Edited By Niyati Bhandari,Updated: 08 Aug, 2023 08:31 AM
संस्कार का अर्थ होता है शुद्ध करना, स्वच्छ करना और भीतरी रूप को प्रकाशित करना। हालांकि, संस्कारों का परिचय कुछ बाहरी बातों से होता है और हिन्दू धर्म के अनुसार मनुष्य
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Inspirational Context: संस्कार का अर्थ होता है शुद्ध करना, स्वच्छ करना और भीतरी रूप को प्रकाशित करना। हालांकि, संस्कारों का परिचय कुछ बाहरी बातों से होता है और हिन्दू धर्म के अनुसार मनुष्य के जो संस्कार होते हैं उनमें कुछ क्रियाएं अनिवार्य होती हैं। फिर भी संस्कारों का उद्देश्य विशेषतया मानसिक और आध्यात्मिक होता है। उनमें रुढ़िया और बाहरी बातें गौण होती हैं।
मुख्य लक्ष्य यह होता है कि जिस व्यक्ति को संस्कारित किया जाए उसके मन और आत्मा पर अच्छा प्रभाव पड़े। जब हम किसी व्यक्ति के विषय में यह कहते हैं कि वह मनुष्य सुसंस्कृत हैं या उसके संस्कार अच्छे हैं तब हमारा आशय उस व्यक्ति की बाहरी बातों पर व्यवहार से इतना नहीं होता जितना कि उसकी आत्मा के विकास से होता है जिसकी प्रेरणा से वह अपने सद्गुणों का परिचय देता है।
संस्कृति हमारे भीतरी गुणों का समूह है। संस्कृति हमारे सामाजिक व्यवहारों को निश्चित करती है, हमारे साहित्य और उसकी भाषा को बनाती है और हमारी संस्थाओं को जन्म देती है। संस्कृति हमें बताती है कि हम अपनी चित्त वृत्तियों का कितना विकास कर पाए हैं। पशु जीवन से हम कितना ऊंचा उठ सके हैं।
एक फोटोग्राफर के मन में विचार आया कि वह अपने स्टूडियो में सुंदर शिशु का चित्र लगाए। अनेक गांवों व नगरों में घूमने के पश्चात उसे एक गांव में दस वर्षीय बालक सबसे सुंदर लगा। उसने उसके माता-पिता से पूछकर उसका फोटो ले लिया तथा उसे अपने स्टूडियो में लगा दिया। कुछ वर्षों के पश्चात उसके मन में विचार आया कि संसार के सबसे कुरूप व्यक्ति का चित्र भी स्टूडियो में लगाया जाए। इसके लिए उसे जेलों में जाकर अपराधियों से मिलना पड़ा जो हत्या एवं अन्यायादि कृत्यों के लिए कारावास भुगत रहे थे। इस शोध के लिए वह एक जेल में पहुंचा।
वहां उसने एक युवक को देखा जो अत्यंत कुरूप लग रहा था तथा वह दुर्गंध युक्त परिस्थितियों में बैठा था। फोटोग्राफर को लगा इससे कुरूप व्यक्ति दूसरा नहीं हो सकता। उसने उसका फोटो ले लिया। फोटो लेने का उद्देश्य जानकर वह व्यक्ति रो पड़ा।
कारण पूछने पर उस व्यक्ति ने बताया कि जब वह दस वर्ष का बालक था तब भी एक फोटोग्राफर उसका फोटो ले गया था कि वह उसे बहुत सुंदर लगा था। मेरे माता-पिता के लाड-प्यार के कारण मुझमें सब प्रकार के दुर्गुण आ गए। कुछ वर्ष के पश्चात ही बच्चे देखकर भयभीत होने लगे। समाज में उसे घृणा की दृष्टि से देखा जाने लगा। परिणामस्वरूप प्रतिदिन चोरी करने का समय नियम हो गया और आप आज मुझे इस स्थिति में देख रहे हैं इसलिए बालकों को संस्कारित करने के लिए विशेष ध्यान देना चाहिए।
बिना परिश्रम करे फल कैसे प्राप्त हो सकता है ? हमारे बालक तभी संस्कारित हो सकते हैं जबकि हम स्वयं संस्कारित होंगे। मां बालकों की गुरु होती है इसलिए माताओं को बालकों को संस्कारित करना चाहिए। घर से बाहर बालकों को संस्कारित करने में विद्यालय तथा गुरुजन का बड़ा महत्व है। इन सभी द्वारा भी बालकों को उत्तम संस्कार प्रदान किए जा सकते हैं।