Kokila Vrat: साथी से बेपनाह प्रेम की इच्छा रखने वाली महिलाएं पढ़ें, कोकिला व्रत कथा

Edited By Updated: 09 Jul, 2025 02:00 PM

kokila vrat

Kokila Vrat 2025: 10 जुलाई, 2025 गुरुवार को कोकिला व्रत है। यह पवित्र और विशेष व्रत है, जो विशेष रूप से आषाढ़ मास की पूर्णिमा के दिन किया जाता है। जो जुलाई के आसपास आती है। यह व्रत कुंवारी और विवाहित स्त्रियों द्वारा किया जाता है और इसका संबंध सती...

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Kokila Vrat 2025: 10 जुलाई, 2025 गुरुवार को कोकिला व्रत है। यह पवित्र और विशेष व्रत है, जो विशेष रूप से आषाढ़ मास की पूर्णिमा के दिन किया जाता है। जो जुलाई के आसपास आती है। यह व्रत कुंवारी और विवाहित स्त्रियों द्वारा किया जाता है और इसका संबंध सती अनसूया, देवी सावित्री और श्रद्धा-भक्ति के प्रतीक कोकिल (कोयल) से जुड़ा है। यह व्रत पति की दीर्घायु, गृहस्थ सुख और पुण्य लाभ के लिए किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को करने से पारिवारिक जीवन में सुख-शांति आती है और पापों का नाश होता है। स्त्रियां इस दिन कोकिल स्वरूप देवी से अपने वैवाहिक जीवन में मधुरता और स्थिरता की कामना करती हैं।

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Do Kokila Vrat with this method इस विधि से करें कोकिला व्रत
स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
व्रत का संकल्प लें– मैं कोकिला व्रत का पालन कर रही हूं, अपने पापों के नाश और पति की दीर्घायु के लिए।
कोयल (कोकिला) की प्रतिमा या चित्र बनाकर पूजा करें।
धूप, दीप, अक्षत, पुष्प, रोली, चावल से पूजा करें।
कोकिला व्रत कथा का श्रवण करें या पढ़ें।
दिन भर उपवास करें और संध्या समय चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत पूर्ण करें।

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Follow these food rules during Kokila Vrat कोकिला व्रत में करें इन भोजन नियमों का पालन
अधिकतर स्त्रियां इस दिन निर्जल उपवास रखती हैं या केवल फलाहार करती हैं। कुछ लोग व्रत कथा पढ़ने के बाद सात्विक भोजन करते हैं।

Kokila Vrat katha कोकिला व्रत कथा: कोकिला पक्षी के रूप में देवी पार्वती की कथा इस व्रत से जुड़ी है। एक दंतकथा के अनुसार इस व्रत की शुरुआत माता पार्वती ने की थी और उन्होंने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए यह व्रत रखा था। ऐसी मान्यता भी है कि मां पार्वती अपने जन्म को लेने से पहले करीब 10 हजार सालों तक कोयल बनकर नंदन वन में भटकती रही थी और इस दौरान उन्होंने वन में ही शिव की आराधना की थी। जिसके बाद उनका जन्म पर्वतराज हिमालय के घर हुआ।

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एक पौराणिक कथा के अनुसार राजा दक्ष के घर में पार्वती का सती रूप में जन्म हुआ था और जब उसकी शादी की बात आई तो राजा दक्ष की इच्छा के विपरीत पार्वती ने भगवान शिव को अपने पति के रूप में चुना। राजा दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया जिसमें पार्वती और शिव दोनों को ही आमंत्रित नहीं किया गया। पार्वती को इस यज्ञ की जानकारी हुई तो उन्होंने भगवान शिव से इस यज्ञ में उन्हें जाने की अनुमति देने का हठ किया। शिव ऐसा नहीं चाहते थे लेकिन पार्वती के हठ के दृष्टिगत उन्होंने उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी। कहा जाता है पार्वती जब यज्ञ स्थल पर पहुंची तो वहां उनका कोई उचित मान सम्मान नहीं किया गया। यही नहीं , भगवान शिव के प्रति वहां बोले गए अपमानजनक शब्दों से वह अत्यंत कुंठित हुई और यज्ञ की वेदी में ही अपनी आहुति दे दी। 

कहा जाता है कि जब भगवान माता सती के सतीत्व का पता चला तो उन्होंने गुस्से में आकर उसे यह श्रॉप दे दिया कि मेरी इच्छाओं के विरुद्ध अपनी आहुति देने के लिए आपको 10 हजार साल तक कोयल बनकर वन में भटकना होगा। उन्होंने वन में भटकते हुए भगवान शिव की आराधना की। शिव के प्रसन्न होने पर वह श्राप मुक्त हुई। जिसके बाद उनका जन्म पर्वतराज हिमालय के घर हुआ। फिर शिव के साथ उनका विवाह हुआ। 

इसी कथा के आधार पर आज भी महिलाएं अपने पति की दीर्घायु और मनचाहा पति पाने के लिए कोकिला व्रत रखती हैं। इस दौरान कई वन औषधियों को पानी में मिलाकर स्नान करने का विधान है। प्रत्येक दिन स्नान के बाद महिलाओं द्वारा कोयल की पूजा की जाती है।

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