Edited By Sarita Thapa,Updated: 18 Aug, 2025 06:00 AM
Motivational Story: हम सभी एक ऐसी दुनिया में जी रहे हैं, जहां किसी से भी कनैक्शन करना बस एक क्लिक की दूरी पर है और उसके लिए असीमित विकल्प भी उपलब्ध हैं, फिर भी विडम्बना यह है कि वर्तमान समय में रिश्ते अक्सर समय की कसौटी पर खरे उतरने में संघर्ष करते...
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Motivational Story: हम सभी एक ऐसी दुनिया में जी रहे हैं, जहां किसी से भी कनैक्शन करना बस एक क्लिक की दूरी पर है और उसके लिए असीमित विकल्प भी उपलब्ध हैं, फिर भी विडम्बना यह है कि वर्तमान समय में रिश्ते अक्सर समय की कसौटी पर खरे उतरने में संघर्ष करते हैं। भला ऐसा क्यों? स्थायी प्रेम की हमारी गहरी इच्छा के बावजूद, हममें से कई लोग स्वयं को अल्पकालिक संबंधों के उतार-चढ़ाव में फंसा हुआ पाते हैं।
अनुभव कहता है कि आधुनिक रिश्तों की अल्पकालिकता का एक बुनियादी कारक है जीवन की गति। सरल शब्दों में कहें तो तत्काल संतुष्टि और निरंतर उत्तेजना से प्रेरित हमारे तेज-तर्रार समाज ने प्यार के प्रति हमारे दृष्टिकोण को बिल्कुल बदल दिया है क्योंकि, आज हम एक ऐसी संस्कृति का हिस्सा बन चुके हैं जहां सब कुछ एक उंगली के दबाने पर उपलब्ध है।
ऐसे में धैर्य जैसे एक दुर्लभ वस्तु बन गया है। और रिश्ते समय और प्रतिबद्धता की मांग करते हैं, जो दैनिक जीवन की हलचल में असंभव हो जाता है। और यही वजह है कि आज भावनात्मक बंधनों के पोषण के लिए बहुत कम जगह बचती है। इसका सबसे श्रेष्ठ उदाहरण है कई नवविवाहित जोड़े, जो खुद को व्यस्तता के निरंतर चक्र में फंसा हुआ पाते हैं और अपने सम्बन्ध को बनाए रखने के लिए आवश्यक समय और भावनात्मक ऊर्जा निकालने के लिए निरंतर संघर्ष करते रहते हैं।
यह एक ऐसा कटु सत्य है, जिसे कोई भी अस्वीकार नहीं करेगा। इसके अलावा, डिजिटल युग ने एक ऐसा विचित्र विरोधाभास पेश किया है, जहां एक ओर आधुनिक टैक्नोलॉजी हमें संचार की सुविधा प्रदान करती है, पर साथ-साथ वह हमारे भीतर निकटता का भ्रम भी प्रस्तुत करती है। इसका सबसे श्रेष्ठ उदाहरण है सोशल मीडिया, टैक्स्टिंग और वीडियो कॉल जैसी सुविधाएं, जो हमारे अन्दर अंतरंगता की झूठी भावना पैदा कर सकती हैं, जिससे डिजिटल कनैक्शन को वास्तविक भावनात्मक बंधन समझना आसान हो जाता है। लेकिन, वास्तव में, आमने-सामने की बातचीत की गहराई और समृद्धि अपूर्णीय है।

क्योंकि भावनाओं का लेन-देन, जो किसी व्यक्ति को सम्मुख मिलकर हो सकता है, वह किसी भी डिजीटल माध्यम से संभव नहीं है और इसलिए हमें यह महसूस करना चाहिए कि आभासी संचार अर्थात डिजिटल माध्यम से प्राप्त जो भी संचार की सुविधा है, वह दो-धारी तलवार की तरह है, क्योंकि यह गहरे, सार्थक संबंधों के विकास में बाधा बन सकती है।
आज के दौर में रिश्तों को निभाने में सबसे महत्वपूर्ण चुनौती है असुरक्षा का डर। जी हां! एक ऐसा समाज, जो स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता का जश्न मनाता है, उसमें रहने वाले अनेक लोगों को आज भावनात्मक रूप से किसी के साथ जुडऩे में बड़ी झिझक महसूस होती है। कारण? आहत होने या अस्वीकार किए जाने का डर। लोगों को आज इस बात का बड़ा डर रहता है और इसी वजह से अधिकांश लोगों ने अपने आस-पास रक्षात्मक दीवारें खड़ी कर दी हैं, जो उन्हें लंबे समय तक चलने वाले रिश्ते में पूरी तरह से निवेश करने से रोकती है।

हमारे तथाकथित आधुनिक समाज में भेद्यता को अक्सर कमजोरी समझ लिया जाता है, लेकिन वास्तव में यह प्रामाणिक संबंधों की आधारशिला है क्योंकि, अपने सच्चे स्वरूप को उजागर करने और अपने अंतरतम विचारों और भावनाओं को किसी ऐसे व्यक्ति के साथ साझा करने की इच्छा के बिना, जिसे हम वास्तव में प्यार करते हैं, रिश्ते सतही बने रहते हैं और फिर जीवन में अनिवार्य रूप से हमारे रास्ते में आने वाले तूफानों का सामना करने के लिए संघर्ष करते रहते हैं। इसके अलावा,यह भी देखा गया है की अवास्तविक उम्मीदों का बोझ अच्छे व् मजबूत रिश्तों की नींव भी कमजोर कर देता है।
इसीलिए अनुभवियों के द्वारा युवाओं को अक्सर यह सीख मिलती है कि ‘फिल्मों में दिखाए जाने वाले रिश्ते व प्रेम वास्तविक जीवन में संभव नहीं होते।’ अत: मनुष्य को चाहिए कि वह यथार्थवादी बनकर रहे, ताकि जो भी रिश्ते वह जीवन में बनाए, उसमें यथार्थता बनी रहे। यह पहेली कि ‘रिश्ते लंबे समय तक क्यों नहीं टिकते’ वास्तव में एक बहुआयामी पहेली है, जिसमें असंख्य सामाजिक, सांस्कृतिक और मनोवैज्ञानिक कारक शामिल हैं। फिर भी, असंख्य जटिलताओं और अनिश्चितताओं के बीच, एक सच्चाई स्थिर बनी हुई है - वास्तविक संबंध के स्थायी बंधन संघर्ष या अपूर्णता की अनुपस्थिति में नहीं, अपितु सहानुभूति, समझ और अटूट समर्पण की भीड़ में बनते हैं।
