Edited By Prachi Sharma,Updated: 24 Sep, 2025 07:00 AM

Sabse khushal desh 2025: कुछ दिन हुए इंग्लैंड में एक पुस्तक प्रकाशित हुई, जिसका नाम है ‘रहस्योद्घाटन’। इस पुस्तक में बड़ी दिलचस्प बातें की गई हैं। उदाहरणार्थ, कौन-सी कौम सर्वाधिक शराब पीती है या झूठ बोलती है।
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Sabse khushal desh 2025: कुछ दिन हुए इंग्लैंड में एक पुस्तक प्रकाशित हुई, जिसका नाम है ‘रहस्योद्घाटन’। इस पुस्तक में बड़ी दिलचस्प बातें की गई हैं। उदाहरणार्थ, कौन-सी कौम सर्वाधिक शराब पीती है या झूठ बोलती है। एक चार्ट में दिखाया गया है कि किस कौम की शराब की बोतलों के कार्क उन्हें खोलते समय सबसे अधिक ऊंचे हवा में उछलते हैं। उल्लेखनीय है कि यह फ्रांसीसी कौम है। मालूम होता है कि पुस्तक के लेखक को पंजाबियों का ख्याल नहीं आया। नहीं तो वह उनकी बोतलों के कार्कों को फ्रांसीसी कार्कों से भी अधिक ऊंचा उछलता हुआ देखता।
सबसे रोचक विवरण खुशी के बारे में है। इसमें यह बताने की कोशिश की गई है कि कौन-सी कौम किस प्रकार खुश रहती है। लेखक के विचार में ऑस्ट्रेलिया वासी समझते हैं कि खुशी का रहस्य केवल दो चीजों में है। वे हैं क्रिकेट तथा अच्छी सेहत। नौजवान यूनानी महसूस करते हैं कि खुश रहने के लिए ईमानदार होना अत्यंत आवश्यक है। फिनलैंड के लोगों के विचार में खुशी इस बात पर निर्भर करती है कि आदमी रहम दिल हो।

इटली के निवासी कहते हैं कि खुश रहने के लिए अमीर होना एक अनिवार्य शर्त है। हालैंड वासियों का विचार है कि खुशी तथा खूबसूरती में चोली-दामन का साथ है। ऑस्ट्रिया वासियों की विचारधारा यह है कि खुश रहने वाले व्यक्तियों को मोटापे से बचना चाहिए। इंग्लैंड वासी सोचते हैं कि जब तक व्यक्ति में हास्य की भावना न हो, वह खुश नहीं रह सकता।
लेखक ने यह बताने की कोशिश नहीं की कि एक चीनी, एक रूसी, एक भारतीय तथा एक पाकिस्तानी किस प्रकार खुश रहते हैं ? हमारे विचार में एक चीनी यह सोचकर खुश रहता है कि मार्क्स के अलावा और कोई मार्क्स नहीं तथा माओ-त्से-तुंग उसका पैगम्बर है। एक अमरीकन किसी शर्त के बगैर खुश रहता है क्योंकि बात-बात पर मुस्कराना उसकी आदत बन चुकी है, बल्कि वह तो उस वक्त भी मुस्कुरा देता है जब मुस्कराने की कोई बात न हो।

एक भारतीय को प्रसन्न रखने के लिए दो शर्तों का होना आवश्यक है। उसे कोई काम करने के लिए न कहा जाए और उसे दूसरों को कोसने, उनकी निंदा करने तथा गालियां निकालने की खुली छूट हो। एक पाकिस्तानी शायद इसी हालत में खुश रह सकता है कि ज्यों-ज्यों वह अमीर होता जाए, महिलाओं की संख्या में वृद्धि करता चला जाए जिसके परिणामस्वरूप उसका घर एक अच्छा-खासा हरम बन जाए।
ईरानियों तथा पठानों का फिलहाल खुश रहने का सवाल ही नहीं पैदा होता क्योंकि ईरान तथा अफगानिस्तान में फिलहाल हालात काफी बुरे हैं और सिर्फ वे पठान खुश हैं, जो इस समय किसी दूसरे देश में रह रहे हैं। खुशी के संबंध में सबसे विचित्र बात यह है कि जिस समय कोई व्यक्ति अपने आप से यह सवाल करता है कि क्या वह प्रसन्न है, उसी समय उसकी खुशी काफूर हो जाती है। एक अंग्रेज दार्शनिक ने एक बार कहा था, ‘‘खुश रहने के लिए आवश्यक है कि आदमी सोचना छोड़ दे क्योंकि वह जब भी सोचेगा उदास हो जाएगा।’’
एक अन्य दार्शनिक के अनुसार आत्म प्रवंचना में संलिप्त हो कर ही खुश रहा जा सकता है। मीर तकी मीर का खुश रहने का यह फार्मूला था कि आदमी अपने आप को फकीर (कलंदर) समझे। फरमाते हैं :
खुश रहा जब तलक रहा जीता,
मीर मालूम है कलंदर था।
चलते-चलते यह भी सुन लीजिए कि यदि हमारे नेताओं से कहा जाए कि वे ऐसे तरीके निकालें, जिनसे कौम हमेशा खुश रहे वे अत्यंत खुश होकर जवाब देंगे, ‘‘जरूर निकालेंगे साहब क्योंकि खुश रहना हर भारतवासी का बुनियादी अधिकार है।’’
इसके बाद वे हाथ पर हाथ धर कर बैठ जाएंगे। जब उन्हें 15वीं बार कुछ करने के लिए कहा जाएगा, तब वे मुंह बिसूर कर जवाब देंगे, ‘‘जब तक देश में महंगाई, बेरोजगारी तथा गरीबी है, कोई व्यक्ति खुश नहीं रह सकता इसलिए हम लोगों को परामर्श देंगे कि वे खुश रहने का विचार छोड़ दें।’’
