Edited By Niyati Bhandari,Updated: 27 Apr, 2022 09:44 AM
एक साधु ने ईश्वर प्राप्ति की साधना के लिए कठिन जप करते हुए 6 वर्ष एकांत गुफा में बिताए और प्रभु से प्रार्थना की, ‘‘प्रभु, मुझे अपने आदर्श के समान ही ऐसा कोई
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Religious Katha: एक साधु ने ईश्वर प्राप्ति की साधना के लिए कठिन जप करते हुए 6 वर्ष एकांत गुफा में बिताए और प्रभु से प्रार्थना की, ‘‘प्रभु, मुझे अपने आदर्श के समान ही ऐसा कोई उत्तम महापुरुष बतलाइए जिनका अनुकरण करके मैं अपने साधना पथ में आगे बढ़ सकूं।’’
साधु ने जिस दिन ऐसा चिंतन किया, उसी रात्रि में एक देवदूत ने आकर उससे कहा, ‘‘यदि तेरी इच्छा सद्गुणी और पवित्रता में सबका मुकुटमणि बनने की हो तो उस मस्त भिखारी का अनुकरण कर जो कविता गाता हुआ इधर-उधर भटकता और भीख मांगता फिरता है।’’
देवदूत की बात सुनकर तपस्वी साधु मन में जल उठा, परंतु देवदूत का वचन समझकर क्रोध के आवेश में ही उस भिखारी की खोज में चल दिया और उसे खोज कर बोला, ‘‘भाई तूने ऐसा कौन से सत्कर्म किए हैं जिनके कारण ईश्वर तुझ पर इतने अधिक प्रसन्न हैं?’’
भिखारी तपस्वी ने साधु को नमस्कार कर कहा, ‘‘पवित्र महात्मा, मुझ से दिल्लगी न कीजिए। मैंने न तो कोई सत्कर्म किया, न कोई तपस्या की और न कभी प्रार्थना ही की। मैं तो कविता गा-गाकर लोगों का मनोरंजन करता हूं और ऐसा करते जो रुखा-सूखा टुकड़ा मिल जाता है उसी को खाकर संतोष मनाता हूं।’’
साधु ने फिर आग्रहपूर्वक कहा, ‘‘नहीं-नहीं तूने कोई सत्कार्य अवश्य किया है।’’
भिखारी ने नम्रता से कहा, ‘‘महाराज मैंने कोई सत्कार्य किया हो, ऐसा मेरी जानकारी में नहीं है।’’
इस पर साधु ने उससे फिर पूछा, ‘‘अच्छा बता तू भिखारी कैसे बना? क्या तूने फिजूलखर्ची से पैसे उड़ा दिए अथवा किसी दुर्व्यसन के कारण तेरी ऐसी दशा हो गई?’’
भिखारी कहने लगा, ‘‘महाराज, न मैंने फिजूलखर्ची में पैसे उड़ाए और न किसी व्यसन के कारण ही मैं भिखारी बना। एक दिन की बात है, मैंने देखा एक गरीब स्त्री घबराई हुई-सी इधर-उधर दौड़ रही है। उसका चेहरा उतरा हुआ था। पता लगाने पर ज्ञात हुआ कि उसके पति और पुत्र कर्ज के बदले में गुलाम बनाकर बेच दिए गए हैं।
अधिक सुंदरी होने के कारण कुछ लोग उस पर भी अपना अधिकार जमाना चाहते थे। यह जानकर मैं उसे ढांढस देकर अपने घर ले आया और उसकी उनके अत्याचार से रक्षा की। फिर मैंने अपनी जायदाद साहूकारों को देकर उसके पति-पुत्रों को गुलामी से छुड़ाया और उन्हें उससे मिला दिया। इस प्रकार मेरी सारी सम्पत्ति चली जाने से मैं दरिद्र हो गया और आजीविका का कोई साधन न रहने से मैं अब कविता गा-गाकर लोगों को रिझाता हूं और इसी से जो टुकड़ा मिल जाता है उसी को लेकर आनंद मानता हूं पर इससे क्या हुआ? ऐसा काम क्या और लोग नहीं करते?’’
भिखारी की कथा सुनते ही साधु की आंखों से मोती जैसे आंसू गिरने लगे और वह उस भिखारी को हृदय से लगाकर कहने लगा, ‘‘मैंने अपने जीवन में तेरे-जैसा कोई काम नहीं किया। तू सचमुच आदर्श साधु है।’’