Edited By Niyati Bhandari,Updated: 19 Apr, 2021 10:07 AM
चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को राजा दशरथ तथा माता कौशल्या के पुत्र के रूप में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम प्रकट हुए। जब ब्रह्मा जी ने श्री भगवान के प्रकट होने का अवसर जाना तब (उनके समेत) सभी देवता विमान सजा-सजा कर चले। निर्मल आकाश देवताओं...
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Ram navami 2021 april- चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को राजा दशरथ तथा माता कौशल्या के पुत्र के रूप में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम प्रकट हुए। जब ब्रह्मा जी ने श्री भगवान के प्रकट होने का अवसर जाना तब (उनके समेत) सभी देवता विमान सजा-सजा कर चले। निर्मल आकाश देवताओं के समूहों से भर गया। गंधर्वों के दल प्रभु श्री राम गुणों का गान करने लगे और पुष्प वर्षा करने लगे।
भए प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी। हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी॥
उनके अद्भुत रूप का विचार करके माता हर्ष से भर गईं। चारों भुजाओं में आयुध धारण किए, दिव्य आभूषण और वनमाला पहने, बड़े-बड़े नेत्र थे। इस प्रकार शोभा के सागर तथा खर राक्षस को मारने वाले भगवान प्रकट हुए।
तुलसीदास जी कहते हैं, ‘‘शांत, सनातन, प्रमाणों से परे, निष्पाप, मोक्षरूप, परमशांति प्रदान करने वाले, ब्रह्मा, शम्भु और शेषजी द्वारा निरंतर सेवित, वेदांत के द्वारा जानने योग्य, सर्वव्यापक, देवताओं के सबसे बड़े आराध्य, माया को अधीन कर मनुष्य रूप धारण करने वाले, समस्त पापों को हरने वाले, करुणा की खान, रघुकुल में श्रेष्ठ तथा राजाओं के शिरोमणि श्री राम कहलाने वाले जगदीश्वर श्री हरि जी की मैं वंदना करता हूं।’’
काक भुषुंड जी गरूड़ जी से कहते हैं, ‘‘अयोध्यापुरी में जब-जब श्री रघुवीर भक्तों के हित के लिए मनुष्य शरीर धारण करते हैं, तब-तब मैं जाकर श्री रामजी की नगरी में रहता हूं और प्रभु की शिशु लीला देखकर सुख प्राप्त करता हूं। फिर हे पक्षीराज, श्री राम जी के शिशु रूप को हृदय में रखकर मैं अपने आश्रम में आ जाता हूं।’’
इस भवसागर की रचना ब्रह्मा जी ने की है। इसे पार लगाने वाला है प्रभु श्रीराम नाम का महामंत्र, जिसे महेश्वर श्री शिव जी जपते हैं और उनके द्वारा काशी में मुक्ति के लिए इसी राम नाम महामंत्र का उपदेश दिया जाता है। इसकी महिमा गणेश जी जानते हैं, जो इस राम नाम के प्रभाव से ही सबसे पहले पूजे जाते हैं।
प्रभु श्रीराम जी के प्राकट्य का रहस्य समझाते हुए भगवान शिव माता पार्वती जी से कहते हैं, ‘‘ज्ञानी मुनि, योगी और सिद्ध निरंतर निर्मल चित्त से जिनका ध्यान करते हैं तथा वेद, पुराण और शास्त्र जिनकी र्कीत गाते हैं, उन्हीं सर्वव्यापक, समस्त ब्रह्मांडों के स्वामी, भगवान् श्री राम ने अपने भक्तों के हित के लिए अपनी इच्छा से रघुकुल के मणिरूप में अवतार लिया है।’’
भगवान श्री राम जी लंका चढ़ाई से पूर्व रामेश्वरम शिवलिंग की स्थापना के समय भगवान शंकर से अपनी अभिन्नता प्रकट करते हुए कहते हैं :
‘‘जो शिव से द्रोह रखता है और मेरा भक्त कहलाता है, वह मनुष्य स्वप्न में भी मुझे नहीं पाता। शंकर जी से विमुख होकर विरोध करके जो मेरी भक्ति चाहता है, वह नरक गामी, मूर्ख और अल्पबुद्धि है।’’
रामेश्वर धाम की महिमा बारे श्री राम कहते हैं, ‘‘जो मनुष्य मेरे स्थापित किए हुए इन रामेश्वर जी का दर्शन करेंगे, वे शरीर छोड़कर मेरे लोक को जाएंगे और जो गंगाजल लाकर इन पर चढ़ाएगा, वह मनुष्य मेरी कृपा रूपी मुक्ति पाएगा।’’
‘‘जो निष्काम होकर श्री रामेश्वर जी की सेवा करेंगे, उन्हें शंकर जी मेरी भक्ति देंगे और जो मेरे बनाए सेतु का दर्शन करेगा, वह बिना परिश्रम संसार रूपी समुद्र से तर जाएगा।’’
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम जी का पावन चरित्र वैदिक सनातन धर्म के संपूर्ण धार्मिक साहित्य का मुकुट शिरोमणि है। भरत, लक्ष्मण, शत्रुघ्न, हनुमान जी तथा विभीषण जैसे भक्ति रूपी मणि-माणिक्य उनके मुकुट पर शोभायमान हैं।
केवट, शबरी, सुग्रीव, जामवन्त तथा अंगद के रूप में अनन्य भक्त माला के रूप में भगवान श्री राम जी के कंठ को सुशोभित कर रहे हैं। ब्रह्म ऋषि वशिष्ठ तथा विश्वामित्र एवं महर्षि अगस्त्य जैसे महापुरुषों की आभा प्रभु के मुख पर प्रकाशमान हो रही है।
तुलसीदास जी भगवान सीताराम जी की वंदना करते हुए कहते हैं :
‘‘नीले कमल के समान श्याम और कोमल जिनके अंग हैं, श्री सीताजी जिनके वाम भाग में विराजमान हैं और जिनके हाथों में अमोघ बाण और सुंदर धनुष है, उन रघुवंश के स्वामी श्री राम चन्द्रजी को मैं नमस्कार करता हूं।’’