Edited By Jyoti,Updated: 11 Apr, 2022 01:12 PM
एक बार भगवान बुद्ध कहीं प्रवचन दे रहे थे। अपना उपदेश खत्म करते हुए उन्होंने आखिर में कहा, जागो, समय हाथ से निकला जा रहा है। सभा विसॢजत होने के बाद उन्होंने अपने प्रिय शिष्य आनंद से कहा
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एक बार भगवान बुद्ध कहीं प्रवचन दे रहे थे। अपना उपदेश खत्म करते हुए उन्होंने आखिर में कहा, जागो, समय हाथ से निकला जा रहा है। सभा विसॢजत होने के बाद उन्होंने अपने प्रिय शिष्य आनंद से कहा, चलो थोड़ी दूर घूम कर आते हैं।
आनंद बुद्ध के साथ चल दिए। अभी वे विहार के मुख्य द्वार तक ही पहुंचे थे कि एक किनारे रुक कर खड़े हो गए। प्रवचन सुनने आए लोग एक-एक कर बाहर निकल रहे थे। अचानक उनमें से निकल कर एक महिला गौतम बुद्ध से मिलने आई। उसने कहा तथागत मैं नर्तकी हूं। आज नगर के श्रेष्ठी के घर मेरे नृत्य का कार्यक्रम पहले से तय था, लेकिन मैं भूल चुकी थी। आपने कहा, समय निकला जा रहा है तो मुझे तुरन्त इस बात की याद आई।
उसके बाद एक डकैत बुद्ध की ओर आया। उसने कहा, तथागत मैं आपसे कोई बात छिपाऊंगा नहीं। मैं भूल गया था कि आज मुझे एक जगह डाका डालने जाना था कि आज उपदेश सुनते ही मुझे अपनी योजना याद आ गई। बहुत-बहुत धन्यवाद! उसके जाने के बाद धीरे-धीरे चलता हुआ एक बूढ़ा व्यक्ति बुद्ध के पास आया। बुद्ध ने कहा, तथागत! जिंदगी भर दुनियावी चीजों के पीछे भागता रहा। अब मौत का सामना करने का दिन नजदीक आता जा रहा है, तब मुझे लगता है कि सारी जिंदगी यूं ही बेकार हो गई। आज से मैं अपने सारे दुनियावी मोह छोड़कर निर्वाण के लिए कोशिश करना चाहता हूं।
जब सब लोग चले गए तो बुद्ध ने कहा, देखो आनंद। प्रवचन मैंने एक ही दिया, लेकिन उसका हर किसी ने अपनी भावना के अनुसार अलग-अलग मतलब निकाला। जिसकी जितनी झोली होती है, उतना ही दान वह समेट पाता है। निर्वाण प्राप्ति के लिए भी मन की झोली को उसके लायक होना होता है। इसके लिए मन का शुद्ध होना बहुत जरूरी है।