कैसे कश्यप से बना कश्मीर

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 29 May, 2018 05:16 PM

kashmir heaven on earth

कश्मीर का जिक्र आते ही विश्व प्रसिद्ध उक्ति- ‘अगर पृथ्वी पर कहीं स्वर्ग है तो यहीं है’ यहीं है’ का स्मरण बरबस ही हो जाता है। कश्मीरी सेब, अखरोट हो या कश्मीरी केसर सभी कुछ लाजवाब है। क्रिकेट के बल्ले के लिए ‘विली’ की लकड़ी हो या पश्मीना शाल सभी के...

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कश्मीर का जिक्र आते ही विश्व प्रसिद्ध उक्ति- ‘अगर पृथ्वी पर कहीं स्वर्ग है तो 'यहीं है’ का स्मरण बरबस ही हो जाता है। कश्मीरी सेब, अखरोट हो या कश्मीरी केसर सभी कुछ लाजवाब है। क्रिकेट के बल्ले के लिए ‘विली’ की लकड़ी हो या पश्मीना शाल सभी के लिए कश्मीर विख्यात है।

पर्यटन की दृष्टि से कश्मीर की वादी में श्रीनगर का सबसे महत्वपूर्ण स्थल है। इसे मंदिरों, मस्जिदों एवं खूबसूरत पार्कों के लिए भी जाना जाता है। स्वच्छ झील और ऊंचे पर्वतों के बीच बसे श्रीनगर की अर्थव्यवस्था का आधार मुख्यत: पर्यटन है। झेलम नदी के दोनों ओर बसे श्रीनगर को जोड़ने के लिए सात पुल बने हैं। 
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इतिहास: राजतरंगिणी और नीलम पुराण नामक पौराणिक ग्रंथों के अनुसार कश्मीर की घाटी कभी बहुत बड़ी झील हुआ करती थी। एक कथा के अनुसार, कश्यप ऋषि ने यहां से पानी निकालकर इसे मनोरम प्राकृतिक स्थल में बदल दिया तथा कश्मीर घाटी अस्तित्व में आई। ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में सम्राट अशोक ने कश्मीर में बौद्ध धर्म का प्रसार किया तथा बाद में कनिष्क ने इसे और सुदृढ़ किया। छठी शताब्दी में कश्मीर पर हूणों का अधिकार हुआ परंतु 530 में घाटी पुन: स्वतंत्र हो गई और उज्जैन साम्राज्य का इस पर नियंत्रण हो गया। 

विक्रमादित्य राजवंश के पतन के पश्चात कश्मीर में स्थानीय शासकों का शासन हुआ तथा वहां हिंदू एवं बौद्ध संस्कृतियों का मिश्रित रूप विकसित हुआ। कश्मीर के हिंदू राजाओं में ललितादित्य (697-788 ई.) ने अनेक भव्य भवनों का निर्माण किया। 

कश्मीर पर इस्लाम का आगमन 13वीं एवं 14वीं शताब्दी में हुआ। मुस्लिम शासक जैन-उल-आबदीन (1420-27) ने तातरों के हमले के बाद हिंदू राजा सिंहदेव के भागने पर ताज संभाला। बाद में चक्र शासकों ने जैन उल आबदीन के पुत्र हैदरशाह को खदेड़कर सन् 1586 तक कश्मीर पर राज किया। सन 1586 ई. में अकबर ने कश्मीर को जीत लिया। सन् 1752 में कश्मीर पर तत्कालीन मुगल शासक की हार से अफगानिस्तान के शासक अहमद शाह अब्दाली ने कब्जा किया। 67 वर्षों तक पठानों ने कश्मीर घाटी पर शासन किया। 1819 ई. में पंजाब केसरी रणजीत सिंह ने कश्मीर को काबुल के अमीर दोस्त मुहम्मद से छीन लिया परंतु जल्द ही कश्मीर अंग्रेजों के हाथों में आ गया। 1846 ई. में ईस्ट इंडिया कंपनी ने कश्मीर को डोगरा सरदार गुलाब सिंह के हाथों बेच दिया जिनका 1947 तक वहां शासन रहा।
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पहलगाम
पहलगाम कश्मीर घाटी के सबसे खूबसूरत पहाड़ी पर्यटक स्थलों में से एक है। समुद्र तल से 2130 मीटर की ऊंचाई पर स्थित पहलगाम लिद्दर नदी एवं शेषनाग झील के मुहाने पर बसा है। यह अनंतनाग जिले में चारों ओर बर्फ से ढकी चोटियों, चमकते ग्लेशियर एवं छलछल करती नदी के बीच बसा है। 

श्रीनगर से पंपोर होते हुए यहां रेशम कीट पालन सैंटर है। इसके आगे अवन्तीपुर स्थान आता है, जिसे राजा अवन्तीवर्मन ने बसाया था तथा इसे कश्मीर की पुरानी राजधानी भी कहा जाता है। यहां अब विष्णु एवं सूर्य मंदिरों के कुछ अवशेष ही बचे हैं। इसके आगे ‘लाथपौर’ नामक स्थान  है और यहां केसर की खेती की जाती है। हमारे ड्राइवर ने बताया कि 50000 पुष्पों से 1 किलो केसर तैयार होती है। मुख्त्यार ड्राइवर ने बताया कि पूर्ण खेती हाथों से की जाती है तथा ट्रैक्टर आदि का प्रयोग नहीं होता। खेती के दौरान पूरा क्षेत्र सुगंध एवं केसर के पुष्पों से दमक उठता है। कहा जाता है कि एक फूल से 3 केसर की पत्ती आती है। इस पूरे क्षेत्र में किसी भी प्रकार का नवीन निर्माण कार्य वर्जित है। गुलपोश का कश्मीरी में अर्थ है- गुलाब का फूल तथा इसी प्रकार कोंग पोश का अर्थ है- केसर का फूल।  इस क्षेत्र में अनेक दुकानें हैं। जहां केसर एवं अखरोट-बादाम खरीदा जा सकता है। यहीं पर केसर के कहवे की चाय का आनंद भी लिया जा सकता है। इस कहवे की चाय के पाऊडर में बादाम को पीसकर डालते हैं तथा दूध नहीं मिलाते हैं।

लाथपौर से आगे ट्राल गांव से होते हुए पहलगाम का रास्ता दो तरफ से है। एक रास्ता ‘एपल सिटी’ से है जबकि दूसरा अनंतनाग शहर से होते हुए है। एपल सिटी में पूरे क्षेत्र में सेब के बगीचे देखे जा सकते हैं। पहलगाम में खच्चरों द्वारा पहाड़ी पर्यटन स्थलों को एवं गाड़ी द्वारा चंदनबाड़ी एवं वैतरणी झील की सैर की जा सकती है। पहलगाम के प्रमुख दर्शनीय स्थल इस प्रकार हैं-
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ममलेश्वर
पहलगाम से 1 कि.मी. की दूरी पर ममल गांव स्थित है। यहां लिद्दर नदी के दूसरी तरफ ममलेश्वर नामक शिव का एक छोटा मंदिर है। इस मंदिर का संबंध 12वीं शताब्दी के राजा जयसीमा के काल से है तथा यह कश्मीर के सबसे प्राचीन मंदिरों में एक है।

बैसारन
भारत का स्विट्जरलैंड कहलाने वाला 150 मीटर ऊंचा यह घास का मैदान पहलगाम से लगभग 5 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। खच्चरों पर ऊबड़-खाबड़ रास्तों एवं सीधी पहाड़ी के दुर्गम स्थलों के बीच होते हुए इस स्थान पर पहुंचते ही मन प्रफुल्लित हो उठता है। बैसारन पाइन/चीड़ के वनों एवं बर्फ से आच्छादित चोटियों से घिरा हुआ खूबसूरत स्थल है।

तुलियन झील 
यह झील बैसारन से 11 कि.मी. की दूरी पर है। वर्ष के अधिकांश समय बर्फ से ढकी चोटियों से घिरी यह खूबसूरत झील 3153 मीटर की ऊंचाई पर है। यहां का प्राकृतिक परिवेश अत्यंत मनोरम है।
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ओवेरा वन्यजीव अभयारण्य
पहलगाम के निकट स्थित यह अभयारण्य 32.27 वर्ग कि.मी. में फैला है। यहां अनेक दुर्लभ एवं लुप्तप्राय: पक्षी एवं स्तनधारी कुल की प्रजातियां देखी जा सकती हैं।

अरु
चहचहाते पक्षियों की आवाजें, सरसराती ठंडी हवाओं एवं नीले आकाश के बीच समुद्रतल से 2408 मीटर की ऊंचाई पर स्थित अरू, लिद्दर नदी के किनारे बसा है। शहरी जीवन से दूर यह शांत एवं मनोरम प्राकृतिक स्थल है।

अच्छाबल
यह छोटा-सा कस्बा मुगल गार्डन के लिए प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि इसे नूरजहां ने बनवाना शुरू किया था परंतु संपूर्ण शाहजहां की पुत्री जहांआरा ने 1640 में करवाया था। इसे कश्मीर के सबसे अच्छे डिजाइन किए गए बगीचों में शुमार किया जाता है। एक झरने की तीन नहरों से इस बगीचे को पानी मिलता है तथा मुख्य नहर में आकर्षक फव्वारे हैं। 

चंदनवाड़ी
पहलगाम से 16 कि.मी. दूर स्थित चंदनवाड़ी, अमरनाथ यात्रा का प्रारंभिक स्थान है। यहां से 11 कि.मी. की दूरी पर शेषनाग की पर्वतीय झील तथा 13 कि.मी. दूर अमरनाथ यात्रा का अंतिम पड़ाव पंचतरणी है। पंचतरणी से 6 कि.मी. दूरी पर अमरनाथ गुफा है।

हजन
चंदनवाड़ी मार्ग पर स्थित हजन खूबसूरत पिकनिक स्थल है। यहां जाने के लिए जम्मू/ऊधमपुर तक रेल से आकर श्रीनगर होते हुए सड़क मार्ग से तथा श्रीनगर हवाई अड्डे से पहुंचा जा सकता है। 
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