Inspirational Context: जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि

Edited By Prachi Sharma,Updated: 03 Dec, 2023 07:39 AM

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सांझ हो रही थी। कहीं पर अंधेरा तो कहीं पर धीरे-धीरे मंद पड़ता प्रकाश दिखाई पड़ रहा था। इसी धुंधलके में बरगद का एक पेड़ भी खड़ा था। पेड़ की

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Inspirational Context: सांझ हो रही थी। कहीं पर अंधेरा तो कहीं पर धीरे-धीरे मंद पड़ता प्रकाश दिखाई पड़ रहा था। इसी धुंधलके में बरगद का एक पेड़ भी खड़ा था। पेड़ की एक कोटर से एक चमगादड़ निकलकर शाखा पर आ बैठा।

कुछ देर में एक मैना भी वहीं आकर बैठी और उससे बोली, “भाई चमगादड़ ! तुमने सुबह का सूरज देखा था ? आज कितना मनोरम सूर्योदय हुआ था।”

चमगादड़ सदा अंधकार में रहा था, उसे प्रकाश का कोई भान ही न था।

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इसलिए वह आश्चर्य से बोला, “सूर्योदय क्या होता है ?”

मैना उसे समझाते हुए बोली, “जब रात का अंधेरा सूरज के प्रकाश से गायब हो जाता है तो उसे सूर्योदय कहते हैं।

मैना के समझाने पर भी चमगादड़ को सूर्योदय का कुछ अंदेशा न लग पाया। मैना की परेशानी समझकर वहीं पास बैठा तोता मैना से बोला, “बहन मैना !

चमगादड़ ने अपना जीवन अंधकार में ही गुजारा है इसलिए उसे प्रकाश का कोई भान नहीं है। ज्यादातर मनुष्य भी अपना जीवन ऐसे ही संकुचित दृष्टिकोण में गुजारते हैं और जो उन्हें नहीं दीखता उसे सिरे से नकार देते हैं। ” जीवन और कुछ नहीं, भिन्न-भिन्न दृष्टिकोणों का समन्वय है।

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