Edited By Prachi Sharma,Updated: 13 Nov, 2025 02:00 PM

Bhagavad Gita: भगवद् गीता, जिसे गीता ज्ञान के रूप में भी जाना जाता है, हिंदू धर्म का एक केंद्रीय ग्रंथ है, जिसमें भगवान श्री कृष्ण ने कुरुक्षेत्र के मैदान में अर्जुन को जीवन, धर्म और कर्म का गहन ज्ञान दिया है।
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Bhagavad Gita: भगवद् गीता, जिसे गीता ज्ञान के रूप में भी जाना जाता है, हिंदू धर्म का एक केंद्रीय ग्रंथ है, जिसमें भगवान श्री कृष्ण ने कुरुक्षेत्र के मैदान में अर्जुन को जीवन, धर्म और कर्म का गहन ज्ञान दिया है। गीता में, श्री कृष्ण ने मनुष्य के विनाश के मूल कारण को बहुत स्पष्ट रूप से बताया है। यह कारण है अत्यधिक आसक्ति और उससे उत्पन्न होने वाले मनोविकार।
भगवद् गीता में, भगवान श्री कृष्ण ने मनुष्य के पतन और विनाश की पूरी प्रक्रिया को एक क्रमबद्ध श्लोक श्रृंखला में समझाया है। उन्होंने स्पष्ट किया है कि मनुष्य की दुर्दशा का मूल कारण उसकी आसक्ति है, जो धीरे-धीरे उसे विनाश की ओर ले जाती है। श्री कृष्ण कहते हैं कि जब मनुष्य इंद्रियों के विषयों का चिंतन करता है, तो उसके मन में उन विषयों के प्रति आसक्ति पैदा हो जाती है।

विषय चिंतन
मनुष्य जब किसी वस्तु या व्यक्ति के बारे में लगातार सोचता रहता है कि 'वह वस्तु मेरे पास होनी चाहिए' या 'वह व्यक्ति मेरे जीवन में होना चाहिए', तो यह चिंतन शुरू होता है। यह पहला बीज है।
आसक्ति
बार-बार चिंतन करने से उस वस्तु या व्यक्ति के प्रति एक गहन जुड़ाव पैदा हो जाता है। यह जुड़ाव ही आसक्ति है। यह वह भाव है जब मनुष्य उस वस्तु को अपना मानने लगता है और उसके बिना अधूरापन महसूस करता है।
काम और क्रोध
एक बार जब आसक्ति मजबूत हो जाती है, तो यह तुरंत कामना को जन्म देती है।

कामना
आसक्ति जब इच्छा का रूप लेती है, तो वह कामना कहलाती है। यह उस वस्तु को किसी भी कीमत पर पाने की तीव्र लालसा है।
क्रोध
श्री कृष्ण कहते हैं कि जब उस तीव्र कामना की पूर्ति में कोई बाधा आती है, या जब वह व्यक्ति हमसे दूर हो जाता है, तो कामना क्रोध में बदल जाती है। क्रोध स्वयं पर और दूसरों पर नियंत्रण खोने की स्थिति है।
