अमेरिका की स्पेस रेस को बड़ा झटका, चांद पर न्यूक्लियर प्लांट बनाएंगे चीन और रूस

Edited By Ashutosh Chaubey,Updated: 16 May, 2025 01:15 PM

a big setback to america s space race

चांद पर अब सिर्फ कदम रखने की नहीं बल्कि टिके रहने की तैयारी शुरू हो चुकी है। इस बार दुनिया की दो बड़ी महाशक्तियां चीन और रूस मिलकर चंद्रमा पर स्थायी मौजूदगी की बुनियाद रखने जा रही हैं। हाल ही में दोनों देशों ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर एक स्थायी...

नेशलन डेस्क: चांद पर अब सिर्फ कदम रखने की नहीं बल्कि टिके रहने की तैयारी शुरू हो चुकी है। इस बार दुनिया की दो बड़ी महाशक्तियां चीन और रूस मिलकर चंद्रमा पर स्थायी मौजूदगी की बुनियाद रखने जा रही हैं। हाल ही में दोनों देशों ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर एक स्थायी इंसानी बेस और न्यूक्लियर पावर प्लांट बनाने के लिए समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए हैं। इस परियोजना को इंटरनेशनल लूनर रिसर्च स्टेशन यानी ILRS का नाम दिया गया है, जो भविष्य में चंद्रमा पर वैज्ञानिक खोजों का मुख्य केंद्र बनेगा। यह ऐलान ऐसे समय में किया गया है जब अमेरिका ने 2026 के बजट प्रस्ताव में अपने चंद्र ऑर्बिटल स्टेशन को रद्द करने की योजना बनाई है। इससे साफ है कि अमेरिका को इस साझेदारी से रणनीतिक दबाव महसूस हो रहा है।

कब और कैसे शुरू होगा चांद पर निर्माण?

रूसी स्पेस एजेंसी रोस्कोस्मोस के प्रमुख यूरी बोरिसोव ने खुलासा किया है कि चांद पर न्यूक्लियर प्लांट का निर्माण बिना मानव मौजूदगी के किया जाएगा। इसके लिए अत्याधुनिक रोबोटिक तकनीकों का इस्तेमाल होगा जो चंद्र सतह पर खुद से निर्माण कार्य को अंजाम देंगे। हालांकि उन्होंने इसके लिए इस्तेमाल होने वाली तकनीकों की पूरी जानकारी साझा नहीं की, लेकिन यह जरूर कहा कि ज़रूरी तैयारियां लगभग पूरी हो चुकी हैं। रिपोर्टों के मुताबिक निर्माण कार्य 2030 और 2035 के बीच शुरू होगा और प्लांट 2036 तक पूरी तरह तैयार हो जाएगा।

ILRS क्या है और क्यों है खास?

ILRS एक संयुक्त चंद्र परियोजना है जिसे चीन और रूस मिलकर चला रहे हैं। इसका मकसद चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर एक ऐसा बेस बनाना है जहां भविष्य में वैज्ञानिक रिसर्च, संसाधनों की खोज और इंसानों की स्थायी मौजूदगी सुनिश्चित की जा सके। इस परियोजना की शुरुआत जून 2021 में हुई थी और अब तक इसमें पाकिस्तान, मिस्र, थाईलैंड, वेनेजुएला और दक्षिण अफ्रीका जैसे 17 देश जुड़ चुके हैं। इसका निर्माण पांच सुपर हेवी-लिफ्ट रॉकेट मिशनों के माध्यम से 2030 से 2035 तक किया जाएगा। यह स्टेशन 2050 तक विस्तारित किया जाएगा, जिसमें एक ऑर्बिटल स्टेशन, चंद्रमा की भूमध्य रेखा और दूरस्थ हिस्सों पर नोड्स (Nodes) शामिल होंगे। इसे सौर ऊर्जा, रेडियो आइसोटोप और न्यूक्लियर जनरेटर से संचालित किया जाएगा और हाई-स्पीड कम्युनिकेशन नेटवर्क से जोड़ा जाएगा जो चंद्रमा-पृथ्वी और चंद्र सतह के बीच संपर्क बनाए रखेगा।

अमेरिका पीछे क्यों होता नजर आ रहा है?

अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने 2026 के बजट में अपने प्लांड ऑर्बिटल स्टेशन को रद्द करने का प्रस्ताव रखा है। जबकि उसका आर्टेमिस प्रोग्राम अभी भी जारी है जिसका उद्देश्य 50 साल बाद अमेरिकी अंतरिक्ष यात्रियों को फिर से चांद पर भेजना है। लेकिन चीन और रूस की मिलीजुली रणनीति ने अमेरिका की राह मुश्किल कर दी है। जिस गति से ILRS आगे बढ़ रहा है, वह न केवल चंद्र अन्वेषण में एक नया अध्याय लिख सकता है बल्कि अमेरिका की स्पेस पॉलिसी को चुनौती भी दे सकता है।

चंद्र ऊर्जा संयंत्र क्यों है जरूरी?

चांद के दक्षिणी ध्रुव पर लंबे समय तक सूर्य की रोशनी रहती है और यहां पानी की संभावना भी सबसे ज्यादा है। यही कारण है कि दुनिया की अंतरिक्ष एजेंसियां इस क्षेत्र को प्राथमिकता दे रही हैं। एक न्यूक्लियर पावर प्लांट न केवल ILRS को ऊर्जा देगा बल्कि भविष्य में मानवों की चंद्रमा पर स्थायी मौजूदगी का रास्ता भी तैयार करेगा। इससे जीवन समर्थन प्रणाली, शोध प्रयोगशालाओं और संचार नेटवर्क को लंबे समय तक चलाया जा सकेगा।

चीन का चांद पर बढ़ता दबदबा

चीन ने पिछले एक दशक में अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम को तेज़ी से विकसित किया है। 2013 में उसने अपना पहला चंद्र रोवर भेजा था और उसके बाद से चंद्र सतह से नमूने लाना, नक्शे बनाना और रोबोटिक मिशन चलाना जैसे कई कदम उठाए हैं। अब उसका चांग’ए-8 मिशन 2028 में ILRS की नींव रखेगा और 2030 तक चीन अपने अंतरिक्ष यात्रियों को चांद पर भेजने का भी लक्ष्य बना चुका है। यह सब उस वक्त हो रहा है जब अमेरिका की गतिविधियां धीमी होती नजर आ रही हैं।

 

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