Nath Nagri Bareilly: बरेली की यात्रा, जहां हर मोड़ पर भगवान एक नए रूप में मिलते हैं

Edited By Updated: 31 Jul, 2025 10:22 AM

nath nagri bareilly

Nath Nagri Bareilly: आज कुछ अलग ही था। दफ्तर में काम करते हुए जैसे ही थोड़ी सी राहत मिली, मन कहीं और जाने लगा। एक खामोश सी आवाज़ भीतर से उठी —“क्या मैंने Nath Nagri के सभी नाथ मंदिरों के दर्शन किए हैं ?”

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Nath Nagri Bareilly: आज कुछ अलग ही था। दफ्तर में काम करते हुए जैसे ही थोड़ी सी राहत मिली, मन कहीं और जाने लगा। एक खामोश सी आवाज़ भीतर से उठी —“क्या मैंने Nath Nagri के सभी नाथ मंदिरों के दर्शन किए हैं ?”

Bareilly… जिसे लोग नाथों की नगरी कहते हैं, जहां सात पवित्र नाथ मंदिर हैं। मैंने तो कई बार यहां-वहां दर्शन किए थे लेकिन क्या हर रूप में, हर भाव में अपने भगवान से मिल पाई हूं ?

यह सवाल नहीं था, एक बुलावा था।

बिना कोई योजना, बिना किसी तय रास्ते- मैं चल पड़ी। मंदिर दर मंदिर, जैसे वो खुद एक-एक रूप में मुझे बुला रहे हों। हर मंदिर एक अलग ऊर्जा, एक अलग अनुभूति। कहीं मौन में बात हो रही थी, कहीं आशीर्वाद नज़र से उतर रहा था, कहीं सिर्फ़ उपस्थिति ही काफी थी। मैं मांगने नहीं गई थी। मैं तो बस देखना चाहती थी कि वो मुझे कैसे देखते हैं।

और जैसे-जैसे आगे बढ़ती गई, एक बात साफ होती गई- वो हर बार किसी नए रूप में सामने आते हैं, पर हर बार मैं खुद से ही मिलती हूं।

जब सातों मंदिरों की यात्रा पूरी हुई, हाथ में एक गुलाबी कमल था। उसे देखते ही मुझे एक पंक्ति याद आ गई-

फूल की सबसे सुंदर गति यही है,
कि वह भगवान के चरणों में अर्पित हो जाए।
ना किसी के शृंगार में, ना अभिमान में-
केवल भक्ति और समर्पण में।”

और जब वो कमल भगवान के चरणों में रखा-
मन ने कहा: “हे प्रभु, मेरा जीवन भी ऐसा ही हो- बस आपके चरणों में अर्पित।”

चारों ओर फूल खिले थे। और आज पहली बार ऐसा लगा कि मुझे पता है ये क्यों जन्मे हैं।
सिर्फ़ महकने के लिए नहीं,
सिर्फ़ सजने के लिए नहीं —
बल्कि आपके चरणों तक पहुंचने के लिए।

आज जाना —जितना मैं आपके पास आती हूं, उतना ही समझ में आता है… कि इस संसार में अगर कोई मेरा है, तो बस आप हैं।

आपका मौन, आपकी दृष्टि, आपकी लीलाएं — सब मेरे भीतर एक ऊर्जा बनकर उतरती हैं।
कभी किसी मंदिर के घंटे में,
कभी किसी साधु के मौन में,
कभी किसी पत्ते की सरसराहट में- आप हर जगह हैं।

आज की ये यात्रा मंदिरों की नहीं थी —
ये आत्मा की थी।
और इसकी मंज़िल कोई मूर्ति नहीं, कोई शब्द नहीं,
बल्कि वो भाव था जहां मैं पूरी तरह आपके हो सकूं।

Dr. Tanu Jain, Civil Servant and Spiritual Speaker
Ministry of defence

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