Edited By Prachi Sharma,Updated: 01 Oct, 2025 07:00 AM

एक लालची व्यक्ति के पास जैसे-जैसे धन आता गया तैसे-तैसे उसका लोभ बढ़ता गया। उसे सभी प्रकार की सुख-सुविधाएं उपलब्ध थीं। धन के बल पर वह प्रत्येक वस्तु प्राप्त कर सकता था। लेकिन उसके जीवन में एक चीज का अभाव था- उसका कोई पुत्र नहीं था। उसकी युवावस्था...
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Inspirational Context: एक लालची व्यक्ति के पास जैसे-जैसे धन आता गया तैसे-तैसे उसका लोभ बढ़ता गया। उसे सभी प्रकार की सुख-सुविधाएं उपलब्ध थीं। धन के बल पर वह प्रत्येक वस्तु प्राप्त कर सकता था। लेकिन उसके जीवन में एक चीज का अभाव था- उसका कोई पुत्र नहीं था। उसकी युवावस्था बीतने लगी, परंतु धन- संपत्ति के प्रति उसकी चाहत में कोई अंतर नहीं आया।
एक रात बिस्तर पर लेटे-लेटे उसने देखा कि सामने कोई अस्पष्ट आकृति खड़ी है।
उसने घबराकर पूछा, “कौन ?” उत्तर मिला, “मृत्यु”। फिर वह आकृति गायब हो गई। उस दिन से जब भी वह एकांत में होता, आकृति उसके सामने आ जाती। उसका सारा सुख मिट्टी हो गया। कुछ ही दिनों में वह बीमार पड़ गया। वह वैद्य के पास गया, लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ। दवा की, पर रोग घटने की बजाय बढ़ता गया। लोगों ने उसकी दशा देखकर कहा, “नगर के उत्तरी छोर पर एक महात्मा रहते हैं। वह सभी प्रकार की व्याधियों को दूर कर देते हैं।”
उस आदमी ने महात्मा के पास पहुंचकर रोते हुए कहा, “आप मेरा कष्ट दूर करें। मौत मेरा पीछा नहीं छोड़ रही है”।

महात्मा ने कहा, “भले आदमी मोह और मृत्यु परम मित्र हैं। जब तक तुम्हारे पास मोह है तब तक मृत्यु आती रहेगी। मृत्यु से तभी छुटकारा मिलेगा जब तुम लोभ व मोह के बंधन से मुक्त हो जाओगे।” आदमी ने कहा-“महाराज मैं क्या करूं, मोह छूटता ही नहीं।”
महात्मा बोले- “कल से तुम एक हाथ से लो और दूसरे हाथ से दो। मुट्ठी मत बांधो, हाथ को खुला रखो। तुम्हारा रोग दूर हो जाएगा।” महात्मा की बात मानकर उस आदमी ने नए जीवन का आरंभ किया। रोग तो दूर हुआ ही, उसे अच्छा भी लगने लगा।
