Edited By Jyoti,Updated: 16 Jan, 2020 04:03 PM
17 जनवरी, 2020 को 2020 को पहली काल भैरव अष्टमी मनाई जाएगी। बता दें बाबा भैरव को समर्पित ये तिथि प्रत्येक माह में पड़ती है। जिस दौरान हर कोई इन्हें प्रसन्न करने में लगा रहता है।
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
17 जनवरी, 2020 को 2020 को पहली काल भैरव अष्टमी मनाई जाएगी। बता दें बाबा भैरव को समर्पित ये तिथि प्रत्येक माह में पड़ती है। जिस दौरान हर कोई इन्हें प्रसन्न करने में लगा रहता है। क्योंकि इन्हें लेकर मान्यता है कि इनकी पूजा से जातक को किसी भी तरह का भय नहीं सताता। साथ ही साथ इनकी आराधना करने से कई तरह के और भी लाभ प्राप्त होते हैं। शास्त्रों में इनके नाम का अर्थ भय को हरण करने वाला तथा जगत का हरण करने वाला बताया गया है। इसके अलावा इनके नाम भैरव के तीनों अक्षरों में हिंदू धर्म के त्रिदेव यानि ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश की शक्ति के समाहित होने की बात भी कही गई है।
यहां जानें इनसे जुड़ी अन्य जानकारी-
काशी के बाबा विश्वनाथ के कोतवाल कहलाने वाले काल भैरव बाबा का आविर्भाव यानि जन्म मार्गशीर्ष की कृष्ण अष्टमी के प्रदोष काल अर्थात संध्याकाल में हुआ था। पुराणों में उल्लेख है कि इनकी उत्पत्ति शिव के रूधिर से हुई थी। जिसके बाद में उक्त दो भाग हो गए- बटुक भैरव तथा काल भैरव। यही कारण इन दोनों को शिव जी का अंश माना जाता है। बता दें भगवान भैरव को असितांग, रुद्र, चंड, क्रोध, उन्मत्त, कपाली, भीषण और संहार नाम से जाना जाता है। कुछ मान्यताओं के अनुसार भैरवनाथ को भगवान शिव के पांचवें अवतार तथा रुद्रावतार कहा जाता है। नाथ सम्प्रदाय में इनका पूजा का विशेष महत्व है।
इनकी आराधना का सबसे आसान मंत्र है- ।।ॐ भैरवाय नम:।।
शास्त्रों में इनके आठ रूप उल्लेखित हैं-
असितांग भैरव
चंड भैरव
रूरू भैरव
क्रोध भैरव
उन्मत्त भैरव
कपाल भैरव
भीषण भैरव
संहार भैरव।
आप में से कुछ लोगों ने देखा होगा कि कुछ लोग सड़क के किनारे भैरू महाराज के नाम से ज्यादातर जो ओटले या स्थान बनाए हुए हैं, दरअसल वे उन मृत आत्माओं के स्थान हैं जिनकी मृत्यु उक्त स्थान पर दुर्घटना या अन्य कारणों से हो गई है। आपकी जानकारी के लिए बता दें ऐसे किसी स्थान का भगवान भैरव से कोई संबंध नहीं। इसलिए उक्त स्थान पर मत्था टेकना मान्य नहीं।