घर में करें ये जाप, खुश और आबाद रहेंगे आप

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 31 Aug, 2019 11:46 AM

chanting of gayatri mantra

गायत्री को वेद माता का स्थान सनातन काल से प्राप्त है। इस महामंत्र के चौबीस अक्षरों में चौबीस पूजनीय तपस्वी महर्षि वामदेव, अत्रि, वशिष्ठ, शुक, कण्व, पराशर, विश्वामित्र, कपिल, शौनक, याज्ञवल्क्य, भरद्वाज, जमदग्रि, गौतम, मुद्गल, वेदव्यास, लोमश,

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गायत्री को वेद माता का स्थान सनातन काल से प्राप्त है। इस महामंत्र के चौबीस अक्षरों में चौबीस पूजनीय तपस्वी महर्षि वामदेव, अत्रि, वशिष्ठ, शुक, कण्व, पराशर, विश्वामित्र, कपिल, शौनक, याज्ञवल्क्य, भरद्वाज, जमदग्रि, गौतम, मुद्गल, वेदव्यास, लोमश, अगस्त्य, कौशिक, वत्स, पुलस्त्य, मांडूक, दुर्वासा, नारद और कश्यप की तप-शक्ति समाहित है। इतना ही नहीं, गायत्री मंत्र के चौबीस अक्षरों में क्रमश: जिन चौबीस देवताओं की शक्ति समाहित रहती है वे हैं-अग्रि, प्रजापति, चंद्रमा, ईशान, सविता, आदित्य, बृहस्पति, मैत्रावरुण, भग, अर्यमा, गणेश, त्वष्ट्रा, पूषा, इंद्र, अग्रि, वायु, वामदेव, वरुण, विश्व देवता मातृकाएं, विष्णु वसु, रुद्र, कुबेर और अश्विनी कुमार। चौबीस देवियों की तरह सृष्टि के चौबीस तत्व भी गायत्री महामंत्र के अक्षरों में समाहित हैं। पुराणों में स्पष्ट उल्लेख है- पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश, गंध, रस, रूप, शब्द, स्पर्श, उपस्थ, गुदा, चरण, हाथ, वाणी, नासिका, जिव्हा, चक्षु, त्वचा, श्रोत्र, प्राण, अपान, व्यान एवं समान-ये सभी चौबीस तत्व है। 

PunjabKesari Chanting of Gayatri Mantra

गायत्री महामंत्र में सृष्टि के चौबीस रंग भी समावेशित हैं। इस महामंत्र के पहले अक्षर का रंग तीसी (अलसी) के फूल जैसा, दूसरे का मूंगे के रंग जैसा, तीसरे का स्फटिक जैसा, चौथे का पज्ञरागमणि जैसा, पांचवें का उदित सूर्य जैसा, छठे का शंख, सातवें का कुंद, आठवें का इंद्र, नौंवें का प्रवाल, दसवें का कमलपत्र, ग्यारहवें का पज्ञराग, बारहवें का नीलमणि, तेरहवें का कुंकुम, चौदहवें का अंजन, पंद्रहवें का लाल वैदूर्य, सौलहवें का शहद, सत्रहवें का हल्दी, अठाहरवें का कुंद, उन्नीसवें का दूध, बीसवें का सूर्यकांति, इक्कीसवें का सुग्गा पूंछ, बाइसवें का शतपत्र, तेइसवें का केतकी और चौबीसवें अक्षर का रंग चमेली के पुष्प जैसा है। गायत्री मंत्र में चौबीस छंदों की ऊर्जा समाहित होने के साथ-साथ परम श्रेष्ठ चौबीस मुद्राओं के फल भी समाहित हैं।

प्राचीन ग्रंथों के अनुसार गायत्री मंत्र के प्रथम अक्षर में सफलता, दूसरे में पुरुषार्थ, तीसरे में पालन, चौथे में कल्याण, पांचवें में योग, छठे में प्रेम, सातवें में लक्ष्मी, आठवें में तेजस्विता, नौवें में सुरक्षा, दसवें में बुद्धि, ग्यारहवें में दमन, बारहवें में निष्ठा, तेहरवें में धारणा, चौदहवें में प्राण, पंद्रहवें में संयम, सोलहवें मे तप, सत्रहवें में दूरदर्शिता, अठारहवें में जागरण, उन्नीसवें में सृष्टि ज्ञान, बीसवें में सफलता, इक्कीसवें में साहस, बाइसवें में दमन, तेइसवें में विवेक और चौबीसवें में सेवाभाव नाम की शक्तियों का समावेश है। इन गुणों से युक्त मानव को देवत्य का आशीर्वाद मिल जाता है।

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इस महामंत्र में ईश्वर से सद्बुद्धि के लिए प्रार्थना की गई है। गायत्री मंत्र जप करने पर गुप्त शक्ति केंद्र खुल जाते हैं। गायत्री मंत्र का कार्य दुर्बुद्धि का निवारण कर सद्बुद्धि देना है। इस मंत्र के जपने से चुंबक तत्व सक्रिय होकर प्रसुप्त क्षेत्रों को गतिशील कर देते हैं।
नास्ति गंगा समं तीर्थ न देव: केशवात्पर:। गायत्र्यास्तु पर जाप्यं न भूतं न भविष्यति।।

अथार्त- गंगा के समान कोई तीर्थ नहीं, केशव के समान कोई देव नहीं है। गायत्री से श्रेष्ठ न कोई जप हुआ न होगा। गायत्री मंत्र प्रणव (ओंकार) का विस्तृत रूप है।

इस मंत्रोच्चारण द्वारा ब्रह्म के तेज की प्राप्ति होती है इसलिए जहां भी गायत्री का वास होता है वहां यश, र्कीत, ज्ञान तथा दिव्य बुद्धि सहज ही उपलब्ध हो जाती है।

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अग्रि पुराण में कहा गया है-
‘गायत्र्यास्तु परं नास्ति दिवि चेह व पावनम्।’
गायत्री मंत्र से बढ़ कर पवित्र करने वाला दूसरा कोई मंत्र नहीं है। मंत्र का जप एक निश्चित समय पर निश्चित स्थान पर बैठकर करें। 

शंख ऋषि ने लिखा है, ‘‘अगर गायत्री का विधिपूर्वक जप करते समय घी और खील से हवन किया जाए तो शांति मिलती है तथा केवल शुद्ध देसी घी से हवन किया जाए तो अकाल मृत्यु का भय नहीं होता और अगर हवन सामग्री से बिल्वपत्र, कमल के पुष्प तथा दूध मिलाकर हवन किया जाए तो धन और र्कीत की प्राप्ति होती है और अगर केवल दूध मिलाकर आहुति दी जाए तो पराक्रम की प्राप्ति होती है।’’  

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