Edited By Sarita Thapa,Updated: 23 May, 2025 07:00 AM
Inspirational Context: राजा गजपति धन, सम्पत्ति, विशाल राज्य तथा अनेक प्राकृतिक साधनों के कारण बहुत सुखी था। उसकी रुचि संत-महात्माओं में भी थी। वह स्वभाव से बहुत दयावान भी था। लेकिन इतनी सारी अच्छाइयों के बावजूद वह अहंकार में जी रहा था।
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Inspirational Context: राजा गजपति धन, सम्पत्ति, विशाल राज्य तथा अनेक प्राकृतिक साधनों के कारण बहुत सुखी था। उसकी रुचि संत-महात्माओं में भी थी। वह स्वभाव से बहुत दयावान भी था। लेकिन इतनी सारी अच्छाइयों के बावजूद वह अहंकार में जी रहा था। उसकी अपने वैभव का प्रदर्शन करने, बड़ी-बड़ी डींगे हांकने की बुरी आदत के कारण संतों को बुरा भी लगता। एक विद्वान संत राजा गजपति पर विशेष कृपा तो किया करते किंतु उन्हें भी राजा के इस दुर्गुण का सदा दुख बना रहता।
इस बार जब राजा उनसे मिलने गए तो कुशल-क्षेम के बाद उन विद्वान संत ने प्रश्न किया, “राजन! मान लो आप किसी घने वन में अकेले फंस जाएं और आप प्यास से छटपटाने लगें, पानी ढूंढने पर भी न मिले तो अचानक एक निर्धन-सा व्यक्ति अपने हाथ में एक लोटा पानी लेकर आ जाए और आप से कहे कि पानी केवल इस शर्त पर दूंगा कि आप बदले में मुझे अपना पूरा राज्य देने का वचन दें। बताएं ऐसे में आप क्या करेंगे?”
राजा ने कहा, “महात्मा जी! प्राण हैं तो सब कुछ है। मैं जान बचाने के लिए राज्य भी दे डालूंगा। पानी पीकर बच तो सकूंगा। ऐसे में निर्धन, कंगाल रहकर भी जीने में कोई बुराई नहीं।”
इसके बाद संत ने कहा, “राजन इसीलिए मैं चाहूंगा कि तुम अपने विस्तृत राज्य तथा अपार सम्पत्ति पर अहंकार करना छोड़ दो।” यह सुनते ही राजा को अपनी गलती का एहसास हो गया।