Guru Nanak Jayanti: गुरु नानक देव जी की जयंती पर पढ़ें उनका दिया प्रेम संदेश

Edited By Updated: 05 Nov, 2025 07:20 AM

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Guru Nanak Jayanti 2025: गुरु नानक साहिब का जीवन केवल ऐतिहासिक ज्ञान-अर्जन का नहीं, बल्कि आत्मिक जागरण और प्रगति का विषय है। उनके उपदेशों में एक विशेष प्रकार का सार्वभौमिक दृष्टिकोण छिपा हुआ है, जो न केवल व्यक्तिगत जीवन को प्रगति की दिशा देता है,...

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Guru Nanak Jayanti 2025: गुरु नानक साहिब का जीवन केवल ऐतिहासिक ज्ञान-अर्जन का नहीं, बल्कि आत्मिक जागरण और प्रगति का विषय है। उनके उपदेशों में एक विशेष प्रकार का सार्वभौमिक दृष्टिकोण छिपा हुआ है, जो न केवल व्यक्तिगत जीवन को प्रगति की दिशा देता है, बल्कि समाज को भी नए मानवीय दृष्टिकोण से जोड़ता है। विशेष रूप से कलियुग में, जब मानवता का सबसे बड़ा संकट आत्मिक शांति और सुख की प्राप्ति है, गुरु नानक साहिब का जीवन हमारे लिए एक अमूल्य धरोहर है।

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सुख की खोज हर मानव का स्वाभाविक लक्ष्य है, लेकिन यह सुख न तो भौतिक वस्तुओं में निहित है, न ही किसी सामाजिक स्थिति या सत्ता में। गुरु नानक साहिब का जीवन इसी सत्य का उद्घाटन करता है कि असली सुख आत्मिक प्रफुल्लता में है, जिसे वे अपने प्रत्येक अनुयायी तक पहुंचाना चाहते थे।

जन्म के समय ही दाई दौलतां ने गुरु नानक साहिब का प्रथम दर्शन किया और उसकी आत्मा में एक अजीब-सा आनंद उत्पन्न हुआ। यह घटना गुरु नानक साहिब के जीवन के पहले पल से ही यह स्पष्ट कर देती है कि उनका जीवन सामान्य नहीं था। उनकी दृष्टि में ऐसा अद्वितीय आकर्षण था, जो सभी को प्रभावित करता था। 

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गुरु नानक साहिब ने हमेशा हर व्यक्ति के भीतर आत्मिक जागरण का संवेदनशील बोध कराया, और उनका जीवन समदृष्टि का प्रतीक बना, जिसमें जाति, धर्म, रंग, वर्ग आदि कोई भेदभाव नहीं थे। 

उनका कहना था कि सच्चा धर्म वही है, जो मनुष्य को परमात्मा से जोड़ने का कार्य करे। उन्होंने स्वयं को कभी किसी विशेष पूजा-पाठ या कर्मकांड से नहीं जोड़ा, बल्कि सच्चे कर्म का मतलब बताया, जो परमात्मा की सेवा और प्रेम में निहित है। उदाहरण स्वरूप, जब गुरु नानक साहिब ने भाई मरदाना को अपना साथी चुना, तो यह उनकी समदृष्टि का प्रतीक था, क्योंकि मरदाना मुस्लिम थे। उनके लिए सबका एक ही स्थान था-परमात्मा के पास।

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गुरु नानक साहिब ने जब यह कहा कि ‘साच वखर के हम वणजारे’ तो इसका मतलब था कि उनका मिशन केवल सत्य का प्रचार करना था। सत्य न केवल शब्दों में, बल्कि जीवन के प्रत्येक पहलू में झलकता है। उन्होंने परमात्मा को निराकार और एकमात्र सच्चा कर्ता माना। उनका यह संदेश था कि मनुष्य को अपने जीवन को सत्य और कर्म के आधार पर जीना चाहिए। 

गुरु नानक साहिब के उपदेशों में सत्य के प्रति उनका गहरा प्रेम था। वह कहते हैं कि ‘आदि सचु जुगादि सचु। है भी सचु, नानक होसी भी सचु॥’ अर्थात सत्य वही है, जो प्रारंभ से लेकर अंत तक अस्तित्व में है। इस सत्य की पहचान करना ही मनुष्य का मुख्य उद्देश्य है। गुरु साहिब ने यह स्पष्ट किया कि मनुष्य का परमात्मा से संबंध उसी तरह है, जैसे संतान का पिता से। जीवन में संतुलन और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त करने के लिए यही सबसे सही मार्ग है।

गुरु नानक साहिब ने मानवता के भेदभाव को समाप्त करने की दिशा में कई कदम उठाए। उन्होंने कहा कि कर्म ही मनुष्य का सही मापदंड है, न कि जाति, धर्म या वंश। 

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‘जो तुझु भावै साई भली कार’ यह उक्ति गुरु साहिब के जीवन का आधार थी, जिसमें उन्होंने यह स्पष्ट किया कि असली धर्म वही है जो परमात्मा को संतुष्ट करता है। उनके लिए परमात्मा की भक्ति और प्रेम ही जीवन का वास्तविक उद्देश्य था।

गुरु नानक साहिब ने समाज के प्रत्येक वर्ग के लिए समानता का संदेश दिया। उन्होंने समाज में व्याप्त भेदभाव, अंधविश्वास और कर्मकांड के खिलाफ अपनी आवाज उठाई। उनके अनुसार, परमात्मा के दृष्टिकोण से कोई भी जीव भेदभाव का पात्र नहीं है। सभी जीव एक जैसे हैं और सभी को परमात्मा ने समान रूप से रचा है। 

गुरु नानक साहिब की शिक्षाओं ने भारतीय समाज में गहरे परिवर्तन की शुरुआत की। उन्होंने समाज को प्रेम, दया, करुणा और समर्पण का पाठ पढ़ाया। उनके विचार आज भी हमारे जीवन को दिशा देने में मदद करते हैं। गुरु साहिब का यह अद्वितीय दृष्टिकोण बताता है कि कोई भी धर्म, कोई भी पूजा और कोई भी कर्म अगर सच्चे प्रेम और समर्पण से जुड़ा हो, तो वही सर्वोत्तम होता है।

गुरु नानक साहिब के दर्शन ने समग्र समाज को एक नया दृष्टिकोण दिया। उनके द्वारा प्रस्तुत किया गया प्रेम-पंथ आज भी समस्त मानवता को जोड़ने का सबसे सशक्त माध्यम बन सकता है। गुरु नानक साहिब ने हर व्यक्ति से प्रेम का संदेश दिया। आज जब दुनिया में भेदभाव और नफरत का माहौल है, गुरु नानक साहिब का प्रेम-पंथ विश्व को एकता और शांति की ओर अग्रसर कर सकता है।    

(साभार ‘गुरमत ज्ञान’)

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