Edited By Shubham Anand,Updated: 24 Dec, 2025 07:55 PM

केंद्र सरकार ने अरावली पर्वत श्रृंखला को लेकर बड़ा फैसला लिया है। सरकार ने साफ किया है कि अब अरावली क्षेत्र में किसी भी तरह की नई माइनिंग लीज नहीं दी जाएगी, यानी खनन पूरी तरह प्रतिबंधित रहेगा। साथ ही अरावली के संरक्षित क्षेत्र का विस्तार किया जाएगा।...
नेशनल डेस्क : केंद्र सरकार ने अरावली पहाड़ियों के संरक्षण को लेकर एक बड़ा और निर्णायक कदम उठाया है। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) ने अरावली क्षेत्र से जुड़े सभी राज्यों को स्पष्ट निर्देश जारी किए हैं कि अब इस पूरे क्षेत्र में कोई भी नई खनन लीज जारी नहीं की जाएगी। यह रोक गुजरात से लेकर दिल्ली तक फैली पूरी अरावली पर्वत श्रृंखला पर एकसमान रूप से लागू होगी।
सरकार का उद्देश्य अरावली में अवैध और बिना नियंत्रण वाले खनन को पूरी तरह समाप्त करना और इस प्राचीन पर्वत श्रृंखला को एक सतत और अखंड भू-आकृति के रूप में संरक्षित करना है। केंद्र सरकार ने साफ किया है कि अरावली के दीर्घकालिक संरक्षण के लिए वह पूरी तरह प्रतिबद्ध है।
पर्यावरण संतुलन में अरावली की अहम भूमिका
अरावली पहाड़ियां दिल्ली-एनसीआर और आसपास के इलाकों में वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने, रेगिस्तान के फैलाव को रोकने, भूजल स्तर को रिचार्ज करने और जैव विविधता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, अगर अरावली को नुकसान पहुंचता है तो इसका सीधा असर पूरे उत्तर भारत के पर्यावरण पर पड़ सकता है। इसी को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने इनके संरक्षण को प्राथमिकता दी है।
नई खदानों पर पूरी तरह रोक
सरकार के फैसले के तहत अरावली क्षेत्र में किसी भी प्रकार की नई खनन लीज नहीं दी जाएगी। यह निर्णय क्षेत्र में अवैध खनन की बढ़ती गतिविधियों और उससे हो रहे पर्यावरणीय नुकसान को देखते हुए लिया गया है। इस कदम से अरावली की प्राकृतिक संरचना सुरक्षित रहेगी और पर्यावरण को होने वाले नुकसान पर लगाम लगेगी।
संरक्षित क्षेत्र का होगा विस्तार
केंद्र सरकार ने इंडियन काउंसिल ऑफ फॉरेस्ट्री रिसर्च एंड एजुकेशन (ICFRE) को निर्देश दिए हैं कि वह पूरे अरावली क्षेत्र में ऐसे अतिरिक्त इलाकों की पहचान करे, जहां खनन पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाया जा सके। यह प्रक्रिया पहले से प्रतिबंधित क्षेत्रों के अलावा होगी और इसमें पारिस्थितिकी, भू-विज्ञान और परिदृश्य जैसे पहलुओं को ध्यान में रखा जाएगा।
ICFRE को पूरे अरावली क्षेत्र के लिए एक वैज्ञानिक और व्यापक सस्टेनेबल माइनिंग मैनेजमेंट प्लान (MPSM) भी तैयार करना होगा। इस प्लान में पर्यावरण पर पड़ने वाले कुल प्रभाव का आकलन, संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान, बहाली के उपाय और खनन की वहन क्षमता का अध्ययन शामिल होगा। प्लान तैयार होने के बाद इसे सार्वजनिक किया जाएगा, ताकि सभी संबंधित पक्ष अपने सुझाव दे सकें।
सरकार का मानना है कि इस प्रक्रिया से अरावली में संरक्षित क्षेत्रों का दायरा और बढ़ेगा, जिससे स्थानीय भू-आकृति, पारिस्थितिकी और जैव विविधता को बेहतर तरीके से संरक्षित किया जा सकेगा।
चल रही खदानों पर रहेगी सख्त निगरानी
जो खदानें पहले से संचालित हो रही हैं, उनके लिए राज्य सरकारों को सख्त निर्देश दिए गए हैं कि वे सभी पर्यावरणीय नियमों का कड़ाई से पालन सुनिश्चित करें। सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के अनुरूप चल रही खनन गतिविधियों पर अतिरिक्त प्रतिबंध लगाए जाएंगे। सस्टेनेबल माइनिंग से जुड़े सभी दिशा-निर्देशों का पालन अनिवार्य होगा, ताकि पर्यावरण को किसी भी तरह का नुकसान न पहुंचे।
केंद्र सरकार का कहना है कि अरावली का संरक्षण रेगिस्तान के फैलाव को रोकने, जैव विविधता को बचाने, भूजल स्तर बनाए रखने और पूरे क्षेत्र को आवश्यक पर्यावरणीय सेवाएं प्रदान करने के लिए बेहद जरूरी है। यह फैसला लंबे समय से चल रहे अरावली संरक्षण से जुड़े विवाद में एक अहम मोड़ माना जा रहा है और आने वाले समय में पहाड़ियों की बेहतर और प्रभावी सुरक्षा सुनिश्चित करेगा।