एक रात में बना यह प्राचीन शिव मंदिर, अपनी भव्यता के लिए है देशभर में प्रसिद्ध

Edited By Jyoti,Updated: 16 Jan, 2020 06:03 PM

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भोपाल (नसीम अली): मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से 32 किलोमीटर दूर रायसेन जिले में स्थित भोजपुर मंदिर देश के प्रसिद्ध शिव मंदिरों में से एक है।

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भोपाल (नसीम अली): मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से 32 किलोमीटर दूर रायसेन जिले में स्थित भोजपुर मंदिर देश के प्रसिद्ध शिव मंदिरों में से एक है। एक पहाड़ी पर बना हुआ यह अधूरा शिव मंदिर भोजपुर शिव मंदिर और भोजेश्वर मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। इस मंदिर का निर्माण परमार वंश के राजा भोज ने कराया था। इस मंदिर की विशेषता है कि इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग की ऊंचाई 18 फीट है जो कि देश के सबसे बड़े शिवलिंगों में से एक है। इस शिवलिंग का निर्माण सिर्फ एक ही पत्थर से किया गया है जिसके कारण यह विश्व का एक मात्र ऐसा शिवलिंग है।
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मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से 32 किमी दूर स्थित भोजपुर से लगती हुई पहाड़ी पर एक विशाल, अधूरा शिव मंदिर हैं। यह भोजपुर शिव मंदिर या भोजेश्वर मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हैं। इतिहासकार कहते हैं कि भोजपुर तथा इस शिव मंदिर का निर्माण परमार वंश के प्रसिद्ध राजा भोज (1010 ई - 1055 ई) द्वारा किया गया था।

रायसेन जिले की गौहर गंज तहसील के ओबेदुल्ला विकास खंड में स्थित इस शिव मंदिर को 11 वीं सदी में परमार वंश के राजा भोज प्रथम ने बनवाया था। कंक्रीट के जंगलों को पीछे छोड़ प्रकृति की हरी भरी गोद में, बेतवा नदी के किनारे बना उच्च कोटि की वास्तुकला का यह नमूना राजा भोज के वास्तुविदों के सहयोग से तैयार हुआ था। इस मंदिर की विशेषता इसका विशाल शिवलिंग हैं जो कि विश्व का एक ही पत्थर से निर्मित सबसे बड़ा शिवलिंग हैं। सम्पूर्ण शिवलिंग कि लम्बाई 5.5 मीटर (18 फीट ), व्यास 2.3 मीटर (7.5 फीट ), तथा केवल शिवलिंग कि लम्बाई 3.85 मीटर (12 फीट) है।

अधूरा है भोजपुर का ये शिव मंदिर
भोजेश्वर मंदिर का अधूरा निर्माण हैं। कहा जाता है कि इस मंदिर के अधूरे होने के पीछे एक बड़ा कारण है। किस्से कहानियों कहते हैं। इस मंदिर को किसी वजह से एक ही रात में बनाया जाना था, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। सुबह होते ही इस मंदिर का निर्माण कार्य रोक दिया गया। उस समय छत के बनाए जाने का कार्य चल रहा था, लेकिन सूर्योदय होने के साथ ही मंदिर का निर्माण कार्य रोक दिया गया, तब से ये मंदिर अधूरा ही है। हालांकि पुरातत्व विभाग ऐसी किसी भी घटना की पुष्टि नहीं करता है।
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इस्लाम के आगमन के पहले हुए था निर्माण
इतिहासकारों एवं पुरातत्विदों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण भारत में इस्लाम के आगमन के पहले हुआ था अतः इस मंदिर के गर्भगृह के ऊपर बनी अधूरी गुम्बदाकार छत भारत में ही गुम्बद निर्माण के प्रचलन को प्रमाणित करती है। भले ही उनके निर्माण की तकनीक भिन्न हो। कुछ विद्धान इसे भारत में सबसे पहले गुम्बदीय छत वाली इमारत भी मानते हैं। इस मंदिर का दरवाजा भी किसी हिंदू इमारत के दरवाजों में सबसे बड़ा है।

इस मंदिर की विशेषता इसके 40 फीट ऊंचाई वाले इसके चार स्तम्भ भी हैं। गर्भगृह की अधूरी बनी छत इन्हीं चार स्तंभों पर टिकी है। इसके अतिरिक्त भूविन्यास, सतम्भ, शिखर, कलश और चट्टानों की सतह पर आशुलेख की तरह उत्कीर्ण नहीं किए हुए हैं। भोजेश्वर मंदिर के विस्तृत चबूतरे पर ही मंदिर के अन्य हिस्सों, मंडप, महामंडप तथा अंतराल बनाने की योजना थी। ऐसा मंदिर के निकट के पत्थरों पर बने मंदिर- योजना से संबद्ध नक्शों से पता चलता है।

अनोखे ढंग से होती है इस मंदिर में भगवान शिव की पूजा
भक्तों की आस्था के इस केन्द्र में भगवान शिव की पूजा अर्चना करना का ढंग भी बिल्कुल अनोखा है। शिवलिंग इतना बड़ा है कि उसका अभिषेक धरती पर खड़े होकर नहीं किया जा सकता। अंदर विशालकाय शिवलिंग के कारण इतनी जगह नहीं बचती कि किसी अन्य तरीके से शिवलिंग किया जा सके। इसलिए हमेशा से ही इस शिवलिंग का अभिषेक और पूजन इसकी जलहरी पर चढ़कर ही किया जाता है। कुछ समय पहले तक आम श्रद्धालु भी जलहरी तक जा सकते थे, लेकिन अब सिर्फ पुजारी ही दिन में दो बार जलहरी पर चढ़कर भगवान का अभिषेक और पूजा करते हैं।
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पाण्डवों द्वारा निर्माण किए जाने की है मान्यता
इस मंदिर को पांडवकालीन भी माना जाता है। कहा जाता है कि पांडवों के अज्ञातवास के दौरान वे भोपाल के नजदीक भीमबेटका में भी कुछ समय के लिए निवासरत थे। इसी समय में उन्होंने माता कुन्ती की पूजा के लिए एक भव्य शिव मंदिर का निर्माण किया था। इस मंदिर को बड़े बड़े पत्थरों से स्वयं भीम ने तैयार किया था। ताकि पास ही बहने वाली बेतवा नही में स्नान के बाद माता कुन्ती भगवान शिव की उपासना कर सकें। कहा जाता है कि कालान्तर में यही विशाल शिवलिंग वाला मन्दिर। राजा भोज के समय विकसित होकर भोजेश्वर महादेव मंदिर कहलाया।

भोजेश्वर मंदिर के पीछे के भाग में बना ढलान है, जिसका उपयोग निर्माणाधीन मंदिर के समय विशाल पत्थरों को ढोने के लिए किया गया था। पूरे विश्व में कहीं भी अवयवों को संरचना के ऊपर तक पहुंचाने के लिए ऐसी प्राचीन भव्य निर्माण तकनीक उपलब्ध नहीं है। ये एक प्रमाण के तौर पर है, जिससे ये रहस्य खुल जाता है कि आखिर कैसे कई टन भार वाले विशाल पत्थरों का मंदिर क शीर्ष तक पहुचाया गया।
 

साल में दो बार आयोजित होता है मेला
इस प्रसिद्ध स्थल में वर्ष में दो बार वार्षिक मेले का आयोजन किया जाता है जो मकर संक्रांति व महाशिवरात्रि पर्व के समय होता है। इस धार्मिक उत्सव में भाग लेने के लिए दूर दूर से लोग यहां पहुंचते हैं। महाशिवरात्रि पर यहां तीन दिवसीय भोजपुर महोत्सव का भी आयोजन किया जाने लगा है। भोजपुर शिव मंदिर के बिलकुल सामने पश्चमी दिशा में एक गुफा है।

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