Edited By Jyoti,Updated: 20 Mar, 2022 10:53 AM
नवलगढ़ के राजा भीम सिंह जब गद्दी पर बैठे तो उन्हें राजा होने के साथ-साथ खजांची का काम भी देखना पड़ा।
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नवलगढ़ के राजा भीम सिंह जब गद्दी पर बैठे तो उन्हें राजा होने के साथ-साथ खजांची का काम भी देखना पड़ा। उनके यहां पर परम्परा चली आ रही थी कि राजा ही खजांची होगा। कुछ ही दिनों बाद भीम सिंह खजांची का कार्यभार संभालते-संभालते थक गए और अपने मंत्री से बोले, ‘‘मंत्री जी हमने तो ऐसा कहीं नहीं देखा कि राजा ही अपने राज्य के खजांची का कार्यभार संभाले। हमारे यहां पर ही यह नियम क्यों है?’’
इस पर मंत्री ने कहा, ‘‘महाराज आपके पिता जी भी खजांची का कार्यभार संभालते थे। इसका कारण यह है कि उनके समय जो खजांची था, उसने राजकोष से बहुत-सा धन चुराया और जब उसकी चोरी का पता लगा तो वह अचानक ही मर गया इसलिए किसी को यह भी पता नहीं चला कि चोरी का धन कहां गया?
बस तभी से आपके पिता जी ने अपना खजाना स्वयं संभालना शुरू कर दिया।’’
भीम सिंह बोले, ‘‘हमारे राज्य में केवल चोर नहीं, ईमानदार लोग भी तो होते होंगे। आप शीघ्र एक ईमानदार खजांची की नियुक्ति करवाएं।’’
इस पर मंत्री बोला, ‘‘महाराज आपके आदेश का पालन किया जाएगा। उसके लिए बाहर के किसी व्यक्ति को न रख कर दरबार में किसी योग्य कर्मचारी को खजांची बनाया जाए तो बेहतर है।’’
राजा ने मंत्री की बात मान ली। पच्चीस दरबारियों ने खजांची के पद के लिए आवेदन कर दिया। राजा ने मंत्री से पूछा, ‘‘हमारे यहां 26 दरबारी हैं। एक दरबारी ने आवेदन क्यों नहीं किया?’’
मंत्री बोला, ‘‘महाराज अपने राज्य में खजांची का वेतन दरबारी के वेतन से कम है, इसलिए उसने आवेदन नही किया।’’
इस पर राजा ने कहा, ‘‘इसका अर्थ यह हुआ कि बाकी दरबारी जानते हैं कि खजांची बनने पर वे अनुचित फायदा उठा कर धन उपार्जन कर सकते हैं। इसके अलावा 26 वें दरबारी के मन में ऐसा कुछ नहीं है क्योंकि वह ईमानदार है।’’
इसलिए राजा ने उस 26वें दरबारी को ही खजांची नियुक्त कर दिया।