पौराणिक इतिहास से जानें, क्यों मनाई जाती है होली

Edited By ,Updated: 11 Mar, 2017 10:58 AM

mythological history of holi celebration

होलिका को वरदान था कि उसे आग जला नहीं सकती, उसने प्रह्लाद को गोद में बिठाकर आग में बैठने की

होलिका को वरदान था कि उसे आग जला नहीं सकती, उसने प्रह्लाद को गोद में बिठाकर आग में बैठने की योजना तो तैयार कर ली परंतु होली से एक दिन पहले जब होलिका दहन हुआ तो होलिका आग में जल कर भस्म हो गई और भक्त प्रह्लाद भगवान का नाम सिमरन करते हुए जीवित बच गया, तभी से हर साल होली जलाने की परम्परा है। 


बदलते मौसम के अनुसार- ऋतु चक्र के अनुसार यह त्यौहार माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी अर्थात बसंत से जुड़ा होकर फाल्गुन मास के कृष्ण प्रतिपदा से उन्माद की ओर प्रेरित करने वाला है। चैत्र मास के कृष्ण प्रतिपदा को लोग एक-दूसरे पर लाल, पीला, हरा रंग लगाकर एक-दूसरे के प्रति परस्पर प्रेम, स्नेह और वैर-विरोध मिटाने का संदेश देते हैं। वैसे भी पतझड़ में जब वृक्षों के पत्ते झडऩे के पश्चात उन पर नई-नई कोंपलें आ जाती हैं तो चारों तरफ हरियाली का सुहावना मौसम सभी को लुभाता है ऐसे में लोग एक-दूसरे पर रंग लगाकर प्रकृति के साथ खुशी सांझी करते हैं।


होली क्यों मनाई जाती है- पुराणों के अनुसार होलिका के जलने की खुशी में लोगों ने एक-दूसरे को रंग लगाकर खुशी का इजहार किया था, होली मनाने के पीछे अनेक मान्यताएं प्रसिद्ध हैं, माना जाता है कि द्वापर युग में फाल्गुन मास की पूर्णिमा को भगवान श्री कृष्ण ने बाललीला करते हुए पूतना नामक राक्षसी को मारा था। इसी कारण पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और मालवा आदि क्षेत्रों के लोग होलिका दहन पर गोबर से बने छोटे-छोटे उपलों की रस्सी में मालाएं बनाकर होलिका दहन से पूर्व उसका पूजन करके चढ़ाते हैं। एक मान्यता के अनुसार भगवान शिव ने जब अपनी अखंड समाधि लगा ली थी तो कामदेव उनकी समाधि तोडऩे के लिए वहां गया तो भगवान शिव ने अपने तीसरे नेत्र से उसे भस्म कर दिया था। 


कैसे खेलते हैं होली- पहले तो लोग टेसू के फूलों के पीले पानी, गुलाल, अबीर उड़ा कर एक-दूसरे पर मलकर तथा परस्पर वैर-विरोध मिटाकर होली खेलते थे। महिलाएं, पुरुष और बच्चे अपनी-अपनी टोलियां बनाकर अपने मित्रों और सगे-सम्बंधियों के घरों में जाकर होली खेलने की परम्परा काफी पुरानी है। बच्चे पिचकारियों और गुब्बारों में रंग भरकर एक-दूसरे पर फैंकते हैं। मंदिरों में रंग-बिरंगे पीले लाल फूलों की पत्तियों से होली खेलने की भी परम्परा चल रही है। परंतु आजकल होली का स्वरूप बदल गया है। शरारती लोग होली पर अंडे, मिट्टी और कीचड़, पेंट, ग्रीस आदि गलत चीजों का प्रयोग करके त्यौहार का महत्व कम करते हैं, जो अनुचित है।


—वीना जोशी, जालंधर 
veenajoshi23@gmail.com  

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