Edited By Sarita Thapa,Updated: 25 Dec, 2025 01:28 PM

आज के गलाकाट प्रतिस्पर्धा वाले दौर में हायर एंड फायर एक सामान्य बिजनेस प्रक्रिया बन चुकी है। लेकिन, क्या आपने कभी सोचा है कि जब एक बॉस किसी कर्मचारी को नौकरी से हटाता है, तो उसके पीछे चलने वाली आध्यात्मिक घड़ी क्या हिसाब लिख रही होती है।
Premanand Maharaj on Career Karma : आज के गलाकाट प्रतिस्पर्धा वाले दौर में हायर एंड फायर एक सामान्य बिजनेस प्रक्रिया बन चुकी है। लेकिन, क्या आपने कभी सोचा है कि जब एक बॉस किसी कर्मचारी को नौकरी से हटाता है, तो उसके पीछे चलने वाली आध्यात्मिक घड़ी क्या हिसाब लिख रही होती है। क्या किसी की जीविका छीनना केवल एक व्यावसायिक निर्णय है या यह आपके संचित पुण्यों के खाते में पाप बनकर दर्ज हो रहा है। वृंदावन के संत प्रेमानंद जी महाराज के पास जब यह जटिल प्रश्न पहुंचा, तो उन्होंने धर्म और कर्म के उन गूढ़ रहस्यों को सुलझाया जिन्हें अक्सर कॉर्पोरेट जगत अनदेखा कर देता है। उनके अनुसार, कर्म केवल वह नहीं है जो हम हाथ से करते हैं, बल्कि वह है जो हमारी नियत से जन्म लेता है। तो आइए महाराज जी से जानते हैं मालिक और कर्मचारी के इस रिश्ते को कर्मफल के विधान से कैसे जोड़ा है और कब किसी को नौकरी से निकालना आपके लिए भारी पड़ सकता है और कब यह आपका अनिवार्य कर्तव्य बन जाता है।
नियत ही कर्म का आधार है
महाराज जी के अनुसार, कोई भी कार्य पाप है या पुण्य, यह इस बात पर निर्भर करता है कि उसे करने के पीछे आपकी नियत क्या है। यदि आप किसी कर्मचारी को निजी ईर्ष्या, अहंकार, उसे नीचा दिखाने या उसका हक मारने के उद्देश्य से निकालते हैं, तो यह निश्चित रूप से पाप की श्रेणी में आता है। किसी के पेट पर लात मारना आपके संचित पुण्यों को क्षय कर सकता है। यदि कोई कर्मचारी संस्थान के प्रति वफादार नहीं है, चोरी करता है, अनुशासनहीन है या उसके रहने से संस्थान डूब सकता है, तो उसे निकालना मालिक का राजधर्म और कर्तव्य है।
हाय और बददुआ का प्रभाव
प्रेमानंद महाराज अक्सर कहते हैं कि किसी गरीब या आश्रित की हाय बहुत प्रभावशाली होती है। यदि कोई कर्मचारी पूरी ईमानदारी से काम कर रहा है और आप केवल अधिक लाभ कमाने के लालच में उसे अचानक निकाल देते हैं, तो उसकी बेबसी से निकली आह आपके ऐश्वर्य को नष्ट कर सकती है। शास्त्रों के अनुसार, आश्रित का अपमान साक्षात नारायण का अपमान माना गया है।

निकालने का तरीका और मानवीय दृष्टिकोण
महाराज जी के अनुसार, यदि किसी कारणवश कर्मचारी को निकालना अनिवार्य हो जाए, तो एक धार्मिक मालिक को मानवीय दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।
उसे संभलने का पर्याप्त समय दें।
उसका बकाया हिसाब पूरी ईमानदारी से चुकता करें।
संभव हो तो उसे दूसरी जगह रोजगार ढूंढने में मदद करें।
कटु वचनों का प्रयोग न करें, ताकि वह अपमानित महसूस न करे।
कर्मफल का विधान
महाराज जी समझाते हैं कि अंततः हर व्यक्ति अपने भाग्य का खाता है। यदि आपकी नौकरी छूट रही है, तो वह आपके कर्मों का फल है, और यदि आप किसी को निकाल रहे हैं, तो आप एक माध्यम बन रहे हैं। लेकिन, माध्यम बनते समय आपके मन में दया भाव है या क्रूरता, यही आपके अगले जन्म और वर्तमान सुख-शांति को निर्धारित करता है।
