Edited By Prachi Sharma,Updated: 14 Nov, 2025 12:39 PM
Gita Shlok: श्रीमद्भगवद्गीता केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं है, बल्कि यह जीवन के हर पहलू पर मार्गदर्शन देने वाला एक महान दर्शन है। कुरुक्षेत्र के युद्ध मैदान में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो उपदेश दिए, वे आज भी मनुष्य के मन को शांत करने, दुविधाओं को...
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Gita Shlok: श्रीमद्भगवद्गीता केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं है, बल्कि यह जीवन के हर पहलू पर मार्गदर्शन देने वाला एक महान दर्शन है। कुरुक्षेत्र के युद्ध मैदान में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो उपदेश दिए, वे आज भी मनुष्य के मन को शांत करने, दुविधाओं को दूर करने और जीवन के सत्य को समझने में सहायक हैं। जब भी मन अशांत हो, तनाव हो या जीवन में कोई बड़ा निर्णय लेना हो, गीता के ये पांच श्लोक आपको तुरंत शांति और स्पष्टता प्रदान कर सकते हैं।
कर्मण्येवाधिकारस्ते
यह श्लोक शायद गीता का सबसे प्रसिद्ध और सबसे अधिक शांति प्रदान करने वाला उपदेश है, जो हमें अनासक्ति योग सिखाता है।
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥
यह श्लोक तनाव का मूल कारण—परिणामों की चिंता—को दूर करता है। जब हम फल की चिंता छोड़कर केवल अपनी ड्यूटी पर ध्यान केंद्रित करते हैं, तो मन तुरंत शांत हो जाता है, क्योंकि असफलता का भय समाप्त हो जाता है। यह सिखाता है कि हम वर्तमान में रहें और अपना 100% दें।
यदा यदा हि धर्मस्य
यह श्लोक भक्तों को विश्वास और आश्वासन देता है कि जब-जब धर्म का पतन होता है, भगवान स्वयं प्रकट होते हैं।
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥
यह श्लोक आशा और आस्था का संचार करता है। यह जानकर मन को शांति मिलती है कि दुनिया में चाहे कितनी भी बुराई क्यों न हो, अंत में सत्य की ही जीत होती है। यह विश्वास देता है कि जब अन्याय असहनीय हो जाएगा, तब एक दैवीय शक्ति संतुलन स्थापित करने के लिए हस्तक्षेप करेगी।
नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि
यह श्लोक आत्मा के स्वरूप का वर्णन करता है और हमें मृत्यु के भय से मुक्त करता है।
नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः॥
जीवन में सबसे बड़ा भय मृत्यु और विनाश का होता है। यह श्लोक इस सत्य का ज्ञान कराता है कि हम केवल शरीर नहीं, बल्कि एक अविनाशी आत्मा हैं। इस ज्ञान से शोक और भय समाप्त हो जाता है, और मन जीवन-मरण के चक्र से ऊपर उठकर शांत हो जाता है।

समत्वं योग उच्यते
यह श्लोक योग की वास्तविक परिभाषा बताता है—समता या समानता का भाव।
योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय।
सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते॥
जीवन में अशांति का मुख्य कारण सुख-दुःख, लाभ-हानि और जय-पराजय के प्रति हमारा द्वैत (भेदभाव) का भाव है। जब हम सफलता और असफलता दोनों को एक समान देखने लगते हैं, तो मन बाहरी परिस्थितियों पर निर्भर रहना छोड़ देता है और भीतर की शांति को प्राप्त करता है।
तस्माद् युध्यस्व भारत
हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम्।
तस्माद् उत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चयः॥
जब हम किसी बड़ी दुविधा में फंस जाते हैं, तो मन निर्णय न ले पाने के कारण सबसे अधिक अशांत होता है। यह श्लोक बताता है कि सबसे बड़ा धर्म अपना कर्तव्य निभाना है। जब हम परिणाम की चिंता किए बिना अपना धर्म या कार्य करने का दृढ़ निश्चय कर लेते हैं, तो मन की सारी दुविधाएं और बेचैनी दूर हो जाती है।
