Edited By Jyoti,Updated: 21 Nov, 2022 03:28 PM
एक बच्चे के सामने हीरे की अंगूठी और चाकलेट रख दो तो बच्चा अंगूठी को नहीं, चाकलेट को उठाएगा। बच्चे का पिता चाकलेट नहीं, अंगूठी को उठाएगा। भिखारी अंगूठी और चाकलेट दोनों को उठाएगा और मुनि (संत) न अंगूठी को उठाएगा और न चाकलेट को, खुद ही वहां से उठ जाएगा।
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
संत की विशेषता
एक बच्चे के सामने हीरे की अंगूठी और चाकलेट रख दो तो बच्चा अंगूठी को नहीं, चाकलेट को उठाएगा। बच्चे का पिता चाकलेट नहीं, अंगूठी को उठाएगा। भिखारी अंगूठी और चाकलेट दोनों को उठाएगा और मुनि (संत) न अंगूठी को उठाएगा और न चाकलेट को, खुद ही वहां से उठ जाएगा।
संस्कार
सबका अपना-अपना स्वभाव है। किसी को साधु बनने से सुख मिलता है तो किसी को मर्सिडीज कार में। जिसमें त्याग के संस्कार हैं, उसे त्याग में सुख मिलता है, जिसके भोग के संस्कार हैं, उसे भोग में सुख मिलता है। आदमी को मिठाई खाने में जितना सुख मिलता है उतना ही सुख शूकर को विष्ठा खाने में मिलता है।
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धर्मगुरु
भारतीय संस्कृति में धर्मगुरुओं का समाज में सर्वोच्च स्थान है। धर्मगुरु आम लोगों के लिए आदर्श है। धर्मगुरु से लोग धर्म, त्याग, न्याय, सत्य और ईमानदारी के पथ पर चलने की प्रेरणा लेते हैं। यदि धर्मगुरु अनीति और अधर्म की राह को पकड़ लेंगे तो लोगों का धर्मगुरुओं से विश्वास उठ जाएगा। धर्मगुरुओं का जीवन त्याग और सादगी का पर्याय माना जाता है, इसलिए उनका धन-दौलत से कुछ लेना-देना नहीं है। वे धन का नहीं, धर्म का आशीर्वाद देते हैं।
सच्चा दोस्त
कुदरत की व्यवस्था है कि तुम मां-बाप का चुनाव तो नहीं कर सकते, लेकिन अपने दोस्तों का चुनाव तो कर ही सकते हो। जो बुरी आदत में डाले, व्यसन सिखाए और बुरे समय में साथ छोड़ दे, वह कभी सच्चा दोस्त नहीं हो सकता। जो रक्षा करे, भली बात सिखाए और संबल दे, वही सच्चा दोस्त है, भले ही वह कड़वा बोलता हो। मैं तुम्हारी पीठ नहीं थपथपाऊंगा। मेरे पास आओगे तो ‘कोड़े’ ही बरसेंगे।