Makar Sankranti 2020: कम ही लोग जानते हैं ग्रहों से जुड़ी ये खास जानकारी

Edited By Updated: 14 Jan, 2020 07:28 AM

makar sankranti 2020

हिंदू धर्म संस्कृति में वर्ष का आरंभ ही होता है मकर संक्रांति जैसे बड़े पर्व से जिसके केंद्र में है सूर्य की आराधना। इस दिन दान और स्नान का भी विशेष महत्व है। आराध्य देव सूर्यकाल भेद से अनेक रूप धारण करते हैं।

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हिंदू धर्म संस्कृति में वर्ष का आरंभ ही होता है मकर संक्रांति जैसे बड़े पर्व से जिसके केंद्र में है सूर्य की आराधना। इस दिन दान और स्नान का भी विशेष महत्व है। आराध्य देव सूर्यकाल भेद से अनेक रूप धारण करते हैं। वे ही मार्गशीर्ष (अगहन) में मित्र, पौष में सनातन विष्णु, माघ में वरुण, फाल्गुन में सूर्य, चैत्र मास में भानु, बैशाख में तापन, ज्येष्ठ में इंद्र, आषाढ़  में रवि, श्रावण में गरस्ति, भाद्रपद में यम, आश्विन में हिरण्यरेता और कार्तिक में दिवाकर के रूप में तपते हैं।

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इस भांति बारह महीनों में भगवान सूर्य बारह नामों से संबोधित किए जाते हैं। बारह स्वरूप धारण कर आराध्य देव सूर्य बारह मासों में बारह राशियों मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ और मीन का संक्रमण करते हैं। उनके संक्रमण से ही संक्रांति होती है। संक्रांति को सूर्य की गति का प्रतीक तथा सामर्थ्य माना गया है। सूर्य का सामर्थ्य सात देवी मंदा, मंदाकिनी, ध्वांक्षी, घोरा, मंदोदरी, राक्षसी और मिश्रा के नाम से जानी जाती है। विभिन्न राशियों में सूर्य के प्रवेश को विभिन्न नामों से जाना जाता है। 

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ज्योतिष शास्त्र के अनुसार 12 राशियां होती हैं। धनु, मिथुन, मीन तथा कन्या राशि की संक्रांति ‘षड्शीति’ कही जाती है और वृष, वृश्चिक, कुंभ व सिंह राशि पर जो सूर्य की संक्रांति होती है, उसे ‘विष्णुपदी’ कहते हैं। जब मेष तथा तुला राशि में सूर्य जाता है तो ‘विषुवत संक्रांति’ के नाम से जाना जाता है। कर्क संक्रांति को ‘यामायन’ और मकर संक्रांति को संक्रांति कहते हैं जो जनवरी में आता है। पुराणों के अनुसार षडशीति (धनु, मिथुन, मीन और कन्या राशि की संक्रांति को षडशीति कहते हैं) संक्रांति में किए गए पुण्य कर्म का फल छियासी हजार गुना, विष्णुपदी में लाख गुना और उत्तरायण या दक्षिणायन प्रारंभ होने के दिन कोटि-कोटि गुना ज्यादा होता है। समस्त संक्रांतियों में मकर संक्रांति का विशेष महत्व है क्योंकि तब सूर्य देव उत्तरायण में होते हैं। शायद उत्तरायण की इस महत्ता के कारण ही महाभारत में कौरव-पांडव युद्ध के दौरान भीष्म पितामह घायल होकर बाणों की शैय्या पर लेटे हुए अपनी मृत्यु का इंतजार कर रहे थे। भीष्म ने मकर संक्रांति अर्थात उत्तरायण की स्थिति आने पर ही माघ शुक्ल अष्टमी को अपने प्राण त्यागे। विद्वानों ने इस काल को शुभ बताते हुए उसे देवदान कहा है। सूर्य के उत्तरायण की महत्ता को छांदोग्योपनिषद में भी कहा गया है।

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जब पौष तथा माघ में सूर्य मकर राशि में आ जाता है तब उस दिन और उस समय को संक्रांति का प्रवेश काल कहा जाता है। यही संक्रांति मकर संक्रांति के नाम से जानी जाती है। अंग्रेजी महीनों में यह प्रतिवर्ष चौदह जनवरी को ही मनाया जाता है। भारतीय ज्योतिष में मकर राशि का प्रतिरूप घडिय़ाल को माना जाता है जिसका सिर हिरण जैसा होता है लेकिन पाश्चात्य ज्योति विद मकर राशि का प्रति रूप बकरी को मानते हैं। हिंदू धर्म में मकर (घडिय़ाल) को एक पवित्र जीवन माना जाता है।

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