आत्मसुरक्षा का अधिकार एवं पुलिस का दायित्व

Edited By ,Updated: 05 Feb, 2023 04:25 AM

the right to self protection and the responsibility of the police

हर व्यक्ति को अपने जीवन में किसी न किसी समय और तब किसी भी परिप्रेक्ष्य में गुस्सा आना स्वाभाविक है। जब गुस्सा व आक्रोश एक सीमा से ऊपर चला जाता है तो व्यक्ति का व्यवहार हिंसक हो जाता है तथा विधि द्वारा अपेक्षित की गई सीमाओं को लांघ कर वह कोई न कोई...

हर व्यक्ति को अपने जीवन में किसी न किसी समय और तब किसी भी परिप्रेक्ष्य में गुस्सा आना स्वाभाविक है। जब गुस्सा व आक्रोश एक सीमा से ऊपर चला जाता है तो व्यक्ति का व्यवहार हिंसक हो जाता है तथा विधि द्वारा अपेक्षित की गई सीमाओं को लांघ कर वह कोई न कोई अपराध कर बैठता है। इसी तरह दूसरी तरफ काम व वासना से ग्रस्त होकर भी वह सभी मानवीय सीमाएं लांघ कर दरिंदगी पर उतर आता है। बलात्कार व हत्या जैसी घिनौनी घटनाओं को अंजाम दे देता है। इस तरह कुछ ऐसे भी शातिर व आततायी लोग हैं जिनका काम लोगों को मारना पीटना, लूटपाट व डकैती जैसे घृणित अपराध करना होता है। ऐसे लोग अपने व्यवहार से विचलित होकर शान्तप्रिय माहौल को बिगाड़ते रहते हैं। 

अब प्रश्न उठता है कि ऐसे विचलित लोगों का सामना कैसे किया जाए। यहां अपराधियों को सजा देने के लिए विधि-विधान बनाए गए हैं, उसी तरह पीड़ित व्यक्तियों को भी अपनी सुरक्षा के लिए कुछ अधिकार दिए गए हैं जिनका प्रयोग कुछ परिस्थितियों में किया जा सकता है। महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों को रोकने के लिए तो उन्हें सशक्त बनाने की कवायदें तो काफी की जाती हैं मगर कानून की पेचीदगियां अभी भी उनको उलझाए रखती हैं। कानून निर्माताओं को पता था कि पीड़ित व्यक्ति को अपनी सुरक्षा के लिए किसी सीमा तक अपराधियों पर बल का प्रयोग करने का अधिकार होना चाहिए तथा इसीलिए भारतीय दंड संहिता की धारा 96 से 106 तक कुछ ऐसे प्रावधान बनाए गए जिनके अंतर्गत हर व्यक्ति को अपराधियों का सामना करने के लिए बल का प्रयोग करने का अधिकार दिया गया है। 

इन धाराओं में व्यक्ति को अपनी सुरक्षा तथा दूसरों की सुरक्षा करने के लिए कुछ ऐसे अधिकार दिए गए हैं जिनका उपयोग वह कुछ विशेष परिस्थितियों में कर सकता है। इन प्रावधानों के अनुसार जब कोई अपराधी किसी पीड़ित को चोट पहुंचाता है या फिर उसके घर में सेंध लगाकर चोरी या लूट/डकैती जैसी घटनाएं करता है तो पीड़ित को पूर्ण अधिकार है कि उस पर होने वाले अपराध का सामना करने के लिए वह एक निश्चित सीमा में बल का प्रयोग कर सकें। 

इसी तरह धारा 100 के अंतर्गत जब पीड़ित व्यक्ति को लगे कि अपराधी उसके साथ बलात्कार, हत्या या रात्रि के समय गृह भेदन करने की कोशिश कर रहा है तो अपराधी की हत्या तक की जा सकती है। यहां पर यह वर्णन करना भी आवश्यक है कि पीड़ित को अपराधी के विरुद्ध उस स्तर तक ही बल का प्रयोग करने का अधिकार है जिस स्तर तक अपराधी द्वारा पीड़ित पर बल का प्रयोग किया जा रहा हो। 

इसी तरह जब कोई पीड़ित व्यक्ति अपनी सुरक्षा या फिर कोई अन्य व्यक्ति की सहायता के लिए बल का प्रयोग करता है तथा उसी कशमकश/ हाथापाई में किसी निर्दोष व्यक्ति को कोई चोट आ जाती है या यहां तक कि उसकी मृत्यु भी हो जाती है तब भी आत्म सुरक्षा करने वाले व्यक्ति को दोषी नहीं माना जाएगा। आत्म सुरक्षा में प्रयोग किए गए बल को सैद्धांतिक तौर पर साबित करने के लिए बहुत ही पेचीदगियां हैं तथा इसके लिए पीड़ित को कुछ सावधानियां ध्यान में रखनी होंगी जिनका विवरण इस प्रकार से हैं। 

1. बल का प्रयोग केवल उसी समय ही किया जाए जब आपके पास कोई विकल्प न हो।
2. किसी महिला के साथ यदि कोई बलात्कार करने की कोशिश करता है तो बिना किसी बात का इंतजार किए अपराधी पर किसी भी सीमा तक बल का प्रयोग कर लेना चाहिए।
3. बदले की भावना से बल का प्रयोग कभी भी न किया जाए तथा इसका प्रयोग तो तत्काल मौके पर ही करना होगा।
4. हो सके तो बल का प्रयोग करने से पहले ऊंची आवाज में अपने बचाव के लिए शोर मचाया जाए तथा संभवत: मौके पर उपस्थित व्यक्ति या व्यक्तियों को गवाह बनाया जाए।
5. आजकल मोबाइल का जमाना है तथा उसके साथ अपराध होते समय वीडियो रिकॉर्डिंग कर लेना उचित है।
6. इस संबंध में पुलिस को तुरन्त सूचित किया जाए तथा उसे पूर्ण जानकारी उपलब्ध करवाई जाए। 

ऐसे मामलों की तफतीश करते समय पुलिस की जिम्मेदारी भी सर्वोपरि है तथा उसे निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए :
1. पीड़ित द्वारा आत्म सुरक्षा के लिए किए गए बल के प्रयोग द्वारा अपराधी को किस प्रकृति की चोटें आई हैं तथा पीड़ित की चोटें कितनी गम्भीर हैं, का पूरा संज्ञान लेना चाहिए।
2. यह ठीक है कि पुलिस को दोनों पक्षों की तरफ से अलग- अलग मुकद्दमें दर्ज करने ही पड़ेंगे मगर मौके की परिस्थितियों व गवाहों के बयानों के आधार पर पीड़ित व्यक्ति को सहायता पहुंचानी चाहिए।
3. ऐसे मामलों में वरिष्ठ अधिकारियों को घटनास्थल पर जाकर अपना प्रवेक्षण नोट जारी करना चाहिए ताकि अन्वेषण अधिकारी अपनी मर्जी से ही तफतीश को आगे न बढ़ाए।
4. यदि पीड़ित व्यक्ति को पुलिस द्वारा गिरफ्तार करना ही पड़ जाता है तो न्यायालय में उसकी जमानत के समय सभी तथ्यों को पूर्ण रूप से प्रस्तुत करना चाहिए ताकि उसे आसानी से जमानत प्राप्त हो सके।
5. हालांकि ऐसी बहुत ही कम संभावनाएं हैं जिससे कि पुलिस को पता चल जाए कि पीड़ित ने अपने बचाव में ही बल का प्रयोग किया है मगर यदि कोई वीडियो या सी.सी.टी.वी. के छायाचित्र उपलब्ध हो जाते हैं तब पीड़ित को सहायता पहुंचाने की कोशिश करनी चाहिए। 

यह ठीक है कि अपने नागरिकों और उनकी सम्पत्ति को खतरे से बचाना, राजसत्ता व पुलिस का कत्र्तव्य है, मगर ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न होती हैं जिनसे ऐसी अचानक पैदा हुई घटनाओं को रोकना असम्भव हो जाता है। मानव की सहज प्रकृति खुद की रक्षा करने की है और कानून ऐसे मामलों में किसी भी व्यक्ति से निष्क्रिय होकर आत्म समर्पण की अपेक्षा नहीं करता बल्कि उससे खुद के जीवन या सम्पत्ति का रक्षा करने की अपेक्षा करता है। वास्तव में आत्म सुरक्षा का अधिकार एक प्रतिरोध है और इसे लोकतांत्रिक देशों के अपराध शास्त्रों मे अधिनियमित किया गया है।-राजेन्द्र मोहन शर्मा डी.आई.जी. (रिटायर्ड) हि.प्र. 

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