Inspirational Context: घर से दूर रहकर सीखी गई जिंदगी की वो अहम बातें, जो आपको बदल देंगी

Edited By Updated: 21 Sep, 2025 07:01 AM

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Inspirational Context: पढ़ाई व कमाई मानव जीवन के आधार हैं। पहले पढ़ाई और उसके बाद कमाई किसी भी व्यक्ति के जीवन को स्थिरता प्रदान करने वाले दो प्रमुख स्तम्भ माने जाते हैं लेकिन इसी पढ़ाई व कमाई की कहानी कुछ इस कदर अनोखी है कि कई बार ये युवाओं को अपने...

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Inspirational Context: पढ़ाई व कमाई मानव जीवन के आधार हैं। पहले पढ़ाई और उसके बाद कमाई किसी भी व्यक्ति के जीवन को स्थिरता प्रदान करने वाले दो प्रमुख स्तम्भ माने जाते हैं लेकिन इसी पढ़ाई व कमाई की कहानी कुछ इस कदर अनोखी है कि कई बार ये युवाओं को अपने साथ घर-गांव से दूर ले जाती है। जाते समय युवा पीछे केवल अपना शहर या गांव नहीं छोड़ता बल्कि छोड़ता है घर, परिवार, मित्र और वे यादें, जिनकी वर्तमान जीवन से तुलना करता रहता है कि अभी मैं घर में होता तो यह कर रहा होता, वह कर रहा होता, इसके या उसके साथ होता।

खैर, परिस्थितियों में परिवर्तन स्वाभाविक है और वैसे भी परिवर्तन तो प्रकृति का नियम है। इसे हंसते-रोते जैसे भी हो, समय आने पर स्वीकार करना ही पड़ता है। जब दूसरे शहर जाता है तो पहले तो वहां अजनबी होता है मगर धीरे-धीरे एक करियाने की दुकान वाला अंकल, ढाबे वाला चाचा, कपड़े वाला, सब्जी वाला, सैलून वाला भाई और साथ में दो-चार स्थानीय प्रतिदिन नमस्ते करने और स्वीकारने वाले मित्र बन जाते हैं।

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वह एक दुकान जहां अक्सर खाली समय होने पर गप्पें मारने बैठना हुआ करता है, सब कुछ अपना-सा लगने लगता है। त्यौहार-मेले सब यहीं मनाए जाने लगते हैं, घर से दूर, मगर घर की यादों से भरपूर। इन सबसे परे एक मित्र मंडली, जो उस नई जगह किसी परिवार से कम थोड़े ही है। घर से फोन करके सब त्योहारों पर बुलाते हैं मगर आने-जाने का खर्चा और कम अवकाश जाने की अनुमति नहीं देता। ऐसे में उसी स्थान पर त्यौहार भी मनाने पड़ते हैं। घर वालों से दूर एक नए परिवार के बीच। फिर कभी याद आती है, उन दोस्तों की भी, जिनके साथ शाम को किसी निश्चित जगह मिलकर हंसी के ठहाके व गप्पें लड़ाई जाती थीं। वह चौबारा यादों में बार-बार याद आता है मगर अपनी इच्छा से घर से दूर कोई कब ही जाता है, ले जाती है पढ़ाई और कमाई।

अपनों से मुलाकातें सीमित हो जाती हैं। अपने यानी पारिवारिक संबंधी मिलते हैं फिर कभी-कभार किसी पारिवारिक समारोह में- ‘तुम तो गायब ही हो गए हो, कहां रहते हो आजकल’ - जैसे वाक्यों के साथ।

कभी मजबूरन लौटना भी पड़ता है माता-पिता की बीमारी में सहारा बनने को। घर से दूर जब खाना बनाने लगते हैं तो घर की रसोई व मां के हाथों के खाने की याद आती है, भोजन करने बैठते हैं तो घर वालों की कमी-सी महसूस होती है, मगर क्या करें, पढ़ाई व कमाई इतनी आसान तो है नहीं। भले इस राह में चुनौतियां तो अनेक हैं, मगर आत्मनिर्भरता व निर्णय क्षमता व स्वायत्तता से भरपूर जिम्मेदारी तक पहुंचने का रास्ता यहीं से होकर गुजरता है- जहां सीखा जाता है कम पैसों में भी गुजारा करना और पैसे बचा-बचा कर जरूरतें पूरी करना।

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घर में हर चीज मांगने व तुरंत हाथ पर मिलने वाले युवा कमरे में समय के प्रबंधन को लेकर चिंतित दिखते हैं, जहां पढ़ाई, काम और निजी जीवन के बीच संतुलन बनाना कई बार मुश्किल-सा होने लगता है और पैसों की कोई चिंता न करने वाले अब आर्थिक दबाव को भी महसूस करने लगते हैं, जब किराया, खाने-पीने और अन्य खर्चों को पूरा करना चुनौतीपूर्ण होने की संभावना नजदीक आने लगती है। लेकिन कुछ भी हो, चुनौतियां जैसी भी हों, जो सकारात्मक भाव से रहने लग जाते हैं, वे परिस्थितियों के अनुरूप ढल जाते हैं और कुछ पकड़ लेते हैं कुछ दिनों, हफ्तों या महीनों के बाद घर गांव जाने वाली पहली बस। नए अनुभवों की सीख बढ़ाता आत्मविश्वास, नए लोगों से  मिला स्नेह, जीवन-अनुभव, नया कौशल व नव ज्ञान जीवनपर्यंत उस युवा का साथी बन जाता है जो उसे पढ़ाई व कमाई की यात्रा में प्राप्त हुआ होता है।  हर परिस्थिति का सामना करने का जुनून उस युवा में भर देता है जोश का ऐसा जुनून कि वह युवा जीवन की हर परिस्थिति से निपटने के लिए तैयार हो जाता है क्योंकि कच्ची मिट्टी का आकार लेता घड़ा अब पक कर मजबूत हो चुका होता है।  

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