्ट एक्शन डे’ (1946) के रूप में हिंदुओं का संहार मिला। इस मानसिकता से सीधा संघर्ष करने की बजाय कांग्रेस ने जून 1947 में भारत का विभाजन स्वीकार किया।  खंडित भारत ने भी गलतियों से सबक नहीं सीखा:विभाजन के तुरंत बाद जब पाकिस्तान ने भारत पर हमला किया, तब तत्कालीन भारतीय नेतृत्व ने बढ़ती हुई सेना को रोककर हिमालयी भूल कर दी। तब बार-बार आगाह करने के बाद भी जम्मू-कश्मीर रियासती सेना की मुस्लिम सैन्य टुकड़ी, शत्रुओं से जा मिली थी। इसी तरह 1960 में भारतीय नेतृत्व ने पाकिस्तान के साथ न केवल सिंधु पानी समझौता किया, साथ ही तब इसके लिए पाकिस्तान को आज के हिसाब से दस किस्तों में लगभग 700 करोड़ रुपए भी दिए।  पाकिस्तान ने 1965 में भारत पर फिर आक्रमण कर दिया। भारतीय जवानों ने जवाबी कार्रवाई करते हुए लाहौर में घुसकर तिरंगा लहरा दिया। परंतु भारत ने उसे दोबारा पाकिस्तान को सौंप दिया, तो 1971 के युद्ध में भारत ने ऐतिहासिक रूप से बंदी बनाए गए 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों को रिहा कर दिया। 

वर्ष 2008 में तो हद ही हो गई। तब 26/11 मुंबई आतंकवादी हमले में पाकिस्तान की स्पष्ट भूमिका होने के बाद न केवल करोड़ों आक्रोशित भारतीय केवल दांत ही पीसते रह गए, बल्कि तत्कालीन सत्तारूढ़ कांग्रेस ने पाकिस्तान को क्लीनचिट देते हुए इस हमले का दोष भाजपा-आर.एस.एस. पर मढ़ते हुए फर्जी ‘हिंदू आतंकवाद’ का बेबुनियाद नैरेटिव रच दिया। बात केवल 26/11 तक सीमित नहीं है। 1993 के मुंबई सिलसिलेवार बम धमाके, 1998 का कोयंबटूर सीरियल ब्लास्ट और 2013 के पटना गांधी मैदान शृंखलाबद्ध धमाके में भी इसी प्रकार का दूषित नैरेटिव चलाया गया था। दरअसल, तब हम आपसी झगड़ों में उलझे रहे और पाकिस्तान प्रायोजित/समर्थित आतंकवादी हमलों के प्रति या आंख मूंदे रहे या फिर केवल गीदड़भभकी देते रहे। इसका नतीजा यह हुआ कि पाकिस्तान का साहस बढ़ता गया है। यह कहना कठिन नहीं कि इस युद्ध का परिणाम क्या होगा?-बलबीर पुंज
    

Trending Topics

IPL
Lucknow Super Giants

Royal Challengers Bengaluru

Teams will be announced at the toss

img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!