Edited By Niyati Bhandari,Updated: 21 Jun, 2021 04:19 PM
ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी सबसे अधिक पुण्यफल दायिनी है क्योंकि इस व्रत के करने से साल भर की 26 एकादशियों के व्रत के समान पुण्यफल की प्राप्ति होती है। इस बार यह एकादशी 21 जून यानि आज है।
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Nirjala Ekadashi 2021: ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी सबसे अधिक पुण्यफल दायिनी है क्योंकि इस व्रत के करने से साल भर की 26 एकादशियों के व्रत के समान पुण्यफल की प्राप्ति होती है। इस बार यह एकादशी 21 जून यानि आज है। इस व्रत में जल का सेवन न करने के कारण ही यह निर्जला एकादशी कहलाती है। पाण्डवों के भाई भीमसेन ने इस एकादशी का व्रत किया था इसलिए यह भीमसैनी एवं पाण्डवा एकादशी के नाम से भी प्रसिद्घ है। अन्य एकादशियों में अन्न का सेवन नहीं किया जाता परंतु इस एकादशी में जल का सेवन करना भी निषेध है। अत: बहुत कठिन तपस्या एवं साधना का प्रतीक है यह व्रत।
Nirjala ekadashi 2021 vrat vidhi विधि : अन्य एकादशियों की भांति इस एकादशी के व्रत का संकल्प भी व्रत से एक दिन पहले यानी 1 जून (दशमी तिथि) को ही किया जाएगा तथा अगले दिन प्रात: स्नानादि क्रियाओं से निपटकर पूजन किया जाएगा। इस व्रत में एकादशी के सूर्योदय से द्वादशी के सूर्योदय तक जल भी ग्रहण न करने का विधान है। इस व्रत में जल में शयन करने वाले भगवान विष्णु जी का पूजन धूप, दीप, नेवैद्य आदि वस्तुओं से विधिवत किया जाता है।
Nirjala ekadashi daan दान- इस व्रत में अपनी सामर्थ्यानुसार अन्न, जल, वस्त्र, छतरी, जल से भरा मिट्टी का कलश, सुराही तथा किसी भी धातु से बना जल का पात्र, हाथ का पंखा, बिजली का पंखा, शर्बत की बोतलें, आम, खरबूजा, तरबूज तथा अन्य मौसम के फल आदि का दान दक्षिणा सहित देने का शास्त्रानुसार विधान है।
इसके अतिरिक्त राहगीरों के लिए किसी भी सार्वजनिक स्थान पर ठंडे एवं मीठे जल की छबील, प्याऊ लगाना तथा लंगर आदि लगाना अति पुण्यफलदायक है। व्रत का पारण ब्राह्मणों को यथाशक्ति मिठाई, अन्न, वस्त्र, स्वर्ण, चप्पल व गाय आदि वस्तुएं दक्षिणा सहित दान देने के पश्चात ही किया जाना चाहिए।
Nirjala ekadashi Importance पुण्यफल : पद्मपुराण के अनुसार निर्जला एकादशी व्रत के प्रभाव से जहां मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं वहीं अनेक रोगों की निवृत्ति एवं सुख सौभाग्य में वृद्घि होती है। इस व्रत के प्रभाव से चतुर्दशीयुक्त अमावस्या को सूर्यग्रहण के समय श्राद्घ करके मनुष्य जिस फल को प्राप्त करता है वही फल इस व्रत की महिमा सुनकर मनुष्य पा लेता है।
हालांकि व्रत करने वाले साधक के लिए जल का सेवन करना निषेध है परंतु इस दिन मीठे जल का वितरण करना सर्वाधिक पुण्यकारी है। भीषण गर्मी में प्यासे लोगों को जल पिलाकर व्रती अपने संयम की परीक्षा देता है अर्थात व्रती अभाव में नहीं बल्कि दूसरों को देकर स्वयं प्रसन्नता की अनुभूति करता है तथा उसमें परोपकार की भावना पैदा होती है। इस प्रकार भारी मात्रा में जल का वितरण करने पर भी वह अपनी भावनाओं पर पूरा संयम रखता है।
यह व्रत सभी पापों का नाश करने वाला तथा मन में जल संरक्षण की भावना को उजागर करता है। व्रत से जल की वास्तविक अहमियत का भी पता चलता है। मनुष्य अपने अनुभवों से ही बहुत कुछ सीखता है, यही कारण है कि व्रत का विधान जल का महत्व बताने के लिए ही धर्म के माध्यम से जुड़ा हुआ है।
क्या कहते हैं विद्वान: भगवान को एकादशी तिथि अति प्रिय है, चाहे वह कृष्ण पक्ष की हो अथवा शुक्ल पक्ष की। इसी कारण इस दिन व्रत करने वाले भक्तों पर प्रभु की अपार कृपा सदा बनी रहती है। उन्होंने कहा कि दशमी को एकाहार, एकादशी में निर्जल एवं निराहार तथा द्वादशी में एकाहार करने का विधान है तथा कोई भी व्रत तब तक पूर्ण नहीं होता जब तक उसका विधिवत पारण न किया जाए।