हिंसा और बढ़ते वीडियोज

Edited By Updated: 25 Feb, 2025 05:45 AM

violence and increasing videos

गैस फुल फ्लेम पर है। उस पर तवा रखा है, एक सास अपनी बहू का हाथ जबरदस्ती जलते तवे पर रख देती है। बहू चीखती, चिल्लाती है। घर में पति है, ननद है, ससुर है मगर कोई कुछ नहीं बोलता। एक फौजी घर लौटता है। वह दरवाजे से झांककर देखता है। बहू उसकी मां के साथ खूब...

गैस फुल फ्लेम पर है। उस पर तवा रखा है, एक सास अपनी बहू का हाथ जबरदस्ती जलते तवे पर रख देती है। बहू चीखती, चिल्लाती है। घर में पति है, ननद है, ससुर है मगर कोई कुछ नहीं बोलता। एक फौजी घर लौटता है। वह दरवाजे से झांककर देखता है। बहू उसकी मां के साथ खूब मारपीट कर रही है। उसके बाल खींच रही है। साथ में उसका ब्वॉयफ्रैंड भी है। इतने में पति फोन करता है, तो सास को धमकाती है कि अगर तूने अपने बेटे से कुछ कहा तो ऐसा हाल करूंगी कि याद रखेगी। ऐसे प्रसंगों की भरमार है। पति अपनी पत्नी के खाने में, किसी पेय में जहर मिला रहा है। पत्नी अपने पति के साथ भी ऐसा कर रही है। 

घरेलू सहायकों से पति को मरवाने की योजनाएं बना रही है जिससे कि सारी प्रापर्टी उसे मिल जाए और अपने ब्वॉयफ्रैंड के साथ आराम से रह सके। सास बहू को घर से निकाल रही है। तरह-तरह के अत्याचार कर रही है। बहू सास को वृद्धाश्रम भेज रही है। पति पत्नी को धमकी दे रहा है कि निकल जा, तलाक के कागज घर पहुंच जाएंगे। जैसे कि तलाक सिर्फ एक पक्ष अपनी मनमर्जी से ले सकता हो। इसी तरह एक बेटा अपनी पत्नी को खूब मारता-पीटता है। सास, ननद, ससुर सब बहू का पक्ष लेते हैं। बहू की तबीयत खराब हो जाती है, तो सास उसे डाक्टर के पास ले जाती है। डाक्टर बहू से पूछता भी है कि माथे पर चोट कैसे लगी। फिर खुद ही कहता है कि मैं जानता हूं कि कहोगी कि गिर गई थी या दीवार से टकरा गई लेकिन यह सच नहीं है। फिर सास से कहता है कि अब ऐसा कुछ नहीं होना चाहिए क्योंकि यह मां बनने वाली है। जैसे कि अगर बहू मां बनने वाली न होती, तो उसके साथ मारपीट जायज है। 

घर आकर सास बताती है कि हमारे घर में बिटिया आने वाली है और पति पत्नी को धमकाता है कि उसे किसी भी सूरत में लड़की नहीं, लड़का चाहिए इसलिए फौरन इस बच्चे को गिरा के आ। सौतेले बच्चों के साथ सौतेले माता-पिता कितना दुव्र्यवहार कर रहे हैं। दहेज के लिए महिलाओं को सताया जा रहा है। ये सब बातें अपने मन से नहीं कह रही हूं। ये सब वीडियोज मैंने पिछले दिनों देखे हैं। फेसबुक पर ऐसे वीडियोज की भरमार है। वीडियोज के अंत में उन्हें ज्यादा से ज्यादा शेयर करने की बातें की जाती हैं। ऐसा लगता है कि वीडियो बनाने वालों को भारतीय कानून की कोई जानकारी ही नहीं है। दहेज लेना-देना अपराध है। बच्चों के साथ, बूढ़ों, स्त्रियों के साथ ङ्क्षहसा करना अपराध है। जहर देकर किसी की हत्या करना भी अपराध है। गर्भ में बच्चे की ङ्क्षलग की जांच भी अपराध ही है। लेकिन इस पर तर्क यह दिया जाता है कि हम अंत में तो पॉजिटिव एंड करते हैं। अंत भला तो सब भला। 

आखिर कोई जरूरी तो नहीं कि सब लोग अंत तक इन वीडियोज को देखते हों। कई बार लोग आधा देखकर ही छोड़ देते हैं। लेकिन इनमें दिखाई गई ङ्क्षहसा पीछा नहीं छोड़ती।  ये जितनी ङ्क्षहसा, बदले, प्रताडऩाओं से भरे हैं , उनसे लोग ङ्क्षहसा के तरह-तरह के तौर-तरीके सीख सकते हैं। स्त्रियों, बच्चों को मारना किस तरह से ठीक कहा जा सकता है। बूढ़ों को घर से निकालना किस संस्कृति का हिस्सा कहा जा सकता है। कहा ही जाता है कि हमारी फिल्मों, धारावाहिकों, ओ.टी.टी. प्लेटफाम्र्स पर आने वाले  तमाम तरह की ङ्क्षहसा और गाली-गलौच से भरे कार्यक्रमों से लोग ये सब सीखते हैं। कितनी हत्याएं सिर्फ फिल्मों से प्रेरणा लेकर की जाती हैं। वे गालियां जो सिर्फ औरतों के अपमान से भरी हैं, उनके रिश्तों को भी छोटा करती हैं, स्त्री से जुड़े सारे रिश्तों की गालियां हमारे समाज में खूब दी जाती हैं, लेकिन उनका कोई प्रतिवाद नहीं करता।  वे इन दिनों कूल हैं। अक्सर मैट्रो में या युवाओं की बातचीत में इन गालियों की भरमार होती है। वे किस तरह की शिक्षा ऐसे कथानकों से लेते होंगे, यह सोचने की बात है।

लेकिन जब सारी सफलता इस बात से ही तय होती हो कि कथानक और विजुअल्स को अधिक से अधिक हिंसा से भरा जाए, जिससे कि अधिक से अधिक लोग उन्हें देखें और विज्ञापन मिलें तो इनकी मंशा को समझा जा सकता है। और कह यह दिया जाता है कि हम नया थोड़े ही कुछ दिखा रहे हैं, यह सब तो हमारे समाज में होता है, इसलिए दिखा रहे हैं। कुछ मर्यादाएं भी होती हैं, इन्हें अक्सर भुला दिया जाता है। लेकिन मर्यादाओं की बातें करना इन दिनों कंजर्वेटिव और पिछड़ेपन के खाते में डाल दिया जाता है। रणवीर अलाबादिया का केस सबके सामने ही है। वैसे भी समाज में जो कुछ हो रहा है, और वह जीवन के मानकों के अनुकूल नहीं, तो उनका विरोध होना चाहिए या उन्हें बढ़-चढ़कर दिखाना चाहिए। पोर्न और सैक्स इंडस्ट्री तो चलती ही इन सबसे है। बच्चों के प्रति तमाम तरह के अपराध यहां तक कि दुष्कर्म के लिए भी पोर्न बहुत हद तक जिम्मेदार हैं। कहां हैं स्त्रियों, बच्चों और बूढ़ों के अधिकारों की बातें करने वाले। जब भी इन पर कोई लगाम लगाने की बातें  होती हैं, सैंसरशिप और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के हिमायती मैदान में आ जाते हैं। इस तरह के कार्यक्रमों पर रोक जरूर लगानी चाहिए।-क्षमा शर्मा    
 

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